18 जून 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : दुनिया का समुद्री परिवहन सिस्टम अब एक बड़े बदलाव की ओर बढ़ रहा है। बड़े माल ले जाने वाले जहाजों को चलाने के लिए अभी तक जो बंकर फ्यूल इस्तेमाल किया जाता है, वह बहुत ज़्यादा प्रदूषण फैलाने वाला होता है। यही वजह है कि आज ग्लोबल कार्गो शिपिंग दुनिया के कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग तीन प्रतिशत हिस्सा बन चुका है। यह मात्रा जापान जैसे विकसित देश के कुल उत्सर्जन से भी ज्यादा है। लेकिन अब जब अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन यानी इंटरनेशनल मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन ने यह टारगेट रखा है कि साल 2030 तक समुद्री परिवहन से होने वाले प्रदूषण को 30 प्रतिशत तक कम किया जाएगा और 2050 तक पूरी तरह समाप्त किया जाएगा, तब यह सवाल उठता है कि इतने भारी जहाजों को आखिर कैसे प्रदूषण मुक्त चलाया जाएगा।

ब्रिटेन की कंपनी कर रही इस पहल पर काम

ब्रिटेन की एक कंपनी कोर पावर इस चुनौती का समाधान लेकर सामने आई है। कंपनी ने कोरिया की एचडी कोरिया शिपबिल्डिंग और अमेरिका की यूटिलिटी कंपनी सदर्न के साथ मिलकर एक नई पहल की है, जिसका मकसद है ऐसे व्यापारिक जहाज बनाना जो परमाणु ऊर्जा से चलें और पूरी तरह कार्बन फ्री हों। इस योजना में बिल गेट्स द्वारा समर्थित क्लाइमेट टेक्नोलॉजी कंपनी टेरापावर का रिएक्टर इस्तेमाल किया जाएगा जिसकी टेस्टिंग साल 2029 में शुरू होगी और साल 2035 तक पहला जहाज समुद्र में उतारने की योजना है।

कोर पावर के CEO मीकल बो का कहना है कि यदि यह तकनीक आज ही उपलब्ध हो जाए तो इसकी मांग इतनी अधिक होगी कि पूरी दुनिया में इसे तुरंत अपनाने की होड़ लग जाएगी। उनके अनुसार, परमाणु ऊर्जा से चलने वाले जहाज न केवल पर्यावरण के लिहाज से बेहतर होंगे बल्कि लंबे समय में आर्थिक रूप से भी फायदेमंद साबित होंगे। इन जहाजों को बार बार ईंधन भरवाने की जरूरत नहीं पड़ेगी जिससे साल भर में लगने वाला करीब एक महीने का समय बच सकेगा। इसके अलावा ईंधन की चिंता न होने के कारण ये जहाज अपनी अधिकतम रफ्तार पर चल सकेंगे जिससे माल जल्दी पहुंचेगा और मुनाफा ज्यादा होगा। ईंधन टैंक के लिए जो जगह अब तक लगती थी वह अब माल ढोने के काम आ सकेगी और करीब 10% अधिक माल हर यात्रा में ले जाया जा सकेगा। मीकल बो का कहना है कि एक बार न्यूक्लियर फ्यूल डलवाने के बाद ऐसा जहाज 25 से 30 सालों तक बिना दोबारा ईंधन भरवाए काम कर सकता है जो किसी भी जहाज के पूरे जीवनकाल के बराबर होता है।

परमाणु ताकत से दौड़ने वाले जहाजों के सामने चुनौती भी

लेकिन इस क्रांति के रास्ते में कई बड़ी चुनौतियां भी हैं। सबसे पहली दिक्कत है बीमा की। दुनिया की कोई भी बीमा कंपनी फिलहाल किसी ऐसे व्यावसायिक जहाज को कवर करने को तैयार नहीं जो परमाणु ऊर्जा से चलता हो क्योंकि अगर कोई दुर्घटना होती है तो उससे होने वाला नुकसान बहुत व्यापक हो सकता है। इसके अलावा किसी बंदरगाह पर ऐसे जहाज को आने की अनुमति देने से पहले कड़े सुरक्षा नियम बनाने होंगे। वर्तमान में सिर्फ सैन्य बंदरगाहों पर ही परमाणु जहाजों को जगह मिलती है।

एक और बड़ी चिंता है सुरक्षा और आतंकवाद का खतरा। हालांकि इन जहाजों में ऐसा ईंधन इस्तेमाल होगा जिसमें हथियारों में इस्तेमाल होने लायक यूरेनियम की मात्रा नहीं होगी लेकिन यह फिर भी रेडियोधर्मी होगा। इससे समुद्री लुटेरों और आतंकवादी हमलों का खतरा बना रहेगा। कमर्शियल जहाज सैन्य जहाजों की तरह मजबूत नहीं होते इसलिए अगर किसी टक्कर या दुर्घटना में कोई रिसाव होता है तो रेडिएशन फैलने का बड़ा खतरा रहेगा।

