14 फरवरी 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) – भारतीय रिजर्व बैंक ने महाराष्ट्र के को-ऑपरेटिव बैंक न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक (New India Co-operative Bank) की वित्तीय स्थिति की गंभीरता को देखते हुए बैंक पर कई पाबंदियां लगा दी हैं। इन प्रतिबंधों में सबसे बड़ी रोक यह है कि अब ग्राहक छह महीने के लिए बैंक से अपना पैसा नहीं निकाल सकते हैं। रिजर्व बैंक के इस फैसले के बाद बैंक के ग्राहकों में अफरातफरी मच गई है। शीर्ष बैंक के इस फैसले के बाद, बैंक की शाखा के बाहर ग्राहकों की भीड़ जमा हो गई, जो स्थिति को समझने और समाधान पाने की कोशिश कर रहे थे।
RBI ने ऐलान किया था कि मुंबई स्थित न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक अब नए लोन जारी नहीं कर सकता, निवेश नहीं कर सकता और उधारी भी नहीं ले सकता। केंद्रीय बैंक ने बैंक पर निगरानी संबंधी चिंताओं (supervisory concerns) और नकदी संकट का हवाला देते हुए यह फैसला लिया है। ये पाबंदियां गुरुवार को कारोबार खत्म होने के बाद से लागू हो गई हैं और अगले छह महीने तक जारी रहेंगी। हालांकि RBI जरूरत पड़ने पर इसमें रिव्यू कर सकता है। RBI ने अचानक उठाए गए अपने इस कदम के ठोस कारणों का खुलासा नहीं किया।
लेकिन RBI के इस फैसले के बाद यह सवाल उठने लगे कि रिजर्व बैंक आखिर किसी बैंक पर पाबंदियां क्यों लगाता है, या फिर अगर कोई बैंक डूब जाता है तो उसके बाद उस बैंक में जमा ग्राहकों की जमा-पूंजी का क्या होता है? आज इसमें हम इसी विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
RBI बैंकों पर प्रतिबंध क्यों लगाता है?
हम जानते हैं कि भारत में बैंकिंग प्रणाली को मजबूत और सुरक्षित बनाए रखने की जिम्मेदारी भारतीय रिजर्व बैंक की होती है, लेकिन जब कोई बैंक अपने ग्राहकों की जमा राशि लौटाने में असमर्थ हो जाता है या उस बैंक का वित्तीय संकट इतना गंभीर हो जाता है कि वह सामान्य रूप से अपना संचालन जारी नहीं रख सकता, तो ऐसी स्थिति में RBI बैंकों पर प्रतिबंध लगा देता है। इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि खराब ऋण प्रबंधन, नकदी संकट, वित्तीय अनियमितता या व्यापक आर्थिक मंदी। ऐसे हालात में RBI बैंक पर प्रतिबंध लगा सकता है, उसे पुनर्गठित कर सकता है या पूरी तरह से बंद करने का फैसला भी कर सकता है।
ग्राहकों के पैसे का क्या होता है?
भारतीय रिजर्व बैंक के तहत डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) जमाकर्ताओं के पैसों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। DICGC द्वारा दी जाने वाली बीमा सुरक्षा के तहत प्रत्येक जमाकर्ता को अधिकतम 5 लाख रुपए (मूलधन और ब्याज सहित) की गारंटी दी जाती है। इसका मतलब यह है कि यदि किसी बैंक को बंद किया जाता है, तो जमाकर्ता को उनकी जमा राशि में से अधिकतम 5 लाख रुपए तक की वापसी की गारंटी मिलती है, चाहे उनके खाते में इससे अधिक राशि क्यों न हो।
अगर बैंक पूरी तरह से बंद हो जाता है और उसे परिसमापन (liquidation) की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, तो DICGC के नियमों के अनुसार 5 लाख रुपए तक की गारंटी दी जाती है। लेकिन अगर बैंक का पुनर्गठन या विलय किया जाता है, तो जमाकर्ताओं को उनकी पूरी जमा राशि वापस मिलने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए, यह कहना गलत नहीं होगा कि बैंक डूबने की स्थिति में ग्राहक की स्थिति इस बात पर निर्भर करती है कि RBI और सरकार उस बैंक के साथ क्या कदम उठाते हैं।
सरकार का क्या रुख होता है?
भारत सरकार और RBI मिलकर यह सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं कि बैंकिंग प्रणाली स्थिर बनी रहे और ग्राहकों का पैसा सुरक्षित रहे। उदाहरण के लिए, 2020 में यस बैंक संकट के दौरान, सरकार और RBI ने मिलकर एक पुनर्गठन योजना बनाई जिससे बैंक को बचाया गया और जमाकर्ताओं की पूरी राशि सुरक्षित रही। इसी तरह, PMC बैंक संकट के समय भी जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा के लिए विलय की प्रक्रिया अपनाई गई।
अगर बात पिछले सालों में आए बैंकिंग संकट की करें तो भारत में बीते कुछ सालों में कई बैंक संकट में आए, जिनमें PMC बैंक, यस बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक शामिल हैं।
PMC बैंक (2019): वित्तीय अनियमितताओं के चलते इस बैंक पर पाबंदियां लगाई गईं और बाद में इसे यूनिटी स्मॉल फाइनेंस बैंक में विलय कर दिया गया।
यस बैंक (2020): जब यस बैंक की वित्तीय स्थिति बिगड़ी, तो भारतीय स्टेट बैंक (SBI) सहित अन्य बैंकों ने इसमें निवेश किया और इसे बचाया गया।
लक्ष्मी विलास बैंक (2020): इस बैंक को DBS बैंक इंडिया के साथ विलय कर दिया गया ताकि जमाकर्ताओं का पैसा सुरक्षित रहे।
अन्य देशों में क्या नियम हैं?
