09 जुलाई 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा को उनके पद से हटाने के लिए संसद के मॉनसून सत्र में प्रस्ताव लाने की योजना पर केंद्र सरकार काम कर रही है. मार्च 2025 में जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लगने की घटना के बाद वहां से जली हुई नोटों की गड्डियां बरामद हुई थीं, जिसके बाद भ्रष्टाचार के आरोपों ने उनके खिलाफ कार्रवाई को तेज कर दिया. उस वक्त जस्टिस वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट में जज थे. इसको लेकर सरकार ने विपक्षी दलों के साथ विचार-विमर्श शुरू कर दिया है और कई प्रमुख दलों ने सैद्धांतिक रूप से इस प्रस्ताव का समर्थन करने की सहमति दे दी है. केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा है कि जल्द ही सांसदों के हस्ताक्षर जुटाने की प्रक्रिया शुरू होगी, हालांकि यह अभी तय नहीं है कि प्रस्ताव लोकसभा में लाया जाएगा या राज्यसभा में.

भारत के संविधान के अनुच्छेद 124(4) और जजेस (इन्क्वायरी) एक्ट, 1968 के तहत किसी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज को केवल ‘सिद्ध कदाचार’ या ‘अक्षमता’ के आधार पर हटाया जा सकता है. इसके लिए संसद के दोनों सदनों में कुल सदस्यता की बहुमत और उपस्थित व मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित होना जरूरी है. प्रस्ताव लाने के लिए लोकसभा में कम से कम 100 और राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर चाहिए. प्रस्ताव स्वीकार होने पर लोकसभा स्पीकर या राज्यसभा सभापति एक तीन सदस्यीय जांच समिति गठित करते हैं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट का एक जज, हाई कोर्ट का एक मुख्य न्यायाधीश और एक प्रख्यात विधिवेत्ता शामिल होता है.

सुप्रीम कोर्ट ने आंतरिक जांच समिति बनाई थी

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही एक आंतरिक जांच समिति गठित की थी, जिसमें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और कर्नाटक हाई कोर्ट के एक जज शामिल थे. इस समिति ने 50 से अधिक गवाहों के बयान दर्ज किए और मई 2025 में अपनी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा को कदाचार का दोषी पाया. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने इस आधार पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की थी.

हालांकि, सरकार के सामने कई चुनौतियां हैं. कुछ विपक्षी नेता जैसे माकपा के जॉन ब्रिटास ने सरकार पर चुनिंदा कार्रवाई का आरोप लगाया है. उन्होंने जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ 55 सांसदों द्वारा दी गई हटाने की याचिका पर कार्रवाई में देरी का मुद्दा उठाया, जो एक विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने के लिए विवादों में हैं. इसके अलावा कपिल सिब्बल जैसे नेताओं ने सरकार के इरादों पर सवाल उठाए हैं, यह दावा करते हुए कि उनकी इंडिया गठबंधन सरकार को जस्टिस वर्मा के खिलाफ प्रस्ताव लाने से रोकने की कोशिश करेगा.

क्या बनेगा इतिहास

इतिहास में भारत में किसी भी जज को संसद द्वारा हटाया नहीं गया है. 2011 में कलकत्ता हाई कोर्ट के जज जस्टिस सौमित्र सेन के खिलाफ राज्यसभा में प्रस्ताव पारित हुआ था, लेकिन उन्होंने लोकसभा में मतदान से पहले इस्तीफा दे दिया था. इसी तरह 1993 में सुप्रीम कोर्ट के जज वी. रामास्वामी के खिलाफ प्रस्ताव लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत न मिलने के कारण विफल हो गया था.

जस्टिस वर्मा ने आरोपों को साजिश करार देते हुए खारिज किया है, लेकिन उनकी बर्खास्तगी की प्रक्रिया अब तेज हो रही है. सरकार इस मामले को गैर-राजनीतिक बताते हुए सभी दलों के साथ सहमति की कोशिश कर रही है. यदि यह प्रस्ताव पारित होता है, तो यह भारत के इतिहास में पहली बार होगा जब कोई जज संसद द्वारा हटाया जाएगा. लेकिन, विपक्ष के कुछ नेताओं की आपत्तियां और प्रक्रियात्मक जटिलताएं इस राह में अड़चन बन सकती हैं.

सारांश:
कैश कांड में फंसे जस्टिस वर्मा को लेकर सरकार उनकी छुट्टी की प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी में है। हालांकि इस संवेदनशील मुद्दे पर कानूनी और संवैधानिक पेच सरकार की राह में रोड़ा बने हुए हैं। विपक्ष भी इस मुद्दे पर स

Bharat Baani Bureau

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