26 सितम्बर 2024 : मरने के बाद क्या होता है, यह सवाल अधिकतर लोगों के मन में आता है. मृत्यु एक ऐसा विषय है जिसके बारे में सोचते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. हर कोई जन्म की तो खुशी मनाता है लेकिन मौत पर मातम पसर जाता है. अधिकतर लोग ज्योतिषियों से पूछ ही बैठते हैं कि उनकी मौत कब और कैसे होगी और वह मौत को कैसे टाल सकते हैं लेकिन मौत को क्या टाला जा सकता है? अगर जन्म खुशी देता है तो मौत क्यों डराती है? क्या मौत वाकई में खौफनाक होती है? कुछ लोग तो मरने से इतना डर जाते हैं कि उनका इलाज तक करना पड़ता है?
थैनाटोफोबिया के कई लोग शिकार
जो लोग हद से ज्यादा मरने की चिंता करते हैं या अपनों को मौत से खोने से डरते हैं, वह डेथ एंग्जाइटी का शिकार होते हैं. 1915 में ‘Thoughts for the Time on War and Death’ नाम की किताब के लेखक सिगमंड फ्रायड ने डेथ एंग्जाइटी को थैनाटोफोबिया का नाम दिया. उनका मानना था कि मौत व्यक्ति का अवचेतन विश्वास होता है. जिंदगी एक लघु कथा की तरह है जो जन्म से शुरू होती है और मौत पर खत्म. मौत लाइफ साइकिल का जरूरी हिस्सा है.
डेथ एंग्जाइटी एक मेंटल डिसऑर्डर
कुछ स्टडी कहती हैं कि मौत कैसे होगी, उसके बाद क्या होता है, हमारे मरने के बाद बच्चों का क्या होगा, क्या मरने के बाद नरक मिलेगा, क्या यमदूत सताते हुए लेकर जाएंगे, मरने के बाद मेरा पति या पत्नी का क्या होगा, यह विचार व्यक्ति को डेथ एंग्जाइटी का शिकार बना देते हैं. यह एक तरह का मेंटल डिसऑर्डर है.
20.3% लोग मौत से डरते हैं
कुछ रिसर्च यह साबित कर चुकी हैं कि जो लोग डेथ एंग्जाइटी के शिकार होते हैं, उन्हें मौत से जुड़ी हर बात परेशान करती है. वह किसी की डेथ देख भी नहीं सकते हैं. 2017 में चैपमैन यूनिवर्सिटी ने एक सर्वे किया जिसमें 20.3% ने बताया कि वह मौत से डरते हैं. इनमें से 18.3% लोगों को किसी अनजाने व्यक्ति के हाथों मर्डर का खौफ सताता है.
पहले हुई घटना डरा सकती है
लाइफ कोच और मनोचिकित्सक डॉ.बिंदा सिंह कहती हैं कि कुछ लोग मौत के मुंह से बाहर निकलते हैं चाहे वह रोड एक्सिडेंट से हो या बीमारी से. जब ऐसे लोग मौत को करीब से देख लेते हैं तो वह इससे डरने लगते हैं. वहीं अगर किसी ने अपने प्रियजन को खो दिया हो तो उनकी मौत भी दिमाग पर गहरा असर डालती है. ऐसे लोग उनकी मौत से उभर ही नहीं पाते.
आसपास सुनी कहानियां करती हैं परेशान
हमारे समाज में मौत से जुड़ी कई कहानियां सुनाई जाती हैं. जैसे जब इंसान की मृत्यु हो रही होती है तो एक सफेद रोशनी उसे दिखने लगती है. कुछ कहानियां मौत को अच्छे और बुरे कामों से जोड़ देती हैं. कुछ मौत को दर्दनाक बताती हैं लेकिन कुछ लोगों के दिमाग पर इन कहानियों का इतना गहरा असर पड़ता है कि वह मौत से घबराने लगते हैं. ऐसे में काउंसलर उन्हें समझाता है कि कहानियां केवल कहानियां हैं. मौत के बाद क्या होता है कोई इंसान कैसे जान सकता है. यह सब कहानियां मिथक हैं
डेथ एक्टिविटी कराई जाती है
डॉ.बिंदा सिंह कहती हैं कि जो लोग किसी की मौत से दुखी होते हैं या डेथ एंग्जाइटी के शिकार होते हैं उन्हें कॉगनिटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT) से ठीक किया जाता है. इसमें उनसे बात कर डर का कारण पूछा जाता है, उनके दिमाग में ऐसी बातें कहां से आती हैं, यह समझा जाता है. कुछ सवाल पूछने के बाद उनसे कुछ मौत से जुड़ी एक्टिविटी कराई जाती हैं जैसे वरियत लिखवाना, हॉस्पिटल में विजिट करवाना, फिल्मों के डेथ सीन दिखाना, उनसे काल्पनिक कहानियां लिखवाना कि उनके जाने के बाद उनके बच्चे और पार्टनर कैसे जिंदगी जी रहे हैं, उनसे लिखवाया और पूछा जाता है कि वह कैसे खुशी-खुशी मरना चाहते हैं, मरने से पहले क्या-क्या चीजें करना चाहते हैं. ऐसा करने से उनके मन से मौत का डर आसानी से निकल सकता है.
काउंसलिंग कर दिमाग को बनाया जाता है मजबूत
कुछ लोगों को भौतिक चीजों से इतना लगाव होता है कि उन्हें मृत्यु से डर लगने लगता है. जैसे कुछ लोग अपने पैसों, जमीन, ज्वेलरी और अपने रिश्तों से बहुत लगाव करते हैं. हकीकत यही है कि यह सब चीजें कोई अपने साथ नहीं लेकर जा सकता. इन भौतिक चीजों का सुख केवल जिंदा रहकर लिया जा सकता है. यही बात समझाने के लिए कुछ लोगों को डेथ काउंसलिंग दी जाती है. उन्हें बताया जाता है कि यह सब मोह माया है. अक्सर इस तरह की डेथ काउंसलिंग 70 साल की उम्र के बाद दी जाती है क्योंकि उस समय कुछ लोग मौत से बहुत डरने लगते हैं. उन्हें दिमागी तौर पर तैयार किया जाता है कि जन्म की तरह मौत भी है. जब आप सोचकर पैदा नहीं हुए तो मृत्यु के बारे में ज्यादा क्यों सोचते हैं.