30 जुलाई 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : पूर्व नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर (NSA) शिवशंकर मेनन ने कहा कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और चीन में भारत के पहले राजदूत के.एम. पणिक्कर की नीतियों की आज आलोचना करना आसान है, क्योंकि अब वे खुद को बचाने के लिए इस दुनिया में नहीं हैं. इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में इतिहासकार नारायणी बसु की लिखी पणिक्कर की जीवनी ‘ए मैन फॉर ऑल सीजन्स’ के विमोचन के मौके पर मेनन ने कहा कि जैसे नेहरू को 1962 की चीन युद्ध की हार के लिए दोषी ठहराया गया, वैसे ही पणिक्कर को भी बलि का बकरा बनाया गया.
मेनन ने कहा, नेहरू को दोष देना आसान है. लोग ये नहीं पूछते कि बाकी क्या कर रहे थे. जब कोई जवाब देने को नहीं होता, तो उसे जिम्मेदार ठहरा देना सबसे सरल रास्ता होता है. मेनन ने कहा कि यही बात पणिक्कर और चीन नीति पर भी लागू होती है. बलि का बकरा बनाना संस्थागत तौर पर सुविधाजनक होता है. खासकर नौकरशाही के लिए. पणिक्कर को अप्रैल 1948 में चीन में राजदूत नियुक्त किया गया था. एक साल बाद चीन में कम्युनिस्ट सत्ता में आए. 1950 में जब चीन ने तिब्बत में सैन्य कार्रवाई की, तो उन पर आरोप लगा कि उन्होंने नेहरू को समय रहते जानकारी नहीं दी.
तिब्बत का क्या नतीजा
मेनन ने कहा कि हम अब जानते हैं कि तिब्बत और चीन नीति का क्या नतीजा हुआ, लेकिन उस वक्त भविष्य के बारे में कोई स्पष्टता नहीं थी. पणिक्कर के पास सीमित खुफिया साधन थे. दिल्ली में भ्रम की स्थिति थी. और वे प्रोफेशनल डिप्लोमैट भी नहीं थे, इसलिए सहज ही भरोसा कर लेते थे. उन्होंने कहा कि तिब्बत संकट के वक्त पणिक्कर चीनी अधिकारियों की बातों पर ही निर्भर थे. न तो उनके पास स्वतंत्र सत्यापन का स्रोत था, न ही स्पष्ट दिशा-निर्देश. यहां तक कि विदेश मंत्रालय से मिलने वाले निर्देश भी हर हफ्ते बदलते रहते थे.
सारांश:
पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) शिवशंकर मेनन ने भारत की चीन नीति पर हो रही आलोचनाओं पर तीखा जवाब दिया। उन्होंने कहा कि आज नेहरू और पणिक्कर को दोष देना आसान है क्योंकि वे अब जवाब देने के लिए जीवित नहीं हैं। मेनन ने जोर देकर कहा कि मौजूदा नीतियों और निर्णयों की समीक्षा होनी चाहिए न कि ऐतिहासिक व्यक्तित्वों पर सारा दोष मढ़ा जाए। यह बयान भारत-चीन संबंधों और विदेश नीति की दिशा को लेकर चल रही बहस के संदर्भ में दिया गया।