29 अप्रैल 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) – जस्टिन ट्रूडो के खालिस्तानी यार की कनाडा में इज्जत नहीं बची है. खालिस्तानी नेता जगमीत सिंह बहुत उछल रहे थे. भारत के साथ ट्रूडो ने जब पंगा लिया, तब वह आग में घी डाल रहे थे. अब कनाडा के लोगों ने ही उन्हें सबक सिखा दिया है. जी हां, कनाडा चुनाव 2025 के नतीजे आने के साथ ही जगमीत सिंह की नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) 12 सीटें भी नहीं जीत पाई है. इस हार के साथ ही पार्टी ने अपना राष्ट्रीय दर्जा खो दिया है.

खबरों की मानें तो खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह की एडीपी ने 343 सीटों पर चुनाव लड़ा था. लेकिन चुनाव परिणाम आने तक उसे केवल आठ सीटों पर जीत मिली है. यहां जानना जरूरी है कि पिछले चुनाव में एनडीपी ने 24 सीटें जीती थीं. मगर इस चुनाव में कनाडा की जनता ने उसे भाव नहीं दिया. नतीजा एनडीपी ने राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी खो दिया.

दरअसल, सीबीसी यानी कैनेडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन के मुताबिक, कनाडा चुनाव के रिजल्ट आते ही बर्नाबी में NDP का मुख्यालय पूरी तरह से खाली पड़ा है. NDP के समर्थक यहां से जा चुके हैं. जगमीत सिंह यहीं से चुनाव लड़ रहा था. NDP हाउस ऑफ कॉमन्स में आधिकारिक पार्टी का दर्जा खोने जा रही है. ब्रिटिश कोलंबिया पर सबकी निगाहें टिकी हैं, NDP हर जगह बिखरती हुई दिखाई दे रही है.

खालिस्तानी समर्थक जगमीत को झटका
जगमीत सिंह एक धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय से आता है. वह उन चार मुख्य उम्मीदवारों में से एक था, जिसने प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के खिलाफ चुनाव जीतकर कनाडा का नेतृत्व करने की उम्मीद की थी. पिछले चुनाव में एनडीपी को 24 सीटें मिली थीं. इसके समर्थन से ही जस्टिन ट्रूडो ने काफी समय तक अपनी सरकार चलाई. अपनी सरकार चलाने के लिए ट्रूडो जगमीत का समर्थन लेते रहे. इसके बदले जगमीत अपना खालिस्तान प्रोपेगेंडा चलाता रहा

कौन है जगमीत सिंह?
जगमीत सिंह भारतीय मूल का कनाडाई नागरिक है. उसका जन्म पंजाब के बरनाला जिले के ठीकरिवाल गांव में हुआ था. उसका परिवार 1970 के दशक में कनाडा जाकर शिफ्ट हो गया. जगमीत सिंह भारत खिलाफ जहर उगलता रहा है. चाहे 1984 के सिख विरोधी दंगा हो या नागरिकता कानून. उसने कनाडा में भी खालिस्तानियों का मनोबल बढ़ाया.

सारांश:

कनाडा के हालिया चुनाव परिणामों में जस्टिन ट्रूडो के करीबी साथी और खालिस्तानी समर्थक जगमीत सिंह को जनता ने बुरी तरह हराया। चुनाव में उनकी हार ने यह साफ कर दिया कि कनाडा की जनता खालिस्तानी विचारधारा को स्वीकार नहीं करती। इस परिणाम ने सिंह को एक बड़ा सबक सिखाया और उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़ा कर दिया है।

Bharat Baani Bureau

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