20 सितम्बर 2024 : पुणे के अन्सर्ट एंड यंग (EY) फर्म में काम करने वालीं 26 साल की युवती एना सेबेस्टियन की मौत हो गई. वह सीए थीं. युवती की मां ने कंपनी के चेयरमैन को खत लिखा और आरोप लगाया कि बेटी की जान वर्कलोड की वजह से हुई है. उन्होंने कहा कि बेटी दिन-रात बिना सोए और बिना किसी छुट्टी के लगातार काम कर रही थी. एना ने 18 मार्च 2024 को कंपनी जॉइन की थी. सीए एना की अचानक कार्डियक अरेस्ट से हुई मौत ने आज के कॉर्पोरेट वर्क कल्चर पर सवाल खड़े कर दिए हैं. क्या वाकई में काम का बोझ जान ले सकता है, इस पर बहस छिड़ी हुई है.  

तनाव बिगाड़ता दिल की सेहत
रीवायर, रीवर्क, रीक्लेम: हाउ टू मैनेज स्ट्रेस के लेखक और दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल में मनोचिकित्सक डॉ.राजीव मेहता कहते हैं कि दिमाग शरीर की हर एक्टिविटी को कंट्रोल करता है. जब शरीर तनाव में होता है तो ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है जिससे दिल पर बोझ बढ़ता है और दिल से जुड़ी दिक्कतें शुरू हो जाती हैं. कई बार तनाव से ब्लड क्लॉट भी बनने लगते थे. वर्कलोड से इंसान बर्नआउट हो जाता है.

53% भारतीयों को वर्कलोड स्ट्रेस
ऑल इंडिया मैनेजमेंट असोसिएशन ने एक सर्वे में पाया कि 53% भारतीय काम के बोझ और लंबी शिफ्ट के कारण तनाव में रहते हैं. एनवायरमेंट इंटरनेशनल में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन और इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट छपी. इसके अनुसार 2016 में लंबी शिफ्ट करने से 745000 लोगों ने स्ट्रोक और दिल की बीमारी की वजह से दुनिया को अलविदा कह दिया. ऐसे मामले 2000 में 29% तब बढ़े. इनमें से अधिकतर लोग हफ्ते में 55 घंटे से ज्यादा काम कर रहे थे.  

हर किसी की जान का दुश्मन नहीं है वर्कलोड
दिल्ली के जीबी पंत हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजी विभाग में ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट दीप्ति कारल बताती हैं कि वर्क लोड से किसी की जान चली जाए ऐसा नहीं होता है. लेकिन तनाव दूसरे कारण बनकर जान का दुश्मन जरूर बन सकता है.  हर इंसान की पर्सनैलिटी एक-दूसरे से अलग होती है. व्यक्ति अपनी पर्सनैलिटी के हिसाब से वर्कलोड को मैनेज करता है. कुछ लोग इस तनाव को झेल नहीं पाते जिसका असर उनके शरीर पर पड़ता है. अगर व्यक्ति कुछ दिन लंबे समय तक काम करे, तब दिक्कत नहीं है लेकिन अगर 6 महीने से ज्यादा समय तक इंसान ऐसा करे तो यह गंभीर समस्या बन सकता है

स्ट्रेस हार्मोन बिगाड़ते सेहत
दीप्ति कारल कहती हैं कि जब दिमाग में तनाव बढ़ता है, तो शरीर में कार्टिसोल (Cortisol) नाम के स्ट्रेस हार्मोन रिलीज होने लगते हैं. इससे शरीर का इम्यून सिस्टम बिगड़ जाता है और व्यक्ति जल्दी बीमार रहने लगता है. अगर कोई व्यक्ति लंबे समय से वर्कलोड झेल रहा है ताे उसे कार्डियोवेस्कुलर से जुड़ी दिक्कत शुरू होने लगती हैं. ऐसे लोग हाई कोलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर के मरीज बन जाते हैं. रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से उनका शरीर जरूरी पोषक तत्वों को भी एब्जॉर्ब नहीं कर पाता. यानी कॉर्टिसोल हार्मोन धीरे-धीरे दिल को बीमार बना देता है.   

