नागौर. नागौर का कृषि और पशुपालन क्षेत्र राजस्थान के अग्रणी जिलों में आता है. इस समय किसान डीएपी (डायम्मोनियम फास्फेट) की कमी से जूझ रहे हैं, जिसका मुख्य कारण रबी फसल की अधिक बुवाई है. इस साल बारिश अधिक होने से असिंचित क्षेत्रों में भी रबी की बुवाई जोरों पर हो रही है, और लगभग 30% अधिक क्षेत्र में बुवाई की संभावना है, जिससे डीएपी की मांग बढ़ गई है.
कृषि विभाग ने इस बार नागौर जिले में लगभग 2 लाख 68 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में रबी की फसलों की बुवाई का लक्ष्य रखा है. अब तक 1 लाख 70 हजार हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी है. कुछ किसान जीरे की बुवाई के लिए मौसम में ठंड का इंतजार कर रहे हैं. कुल मिलाकर, इस बार बुवाई का क्षेत्र लक्ष्य से 30% अधिक होने के कारण डीएपी की मांग बढ़ी है.
50 हजार मैट्रिक टन डीएपी की आवश्यकता
इफको का कहना है कि उन्हें हर साल जितनी डीएपी मिलनी चाहिए, उतनी मिल रही है, लेकिन बढ़ी हुई मांग के कारण कमी हो रही है. अनुमान के मुताबिक, इस बार नागौर में करीब 50 हजार मैट्रिक टन डीएपी की जरूरत है, जबकि उपलब्धता 35 से 40 हजार मैट्रिक टन ही है, जिसमें से 50% हिस्सा इफको का है.
डीएपी की कमी क्यों पूरी नहीं हो रही
डीएपी की कमी को दूर करना सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण है. भारत में डीएपी के उत्पादन संयंत्र पहले से ही अपनी उच्चतम क्षमता पर हैं, जिससे अचानक उत्पादन बढ़ाना संभव नहीं है. विदेशों से आयात भी सीमित है क्योंकि वहां भी स्थानीय खपत होती है. इसके अलावा, सरकार डीएपी पर सब्सिडी दे रही है और जितनी आवश्यकता है उतनी ही डीएपी मंगा रही है.
नैनो डीएपी से कमी दूर करने की कोशिश
डीएपी की कमी को नैनो डीएपी से कम किया जा सकता है. कृषि विभाग किसानों को नैनो डीएपी के उपयोग की सलाह दे रहा है और इसके लिए प्रशिक्षण भी दे रहा है. यदि 100 हेक्टेयर भूमि में से 30 हेक्टेयर पर नैनो डीएपी का उपयोग किया जाए, तो डीएपी की कमी को कम किया जा सकता है. मेड़ता के सहायक निदेशक कृषि, रामप्रकाश बेड़ा, ने बताया कि विभाग किसानों को नैनो डीएपी का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है और इसकी ट्रेनिंग भी दे रहा है.
किसानों की परेशानी
किसान विकास गोस्वामी ने बताया कि पिछले 15 दिनों से डीएपी के लिए चक्कर काट रहे हैं लेकिन उपलब्ध नहीं हो रही है, जिससे बुवाई में देरी हो रही है. किसान किशोर प्रजापत ने बताया कि एक सप्ताह से डीएपी नहीं मिल रही, जबकि बुवाई का समय आ गया है. इफको के क्षेत्रीय प्रबंधक, रामस्वरूप जाट, ने बताया कि किसान नैनो डीएपी से बीज का उपचार कर सकते हैं. नैनो डीएपी सामान्य डीएपी की तुलना में अधिक प्रभावी है, भूमि की उर्वरता को बनाए रखता है और पर्यावरण के लिए भी अनुकूल है.