अभी दुनिया में करीब 160 जहाज ऐसे हैं जो परमाणु ऊर्जा से चलते हैं लेकिन इनमें से अधिकांश नौसैनिक जहाज या रूस के आइसब्रेकर हैं। 1950 के दशक में अमेरिका ने कुछ सिविल जहाज परमाणु रिएक्टर के साथ बनाए थे लेकिन उनकी लागत अधिक होने और तकनीकी परेशानियों के चलते उन्हें बंद कर दिया गया था। अब फिर से इस विचार को नई तकनीक के साथ जीवित किया जा रहा है। टेरापावर जैसी कंपनियां अब ऐसे रिएक्टर विकसित कर रही हैं जो सामान्य दबाव पर काम करते हैं। इससे यदि कोई दुर्घटना होती है तो उसका असर सिर्फ जहाज तक सीमित रह सकता है और पास के बंदरगाह या अन्य जहाजों को खतरा नहीं होगा। लक्ष्य यह है कि आपात स्थिति की योजना बनाते समय सिर्फ उस जहाज को ध्यान में रखा जाए न कि पूरे बंदरगाह को।

जहाज कंपनियों को यह भी उम्मीद है कि न्यूक्लियर सिस्टम की शुरुआती लागत भले ही दोगुनी या तीन गुनी हो लेकिन 25 सालों के कुल ऑपरेशनल खर्च को देखें तो यह ट्रेडिशनल जहाजों से आधा पड़ेगा क्योंकि इन्हें बार बार ईंधन खरीदने की जरूरत नहीं होगी। कोरियाई कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट सांगमिन पार्क के अनुसार, यह तकनीक पर्यावरण के लिए तो अच्छी है ही लेकिन लॉन्गटर्म लागत के लिहाज से भी बेहद फायदेमंद साबित हो सकती है।

जहाज चलाने के लिए अन्य ईंधन विकल्पों की भी तलाश कर रहीं कंपनियां

इस बीच कई कंपनियां हाइड्रोजन, अमोनिया और मेथनॉल जैसे कार्बन मुक्त ईंधनों पर भी काम कर रही हैं। डेनमार्क की एपी मोलर मर्स्क कंपनी ने पहले ही मेथनॉल से चलने वाले जहाजों को उतारा है और कुछ कंपनियां जहाजों में पाल लगाने जैसे पारंपरिक तरीकों की ओर लौटने की भी कोशिश कर रही हैं। लेकिन कोर पावर और दूसरे जानकारों का कहना है कि जब बड़े जहाजों को हर बंदरगाह पर ऐसे ईंधन की बड़ी मात्रा में जरूरत होगी, तब तक उसकी ठीक से सप्लाई नहीं हो पाएगी।

इसी महीने इंटरनेशनल मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन की एक मीटिंग में न्यूक्लियर मर्चेंट शिप्स के लिए सुरक्षा नियमों में बदलाव पर चर्चा होगी। साथ ही अक्टूबर में ऐसे जहाजों पर वित्तीय दंड लगाने का प्रस्ताव भी पेश किया जा सकता है जो बहुत अधिक प्रदूषण फैलाते हैं।

अगर इन तमाम सुरक्षा और नीतिगत सवालों का समाधान हो सका तो परमाणु ऊर्जा से चलने वाले जहाज भविष्य में समुद्री परिवहन को पूरी तरह बदल सकते हैं। ये जहाज न केवल प्रदूषण को खत्म करेंगे बल्कि माल ढुलाई को तेज़, सस्ता और टिकाऊ भी बना सकते हैं। जलवायु संकट के इस दौर में यह एक बड़ी छलांग साबित हो सकती है।

सारांश:
समुद्री परिवहन में क्रांतिकारी बदलाव आ रहा है, क्योंकि अब परमाणु ऊर्जा से चलने वाले कमर्शियल जहाज तैयार किए जा रहे हैं। ये जहाज बिना पारंपरिक ईंधन के लगातार 30 साल तक चल सकेंगे। इससे न सिर्फ ईंधन की लागत बचेगी, बल्कि प्रदूषण में भी भारी कमी आएगी। यह तकनीक समुद्री दुनिया को अधिक टिकाऊ और ऊर्जा कुशल बनाने की दिशा में बड़ा कदम है।

Bharat Baani Bureau

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