18 अप्रैल 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) – पिछले छह महीनों में इक्विटी से मिलने वाले रिटर्न में गिरावट आई है, जिसका कारण टैरिफ के चलते बढ़ी अस्थिरता, ऊंचे वैल्यूएशन और कम होते कॉर्पोरेट अर्निंग्स हैं। दूसरी ओर, फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) से मिलने वाले रिटर्न में भी कमी आने लगी है क्योंकि रीपो रेट (Repo Rate) में कटौती के चलते बैंकों ने अपनी जमा दरें घटा दी हैं। ऐसे में जब निवेशकों की दो पसंदीदा एसेट क्लास—इक्विटी और एफडी—दबाव में हैं, तो जरूरी है कि वे इन चुनौतीपूर्ण हालातों से निपटने के लिए एक सोच-समझकर बनाई गई स्ट्रैटेजी अपनाएं।

कई एसेट क्लास का प्रदर्शन कमजोर

पिछले कुछ महीनों में कई एसेट क्लास ने कमजोर प्रदर्शन किया है। यूनियन एसेट मैनेजमेंट कंपनी के इक्विटी हेड संजय बेम्बालकर कहते हैं, “अगर हम वित्त वर्ष 2024–25 के अंत में रिटर्न्स को देखें, तो इक्विटी ने पिछले वर्षों की कुछ कमाई गंवा दी और डेट व गोल्ड दोनों की तुलना में कमजोर प्रदर्शन किया।”

मिडकैप और स्मॉलकैप इक्विटी फंड्स ने पिछले छह महीनों में औसतन 13.5% से 15.7% तक की गिरावट दर्ज की है, जिसका कारण ऊंचे वैल्यूएशन और कमजोर अर्निंग्स हैं। इक्वेंटिस वेल्थ एडवाइजरी सर्विसेज के फाउंडर और एमडी मनीष गोयल कहते हैं, “घरेलू इक्विटी में रियल एस्टेट, सीमेंट और ऑयल एंड गैस जैसे सेक्टर्स ने खासतौर पर कमजोर प्रदर्शन किया है।”

बेम्बालकर का यह भी कहना है कि हाल के समय में मोमेंटम फैक्टर (momentum factor) का प्रदर्शन भी कमजोर रहा है। अंतरराष्ट्रीय फंड्स, खासकर जो अमेरिकी इक्विटी से जुड़े हैं, उन्हें वैश्विक बाजार में आई गिरावट का झटका लगा है।

फिक्स्ड डिपॉजिट्स (FDs) से मिलने वाले रिटर्न्स में भी गिरावट आई है क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 2025 में अब तक कुल 50 बेसिस प्वाइंट की दर में कटौती की है। गोयल कहते हैं, “इससे एफडी से मिलने वाली यील्ड घट गई है और वास्तविक रिटर्न (real return) महंगाई की रफ्तार के आसपास ही टिक पाया है।”

इन एसेट क्लास का प्रदर्शन मजबूत

बाजार में अस्थिरता के बावजूद कुछ एसेट क्लासेस ने अच्छा प्रदर्शन किया है। गोल्ड एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड्स (Gold ETFs) ने पिछले एक साल में 28.3% का रिटर्न देकर पोर्टफोलियो को सुरक्षा दी है। बेम्बालकर कहते हैं, “टैरिफ वॉर और भू-राजनीतिक तनाव से पैदा हुई अनिश्चितता के कारण गोल्ड ने शानदार प्रदर्शन किया है।”

लार्जकैप इक्विटी अब निवेश के लिए आकर्षक हो गई हैं क्योंकि इनमें अर्निंग्स की स्थिरता है और वैल्यूएशन भी अब उचित स्तर पर हैं। गोयल कहते हैं, “निफ्टी 50 का 12 महीने आगे का प्राइस-टू-अर्निंग्स (P/E) रेश्यो करीब 20 है, जो इसके दीर्घकालिक औसत से लगभग 5% कम है। वित्त वर्ष 2025-26 में अर्निंग्स में 13-14% की बढ़ोतरी की उम्मीद है।”

