Nuclear-Powered Attack Submarines: भारत का जोर समुद्री क्षेत्र में चीन जैसे ताकतवर दुश्मनों को पछाड़ने के लिए न्यूक्लियर पनडुब्बी बनाने पर है. इसकी एक वजह यह है कि जंग होने पर विमानवाहक युद्धपोतों का इस्तेमाल जोखिमभरा हो सकता है. क्योंकि युद्धपोत पर लंबी दूरी की मिसाइल से निशाना साधा जा सकता है. इसी वजह से भारत का जोर न्यूक्लियर पनडुब्बी बनाने पर है, जिससे समुद्र में अपनी ताकत में इजाफा किया जा सके. माना जा रहा है कि पनडुब्बियों की नई श्रेणी अरिहंत श्रेणी की परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी (एसएसबीएन) से अलग होगी, जो परमाणु हथियार लॉन्च करने में सक्षम है.
450 बिलियन रुपये का बजट
समुद्र में ताकत बढ़ाने की अपनी योजना के तहत भारत दो परमाणु-संचालित अटैक सबमरिन (SSN) बनाने जा रहा है. भारत की यह महत्वाकांक्षी योजना हिंद महासागर में चीन की बढ़ती नौसैनिक मौजूदगी और उसके बढ़ते वर्चस्व का मुकाबला करने के लिए है. एक विदेशी न्यूज एजेंसी ने भी इस बात की पुष्टि की थी कि केंद्र सरकार ने दो नए एसएसएन के निर्माण की योजना को मंजूरी दे दी है. दो एसएसएन बनाने पर लगभग 450 बिलियन रुपये (5.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का खर्च आएगा. ये पनडुब्बियां छह ऐसे जहाजों के निर्माण की एक बड़ी योजना का हिस्सा हैं, जो अपने समुद्री प्रभाव क्षेत्र में भारत की शक्ति को बढ़ाएंगे.
लार्सन एंड टुब्रो कर रहा निर्माण में मदद
रॉयटर्स की रिपोर्ट में बताया गया है कि इन एसएसएन का निर्माण लार्सन एंड टुब्रो की मदद से विशाखापत्तनम में सरकारी जहाज निर्माण केंद्र में किया जाएगा. ये नई पनडुब्बियां पारंपरिक डीजल से चलने वाली पनडुब्बियों (एसएसके) की तुलना में तेज, शांत और लंबे समय तक पानी के नीचे रहने में सक्षम होंगी. वैसे भारत का रूस से परमाणु-संचालित पनडुब्बियों को पट्टे पर लेने का इतिहास रहा है. लेकिन इन दो एसएसएन का निर्माण भारत का अपने घरेलू हथियार उद्योग को बढ़ावा देने और आत्मनिर्भर बनने की व्यापक योजनाओं के अनुरूप है. इसकी एक वजह 2020 में विवादित हिमालयी सीमा पर चीन के साथ घातक झड़पों के बाद बढ़ा तनाव भी है.
इस योजना को कहा जाता है प्रोजेक्ट 75
एसएसएन हासिल करने की भारत की योजना को प्रोजेक्ट 75 के रूप में जाना जाता है. भारत की एसएसएन बनाने की चाह विशेष रूप से चीन से बढ़ते खतरों के बीच अपनी समुद्री और युद्ध क्षमताओं को बढ़ाने की रणनीतिक आवश्यकता से उपजी है. हालांकि इस कार्यक्रम को काफी देरी का सामना करना पड़ा है. प्रोजेक्ट 75 को पहली बार 2015 में सरकारी मंजूरी मिल गई थी. लेकिन लगभग एक दशक बीत जाने के बाद भी भारतीय नौसेना की एसएसएन को पाने की इच्छा अधूरी रह गई है.
एसएसएन से बन जाएगी नौसेना मजबूत
रक्षा क्षेत्र के जानकारों के मुताबिक एसएसके की तुलना में एसएसएन में बेहतर रेंज, सहनशक्ति और गति है, जो उन्हें ज्यादा आक्रामक बनाती है. भारत का वर्तमान पनडुब्बी बेड़ा, जो मुख्य रूप से पुराने एसएसके से बना है, चीन की बढ़ती नौसैनिक शक्ति और तेजी से बढ़ती समुद्री रणनीति का मुकाबला करने के लिए अपर्याप्त है. सरकार की योजना तो भारतीय नौसेना की शेष 18 एसएसके में से छह को स्वदेशी रूप से निर्मित एसएसएन से बदलने की भी है. इसके लिए 30 वर्षीय योजना बनाई गई है. हालांकि इसे समय पर पूरा करना मुश्किल होगा, क्योंकि नौकरशाही की जड़ता, बजटीय बाधाएं और विदेशी सहयोग पर स्थायी निर्भरता इसकी प्रगति में रोड़ा बनी हुई है.