भारत में बैंकों की विफलता के दौरान जमाकर्ताओं को 5 लाख रुपए तक की सुरक्षा मिलती है, लेकिन अन्य देशों में यह सीमा अलग हो सकती है। उदाहरण के लिए:
अमेरिका: फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (FDIC) के तहत प्रति जमाकर्ता 250,000 डॉलर तक की सुरक्षा दी जाती है।
यूरोप: यूरोपियन डिपॉजिट इंश्योरेंस स्कीम के तहत 100,000 यूरो तक की सुरक्षा दी जाती है।
ऑस्ट्रेलिया: ऑस्ट्रेलियाई सरकार 250,000 ऑस्ट्रेलियन डॉलर तक की गारंटी देती है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
Voice of Banking के फाउंडर और बैंकिंग एक्सपर्ट अश्विनी राणा कहते हैं कि इस मामले में हमें दो चीजें समझने की जरूरत है।
अश्विनी राणा कहते हैं, “पहला यह है कि बैंक पर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बैंक पर प्रतिबंध लगाया जाता है। दूसरा यह है कि बैंक पूरी तरह डूब जाता है। दोनों अलग अलग चीजें हैं। बैंक पूरी तरह डूब जाए, ऐसा मौका कम ही आता है, क्योंकि अक्सर सरकार कोई न कोई कदम उठाकर बैंक को बचा लेती है। कई मौके पर ऐसा देखा गया है। या तो उस बैंक का किसी दूसरे बैंक में विलय कर दिया जाता है, या फिर कोई दूसरा बैंक उसे खरीद लेता है। रही बात प्रतिबंध लगाने की, तो RBI यह फैसला तब लेती है कि जब बैंक अलग-अलग अनियमितताओं से जूझ रहा होता है। इसमें अक्सर ऐसा होता है कि RBI पहले 6 महीनों के लिए प्रतिबंध लगाती है, जिसके बाद बैंक के सारे कारोबार पर रोक लगा दिया जाता है। इसके बाद शीर्ष बैंक जांच करती है। हालांकि, कई मौके पर RBI समय समय पर नियमों पर बदलाव करती रहती है, जिसमें ग्राहकों को एक लिमिट तक पैसे निकालने की छूट दी जाती है।”
ग्राहकों को क्या करना चाहिए?
एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर कोई बैंक वित्तीय संकट में है या उसके खिलाफ कोई कार्रवाई हो रही है, तो ग्राहकों को घबराने के बजाय समझदारी से कदम उठाने चाहिए।
ग्राहकों को सबसे पहले DICGC बीमा कवर की जांच करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करनी चाहिए कि आपका बैंक डिपॉजिट इंश्योरेंस के तहत आता है या नहीं। इसके अलावा ग्राहकों को सभी पैसे एक ही बैंक में रखने के बजाय, अलग-अलग बैंकों में जमा करना चाहिए ताकि जोखिम कम हो। साथ ही बैंक की वित्तीय स्थिति पर नजर बनाए रखनी चाहिए और बैंक की बैलेंस शीट, क्रेडिट रेटिंग और सरकारी रिपोर्ट्स को समय-समय पर देखते रहना चाहिए।
बता दें कि सरकार और RBI लगातार बैंकिंग नियमों को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहे हैं। जमाकर्ताओं की सुरक्षा बढ़ाने के लिए DICGC बीमा राशि पहले 1 लाख ही थी जिसे बढ़ाकर 5 लाख कर दिया गया था। भविष्य में, यह संभव है कि इस सीमा को और बढ़ाया जाए या बैंकिंग संकट से निपटने के लिए नए नियम बनाए जाएं। हालांकि, ऐसे मौके पर अगर बैंक का पुनर्गठन या विलय किया जाता है, तो ग्राहकों की पूरी जमा राशि भी सुरक्षित रह सकती है। इसलिए, जमाकर्ताओं को अपनी जमा राशि को लेकर सतर्क रहना चाहिए और वित्तीय निर्णय सोच-समझकर लेने चाहिए।
सारांश:
अगर बैंक डूब जाए या RBI किसी बैंक पर प्रतिबंध लगा दे, तो ग्राहकों का पैसा कैसे सुरक्षित रहता है? एक्सपर्ट के अनुसार, आरबीआई के नियमों के तहत, ग्राहकों को एक निश्चित सीमा तक उनका पैसा मिलता है, जो 5 लाख रुपये तक हो सकता है।