फिक्स्ड-इनकम की बात करें तो, मध्यम और लंबी अवधि के बॉन्ड्स तथा AAA-रेटेड कॉरपोरेट बॉन्ड्स ने भी अच्छा प्रदर्शन किया है। इसका कारण महंगाई में नरमी और RBI का नीतिगत सहयोगी रुख (accommodative stance) रहा है।

इक्विटी के लिए इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजी

यूनियन एएमसी का इन-हाउस फेयर वैल्यू इंडिकेटर फरवरी 2025 में ‘आकर्षक जोन’ में पहुंच गया, जो लॉन्ग टर्म इक्विटी निवेशकों के लिए अनुकूल जोखिम-रिटर्न आउटलुक का संकेत देता है। बेम्बालकर का मानना है कि जैसे ही टैरिफ से जुड़ी आशंकाएं और नीतिगत अनिश्चितता कम होगी, भारत फिर से निवेशकों की पसंद बनेगा।

बेम्बालकर और गोयल दोनों लार्जकैप शेयरों को प्राथमिकता देने की सलाह देते हैं, क्योंकि इन कंपनियों की बैलेंस शीट मजबूत होती है, वैल्यूएशन आकर्षक हैं, अर्निंग्स की स्पष्टता है और ये अस्थिरता के समय भी टिकाऊ साबित होती हैं। गोयल घरेलू अर्थव्यवस्था से जुड़े उन सेक्टर्स को तरजीह देने की बात करते हैं, जिन्हें सरकारी नीतियों का समर्थन प्राप्त है।

अगर किसी निवेशक का स्मॉलकैप और मिडकैप में बहुत ज्यादा एक्सपोजर है, तो उसे कम करना चाहिए क्योंकि हालिया करेक्शन के बावजूद ये शेयर अभी भी महंगे हैं।

FD के लिए इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजी

भले ही एफडी की ब्याज दरें घट रही हों, लेकिन निवेशकों के पास विकल्प मौजूद हैं। लैडरअप एसेट मैनेजर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर राघवेंद्र नाथ कहते हैं, “निवेशक थोड़ा ज्यादा रिटर्न पाने के लिए इन्वेस्टमेंट-ग्रेड कॉरपोरेट बॉन्ड्स में आवंटन पर विचार कर सकते हैं। इसके अलावा वे गिल्ट फंड्स और डायनामिक बॉन्ड फंड्स में भी निवेश कर सकते हैं, ताकि सरकारी बॉन्ड यील्ड में संभावित गिरावट का लाभ मिल सके।”

वरिष्ठ नागरिकों के लिए नाथ कंजर्वेटिव हाइब्रिड और ऐसे एसेट एलोकेशन फंड्स की सलाह देते हैं, जिनमें डेट कंपोनेंट ज्यादा हो। नारंग टैक्स-फ्री और टैक्सेबल बॉन्ड्स, डेट फंड्स और आर्बिट्राज फंड्स में निवेश की सलाह देते हैं। वहीं, पोरवाल दो से तीन साल की अवधि वाले मीडियम ड्यूरेशन बॉन्ड्स को स्थिरता और यील्ड के लिहाज से बेहतर मानते हैं।

गोल्ड पोर्टफोलियो को रखेगा बैलेंस

सोना एक भरोसेमंद हेज और सुरक्षित निवेश विकल्प बना हुआ है। पोरवाल कहते हैं, “पोर्टफोलियो में 5–10% तक का गोल्ड एलोकेशन उसकी मजबूती बढ़ा सकता है।” नारंग भी इससे सहमत हैं और बताते हैं कि डॉलर में कमजोरी और अमेरिका की 10-वर्षीय सरकारी बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी के बीच सेंट्रल बैंकों की ओर से गोल्ड की खरीद बढ़ रही है।

हालांकि, राघवेंद्र नाथ हालिया तेजी के बाद गोल्ड में और ज्यादा निवेश बढ़ाने को लेकर सतर्क रहने की सलाह देते हैं। वे कहते हैं, “वर्तमान एसेट एलोकेशन को बनाए रखना ही ज्यादा समझदारी भरा कदम होगा।”

