24 जनवरी 2025 (भारत बानी ब्यूरो ).नींद इंसान की सेहत का बहुत अहम हिस्सा होता है. हेल्थ एक्सपर्ट्स भी इसे आज शरीर के लिए उतना ही जरूरी मानते हैं जितना कि भोजन है. वहीं कई लोग नींद को लेकर भी काफी संवेदनशील होते हैं. नींद ना आना एक विकार के तौर पर देखा जाता है. लोग खुद भी नींद लाने के लिए तरह के तरह के उपाय और यहां तक कि नशे तक में पड़ जाते हैं. फिर भी दुनिया में आम लोगों को नींद के बारे में सभी बातें सही तरह से नहीं पता हैं. हेल्थ एक्सपर्ट्स ने ऐसी खास बातों की पहचान की है जिनके बारे में आम लोगों की बहुत गलत धारणा है.आइए, इन्हें समझते हैं.
अनुभव से ज्यादा बनती है लोगों की धारणा
नींद के बारे में लोगों की अपनी राय होती है, अपने अनुभव होते हैं. फिर भी वे कई बार कुछ गलत धारणाएं बना लेते हैं. यहां कि कई बार उन्हें लगता है कि जो वो सोच रहे हैं, वह पूरी तरह से वैज्ञानिक भी है. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में 11 स्लीप एक्सपर्ट्स ने ऐसे मिथकों के बारे में बताया है, जो आम लोगों को लगता है कि सही हैं.
कम नींद के लिए नहीं कर सकते शरीर को तैयार
एकअनुभव से बनी धारणा ये है कि हम कम नींद से भी काम चला सकते हैं. लोग जबरन जागने के लिए कई उपाय अपनाते हैं, जैसे चाय पीना या कॉफी पीना आदि, लेकिन नॉर्थवेस्टर्न मेडिसिन लेक फॉरेस्ट हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. इयान कैटज़लसन का कहना है कि नींद भले ही कम कर लेने में कामयाब हो पाते हों, लेकिन आप कम आराम के नकारात्मक असर से नहीं बच सकते. कुल मिला कर आप अपने शरीर को कम नींद की जरूरत के लिए किसी भी तरह से प्रशिक्षित नहीं कर सकते.
2023 में किए गए एक अध्ययन में लगभग 500,000 प्रतिभागियों के डेटा शामिल थे, जिसमें पाया गया कि जो वयस्क रोजाना नौ घंटे से अधिक सोते थे, उनमें सांस संबंधी बीमारी से मरने की संभावना 35 प्रतिशत अधिक थी. यह सच है कि यह अभी साफ नहीं हो पाया है कि ज्यादा नींद लेने से सेहत की क्या समस्याएं हो सकती हैं. लेकिन एक्सपर्ट्स यह जरूर मानते हैं कि अगर आपको लग रहा है कि आपको ज्यादा नींद की जरूरत है तो यह किसी समस्या की वजह से हो सकता है.
वीकेंड पर भरपाई?
नौकरी करने वाले अधिकांश लोग यही सोचते हैं कि सप्ताहांत वे आराम कर अगले हफ्ते काम करने के लिए फिर से चुस्त दुरुस्त हो जाएंगे. लेकिन बहुत से लोग इस आराम शब्द की जगह नींद शब्द डाल देते हैं. दिलचस्प बात ये है कि लोग ऐसा करने की कोशिश भी करते हैं.
पहले ही होने लगता है नुकसान
नॉर्थवेल स्टेटन आइलैंड यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में स्लीप इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. थॉमस किलकेनी का कहना है कि अगर आप हर सप्ताहांत घंटों तक सोते हैं, तो यह संभवतः इस बात का संकेत है कि आपको पूरे सप्ताह “पर्याप्त” आराम नहीं मिल रहा है. वैसे भी ऐसा हो ही नहीं सकता है कि रोज एक घंटे कम सोकर आप वीकएंड पर पांच छह घंटे अधिक सोकर भरपाई कर लें. उससे पहले ही शरीर पर कम नदीं का असर हो चुका होता है.
सारांश:विज्ञान के मुताबिक, नींद से जुड़ी कई सामान्य बातें हैं, जिन्हें लोग सही मानते हैं, लेकिन असल में वे गलत हैं। उदाहरण के लिए, यह कि सप्ताह में एक या दो रातों की कम नींद से कोई फर्क नहीं पड़ता, या कि बिस्तर पर लेटते ही नींद आनी चाहिए। विज्ञान बताता है कि लगातार खराब नींद शरीर और मस्तिष्क दोनों पर नकारात्मक प्रभाव डालती है, और इसकी पुनरावृत्ति से स्वास्थ्य पर गंभीर असर हो सकता है।