हर 30 मिनट में ब्रेक जरूरी
आजकल अधिकतर लोग एक दिन में 12 से 17 घंटे लगातार लैपटॉप पर काम करते हैं. लगातार एक जगह बैठने से मांसपेशियां थकने लगती हैं. जब व्यक्ति मूवमेंट करता है यानी कोई भी फिजिकल एक्टिविटी होती है तो मसल्स में कॉन्ट्रेक्शन होता है जिससे दिमाग सेरोटोनिन और डोपामाइन जैसे हैपी हार्मोन रिलीज करता है. इसलिए काम करने के बीच में हर 30 मिनट में ब्रेक लेना जरूरी है. इस ब्रेक में बॉडी मूवमेंट जरूरी है. कुर्सी से उठकर 10 कदम चलें. अगर उठ नहीं सकते तो कुर्सी पर बैठे हुए गर्दन को 8 नंबर बनाते हुए गोल घुमाएं, पैरों और कंधों को भी घुमाएं. इससे मसल्स में थकान नहीं होगी और स्ट्रेस भी हावी नहीं होगा. 

शरीर देता गड़बड़ी के संकेत
डॉ.राजीव मेहता
 कहते हैं कि वर्कलोड बढ़ने पर इंसान का शरीर और व्यवहार दोनों संकेत देते हैं. इन इशारों को समझकर इंसान खुद को तनाव से बचा सकता है. जब व्यक्ति काम के बोझ से दबा होता है तो वह चिड़चिड़ा होने लगता है. वह परिवार को समय नहीं देता, उसकी हॉबी छूट जाती हैं, अल्कोहल और स्मोकिंग करने लगता है. यह व्यावहारिक संकेत होते हैं. वहीं जब आंखों, पीठ और कंधों में दर्द होने लगे और कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाए तो समझ जाएं वर्कलोड शरीर को नुकसान पहुंचाने लगा है. वर्कलोड से बचने के लिए खुद को समय देना जरूरी है. अगर हो सकते को अतिरिक्त काम को ना कहना सीखें और अगर ऐसा मुमकिन नहीं है तो कंपनी बदलने में ही समझदारी है.   

नींद ना आए तो संभल जाएं
तनाव सबसे ज्यादा नींद को प्रभावित करता है. नींद पूरी ना ली जाए तो अधिकतर लोगों का वजन बढ़ने लगता है. यही खतरे की घंटी भी है. जब दिमाग थका होता है तो मांसपेशियां भी थकी होती है. कम सोने या ना सोने से दिमाग के काम करने की क्षमता प्रभावित होने लगती है. काम करने की शारीरिक क्षमता भी घटती है जिसे इंसान की सेल्फ इमेज बदल जाती है. जब इंसान यह सोचने लगे कि मैं पहले जैसा नहीं रहा, तभी उसे संभल जाना चाहिए. काम जरूरी है लेकिन काम के साथ लगातार 8 से 10 घंटे की नींद लेना भी जरूरी है.  

क्वॉलिटी ऑफ लाइफ जरूरी
कोरोना के बाद बढ़ते हाइब्रिड कल्चर से अब हर किसी को 7 दिन काम करने के लिए तैयार रहना पड़ता है. लेकिन अगर व्यक्ति क्वॉलिटी ऑफ लाइफ को सुधार ले तो काम का बोझ उन्हें बीमार नहीं होने देना. ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट दीप्ति कारल कहती हैं कि क्वालिटी ऑफ लाइफ लेजर एक्टिविटी और रीक्रिएशनल एक्टिविटी से सुधरती है. इन एक्टिविटीज को काम के बीच में हर 15 दिन में करना जरूरी है. रीक्रिएशनल एक्टिविटी का मतलब है ऐसा कोई काम जो पहले करते थे लेकिन अब नहीं कर पाते. उस काम को करने से आपको बहुत खुशी मिलती थी. जैसे बचपन में किसी को झूला झूलते या दोस्तों के साथ घूमने से खुशी मिलती थी. इस तरह की एक्टिविटी दोबारा शुरू करें. वहीं, लेजर एक्टिविटी का मतलब है अपनी पसंदीदा हॉबी जैसे पेंटिंग, सिंगिंग, ट्रैकिंग या गार्डनिंग. काम के बोझ के बीच से महीने में 2 दिन अपने लिए वक्त निकालने से कभी तनाव नहीं होगा.

Bharat Baani Bureau

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