पोर्टफोलियो स्ट्रैटेजी और रिव्यू

डायवर्सिफिकेशन और तयशुदा एसेट एलोकेशन पर टिके रहना आज भी बेहद जरूरी है। नारंग कहते हैं, “डायवर्सिफिकेशन यह सुनिश्चित करती है कि अगर कुछ एसेट या प्रोडक्ट्स बाजार गिरावट से प्रभावित होते हैं, तो अन्य से सकारात्मक प्रभाव मिल सकता है।” गोयल कहते हैं कि पोर्टफोलियो में क्वालिटी और टिकाऊपन (resilience) पर खास ध्यान देना चाहिए। बाजार में गिरावट लंबी अवधि में वेल्थ बनाने का मौका भी देती है। राघवेंद्र नाथ कहते हैं, “जो एसेट क्लास अभी कम वैल्यू पर हैं, उनमें सोच-समझकर धीरे-धीरे निवेश बढ़ाएं।”

भावनाओं में बहकर पैनिक सेलिंग से बचें, क्योंकि इससे अक्सर नुकसान होता है और बाजार में रिकवरी का लाभ लेने का मौका छिन जाता है। बाजार में गिरावट आपको असली उतार-चढ़ाव सहने की क्षमता का आकलन करने का मौका देती है। पोरवाल कहते हैं, “अपने एसेट एलोकेशन की समीक्षा करें और सुनिश्चित करें कि यह आपकी जोखिम सहने की क्षमता और निवेश अवधि के अनुरूप है।”

अत्यधिक केंद्रित निवेश से बचें और पोर्टफोलियो में तरलता (liquidity) बनाए रखें। नारंग यह भी सलाह देते हैं कि भविष्य के कैपिटल गेन को संतुलित करने के लिए मौजूदा घाटे को टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग के रूप में उपयोग करें।

बाजार में गिरावट के दौरान पूरी तरह से बाहर निकलकर नीचे के स्तर पर दोबारा निवेश की योजना बनाना भी सही स्ट्रैटेजी नहीं है। पोरवाल कहते हैं, “यह स्ट्रैटेजी लगातार अपनाना प्रोफेशनल निवेशकों के लिए भी मुश्किल होता है। रिकवरी वाले महत्वपूर्ण दिनों को मिस करना लंबे समय में रिटर्न को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।”

पैसा कैसे लगाएं?

निवेशकों को अपनी SIP (सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) जारी रखनी चाहिए। गोयल कहते हैं, “बाजार में गिरावट के दौरान निवेश करने से लागत औसतन कम हो सकती है, जिससे लॉन्ग टर्म में बेहतर रिटर्न मिलने की संभावना बढ़ जाती है।”

बाजार में बढ़ी अस्थिरता के बीच एकमुश्त निवेश (lump sum) को चरणबद्ध तरीके से करना बेहतर होता है। बेम्बालकर कहते हैं, “निवेशकों को इक्विटी में निवेश करते समय SIP रूट को अपनाना चाहिए और एकमुश्त राशि को 3 से 6 महीनों में धीरे-धीरे निवेश करना चाहिए।” नकदी को लिक्विड या अल्ट्रा शॉर्ट-टर्म डेट फंड्स में लगाना और उसे सिस्टमैटिक ट्रांसफर प्लान (STP) के जरिए निवेश करना एंट्री कॉस्ट को औसत करने में मदद कर सकता है। साथ ही, अगर बाजार 20% से ज्यादा गिरता है तो अधिक राशि निवेश करने के लिए कैश बफर रखना भी फायदेमंद हो सकता है।

सारांश:
इक्विटी मार्केट में गिरावट और FD पर कम ब्याज मिलने के बावजूद, लंबी अवधि में अच्छा रिटर्न पाने के लिए स्मार्ट पोर्टफोलियो बनाना जरूरी है। इसमें विविधता, रिस्क-रिवॉर्ड बैलेंस और सही निवेश रणनीतियों से बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।

Bharat Baani Bureau

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