31 जुलाई 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : हाड़ मांस का शरीर गठरी बन चुका है. पीठ और पेट एक हो चले हैं. धमनियों का रक्तप्रवाह रुक रहा है. दाने-दाने को मोहताज बच्चे काल की गाल में समा रहे हैं. राहत की ठेही पर बढ़े हाथ बम धमाकों से कट रहे हैं. अक्टूबर, 2023 में हमास ने इजरायल में जो बर्बरता दिखाई उसका खामियाजा फलस्तीनी भुगत रहे हैं. अब तक 60000 लोग इजरायली हमले में मारे गए हैं. हर तीन घंटे पर एक बच्चे की मौत हो रही है. त्राहिमाम सब कर रहे. दिल किसी का पसीज नहीं रहा. 90 परसेंट घर जमीदोंज हो चुके हैं. टेंट में बूढ़े और बच्चे दिन गिन रहे हैं. खाने के लिए कुछ नहीं बचा है. लेकिन फिर भी अकाल या भुखमरी घोषित नहीं हो सकती. हर दिन 2000 बच्चे जो नहीं मर रहे. आप सही पढ़ रहे हैं. इंटीग्रेटेड फूड सेक्योरिटी फेज क्लासिफिकेशन (आईपीसी) की तीन शर्तों में एक शर्त ये है. हर 10,000 की आबादी में पांच बच्चों की मौत रोज हो तभी अकाल घोषित होगा. फलस्तीनियों की आबादी लगभग 20 लाख है. इस लिहाज से जरूरी संख्या एक हजार बैठती है.

इजरायल ने नाकेबंदी में ढील दी है लेकिन दो करोड़ की आबादी तक राशन पहुंचाना आसान नहीं है. खास कर तब जब राशन के ट्रक की तरफ बढ़ती हाथें गोलियों से छलनी हो जाए. गाजा के 90 परसेंट हिस्से पर इजरायली सेना की नजर है. और वो किसी भी शक का सफाया करने में यकीन रखते हैं. चाहे बच्चे मरे या बूढ़े. अब सवाल उठता है कि आईपीसी ने भुखमरी की घोषणा क्यों नही की. संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम का कहना है कि गाजा का भुखमरी संकट हताशे के स्तर तक पहुंच गया है. इस मीहने अब तक 82 लोग कुपोषण से मर चुके हैं. इनमें 24 बच्चे हैं. आईपीसी ने इससे पहले 2004 में सोमालिया को भुखमरी से पीड़ित घोषित किया था. इसके बाद 2017 और 2020 में सूडान के एक खास हिस्से को अकालपीड़ित घोषित किया गया.

आईपीसी किसी इलाके को भुखमरी में मानता है जब ये तीन शर्तें पूरी हों..

1.20% घरों में खाने की बहुत कमी हो, यानी लोग भूखे रहें.
2. 6 महीने से 5 साल के 30% बच्चों में गंभीर कुपोषण हो, या 15% बच्चे इतने कमजोर दिखें कि ऊपरी बाजू कंकाल जैसा दिखाई दे.
3. प्रति दस हजार की आबादी में से कम से कम 2 लोग या 4 बच्चे रोज भूख या बीमारी से मरें.

तरस आता है ऐसे मानदंड बनाने वालों पर. जरा सोचिए. गाजा की आबादी के हिसाब से हम एक हजार बच्चों की रोजाना मौत चाहते हैं तब ये तय करेंगे कि भुखमरी की स्थिति है. दूसरा सवाल उठता है कि ये डेटा कौन जुटाए. हम ये तो जानते हैं कि हर दिन 80 लोग मारे जा रहे. लेकिन बम से मर रहे या भूख से ये कौन तय करेगा. आईपीसी आंकड़ों के झोल में फंसी है. उसे ये नहीं सूझ रहा कि भूख से तड़पता आदमी ही राशन सेंटर पर मार दिया जाता है. संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए ये एक चुनौती बन गया है. उसकी कोई सुन भी नहीं रहा. डोनाल्ड ट्रंप तो खिलौना समझ रहे.

ये सामान्य ज्ञान है कि कुपोषण या भूख के बाद बच्चे को बीमारी होगी , इन्फेक्शन होगा और उससे मौत हो सकती है. अब कोई कहे कि बच्चा तो बीमारी से मरा है, ये बचकानी बात होगी. अभी तक तो हजारों बच्चे मर चुके हैं. गाजा पट्टी का मुख्य अस्पताल इजरायली बमबारी में मैदान बन चुका है. जो अस्पताल बचे हैं वहां इलाज के लिए दवा नहीं है. गाजा की 90 प्रतिशत आबादी विस्थापित है. विदेशों से राहत भरे टैंकर इजरायल समंदर में ही रोक रहा है. ऐसे में हम एक मानवीय त्रासदी की तरफ बढ़ रहे हैं.

सारांश:
फलस्तीन में भुखमरी और मानवीय संकट अपने चरम पर है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निष्क्रियता पर सवाल उठ रहे हैं। एक तीखी प्रतिक्रिया में कहा गया कि “क्या हर दिन एक हजार फलस्तीनी बच्चों की मौत के बाद ही दुनिया मानेगी कि भुखमरी है?” यह बयान युद्धग्रस्त गाज़ा में जारी हालात और दुनिया की खामोशी पर कड़ी निंदा के रूप में देखा जा रहा है — और इसे “लानत है” जैसे शब्दों से व्यक्त किया गया है

Bharat Baani Bureau

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *