31 जुलाई 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : 1 अगस्त 2025 से अमेरिका ने भारत से आने वाले सामानों पर 25% टैक्स (टैरिफ) लगाने का ऐलान किया है। यह फैसला अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अचानक लिया, जिससे दुनिया भर के व्यापारियों और निवेशकों को बड़ा झटका लगा है। इस कदम से भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्तों में तनाव बढ़ गया है। साथ ही, भारत की आर्थिक विकास दर, निर्यात कारोबार और कंपनियों की कमाई पर भी इसका असर पड़ सकता है।

इस मुद्दे पर तीन बड़ी अंतरराष्ट्रीय ब्रोकरेज कंपनियों – गोल्डमैन सैक्स, नोमुरा और बार्कलेज – ने अपनी-अपनी रिपोर्ट जारी की हैं। गोल्डमैन सैक्स का कहना है कि इस फैसले से भारत की जीडीपी (अर्थव्यवस्था की ग्रोथ रेट) में 0.3% की गिरावट आ सकती है। नोमुरा का मानना है कि असर थोड़ा कम, यानी 0.2% तक हो सकता है। वहीं, बार्कलेज का अनुमान गोल्डमैन सैक्स से मिलता-जुलता है, लेकिन वह मानता है कि भारत की अर्थव्यवस्था घरेलू मांग पर टिकी होने के कारण यह असर सीमित रहेगा।

इन तीनों रिपोर्टों में यह भी बताया गया है कि यह नया टैक्स भारत पर कैसे असर डालेगा – चाहे वह सीधे निर्यात पर हो, या निवेश और कारोबार के माहौल पर। इसके साथ ही, शेयर बाजार की चाल और भारतीय रुपये की कीमत पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, इस पर भी रिपोर्ट में विस्तार से जानकारी दी गई है।

भारत पर अमेरिकी टैरिफ: व्यापार में खटास और दबाव की राजनीति

गोल्डमैन सैक्स का कहना है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने यह फैसला इसलिए लिया है क्योंकि भारत ने रूस से ऊर्जा और रक्षा के सौदे किए हैं, जिससे अमेरिका नाराज़ है। नोमुरा की रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका की नाराज़गी सिर्फ व्यापार घाटे की वजह से नहीं है, बल्कि उसे भारत की रूस पर बढ़ती निर्भरता भी चिंता में डाल रही है।

अमेरिका पहले ही स्टील, एलुमिनियम और गाड़ियों जैसे सामानों पर भारत से आने वाले एक्सपोर्ट पर अलग-अलग टैक्स लगा चुका है। अब नए ‘जवाबी टैक्स’ (reciprocal tariff) के बाद भारत से अमेरिका भेजे जाने वाले सामानों पर कुल मिलाकर करीब 26% टैक्स लग सकता है।

बार्कलेज का मानना है कि यह फैसला अमेरिका की ओर से भारत पर दबाव बनाने की एक सख्त रणनीति है। इससे भारत को नुकसान हो सकता है, क्योंकि भारत अब चीन, वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे देशों के मुकाबले कम फायदे में रहेगा। इन देशों को अमेरिका की ओर से टैक्स या व्यापार में ऐसी सख्ती का सामना नहीं करना पड़ रहा है।

भारत-अमेरिका व्यापार और एक्सपोर्ट पर असर: बढ़ते टैक्स से चिंता

गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 10 सालों में भारत ने अमेरिका के साथ व्यापार में काफी बढ़त हासिल की है। भारत को अमेरिका के साथ व्यापार में अब हर साल लगभग 40 बिलियन डॉलर का फायदा हो रहा है। इसमें सबसे ज़्यादा योगदान इलेक्ट्रॉनिक्स, दवाइयों और कपड़े जैसे सेक्टरों का है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा एक्सपोर्ट बाजार है – भारत का लगभग 18% एक्सपोर्ट वहीं जाता है, जो देश की जीडीपी का करीब 2.2% है। ऐसे में अगर अमेरिका टैक्स बढ़ाता है, तो इसका सीधा असर भारत की फैक्ट्रियों, एक्सपोर्ट की रफ्तार और नौकरियों पर पड़ेगा।

नोमुरा का कहना है कि दवाइयों, गहनों, गाड़ियों के पुर्जों, मोबाइल और मशीनों जैसे सेक्टर पर ज़ोरदार असर पड़ेगा। खासतौर पर टेक्सटाइल और गहनों का कारोबार, जो पहले ही बहुत कम मुनाफे पर चल रहा है, अब और मुश्किल में आ सकता है क्योंकि उनके लिए विदेशी बाजारों में मुकाबला करना और मुश्किल हो जाएगा।

बार्कलेज की रिपोर्ट बताती है कि पहले अमेरिका भारत से आने वाले सामानों पर औसतन 2.7% टैक्स लेता था, लेकिन अब यह बढ़कर 20.6% हो गया है। यानी टैक्स करीब 8 गुना बढ़ गया है, जिससे भारत की कंपनियों के लिए अमेरिका में माल बेचना महंगा और मुश्किल हो सकता है।

जीडीपी ग्रोथ पर असर और निवेश को लेकर बढ़ती चिंता

गोल्डमैन सैक्स का कहना है कि अगर अमेरिका के ये टैरिफ लंबे समय तक लागू रहते हैं, तो साल 2025 में भारत की जीडीपी ग्रोथ में सीधा 0.3% की कमी आ सकती है। इसके अलावा अमेरिकी नीतियों में लगातार हो रहे बदलाव और अनिश्चितता की वजह से कंपनियां नए निवेश करने से बच सकती हैं या उन्हें टाल सकती हैं। इससे भी भारत को 0.3% तक का परोक्ष नुकसान हो सकता है।

नोमुरा की राय थोड़ी नरम है। उनकी रिपोर्ट में कहा गया है कि वे फिलहाल भारत की जीडीपी ग्रोथ को 6.2% पर मानकर चल रहे हैं, लेकिन अगर 25% टैरिफ लंबे समय तक लगे रहे, तो ग्रोथ में करीब 0.2% की गिरावट हो सकती है। खासकर छोटे और मझोले उद्योग (MSME), जो अपने उत्पादों का बड़ा हिस्सा एक्सपोर्ट करते हैं, उन्हें इसका बड़ा नुकसान होगा। साथ ही, विदेशी निवेशकों की तरफ से भारत में पैसे लगाने को लेकर झिझक बढ़ सकती है।

बार्कलेज का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था काफी हद तक घरेलू मांग पर आधारित है और अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर इसकी निर्भरता सीमित है। इसीलिए वे मानते हैं कि जीडीपी ग्रोथ पर असर सीमित रहेगा — लगभग 0.3% तक।

महंगाई और ब्याज दरों पर असर: आरबीआई के सामने नई चुनौती

गोल्डमैन सैक्स का कहना है कि अगर अमेरिका द्वारा लगाए गए ये टैरिफ बड़े स्तर पर असर दिखाने लगे, तो भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) पर ब्याज दरों में और कटौती का दबाव बन सकता है। जून में पहले ही RBI ने 50 बेसिस पॉइंट की कटौती की थी, और अब अक्टूबर या दिसंबर में एक और कटौती की संभावना जताई जा रही है।

नोमुरा का अनुमान और भी साफ है। उसके मुताबिक अगस्त में ही RBI द्वारा ब्याज दरों में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती की संभावना अब 35% तक पहुंच गई है- जो पहले सिर्फ 10% थी। नोमुरा को लगता है कि वित्त वर्ष 2025-26 में खुदरा महंगाई सिर्फ 2.8% रहेगी, जो रिज़र्व बैंक के 4% के टारगेट से काफी नीचे है। ऐसे में RBI दरों को और नीचे ला सकता है ताकि कमजोर होती अर्थव्यवस्था और गिरते एक्सपोर्ट को कुछ राहत दी जा सके।

बार्कलेज भी मानता है कि फिलहाल महंगाई काफी कम बनी हुई है, जिससे RBI को ब्याज दरों में लचीलापन बरतने का मौका मिल सकता है। हालांकि बार्कलेज ने यह भी जोड़ा कि भारतीय रुपये की हाल की कमजोरी निवेशकों की घबराहट की वजह से है और यह गिरावट कुछ ज्यादा ही हो गई है यानी ओवरडन है।

शेयर बाजार का नजरिया: आने वाले दिनों में गिरावट और उतार-चढ़ाव की आशंका

गोल्डमैन सैक्स का कहना है कि इस टैरिफ का सीधा असर भले ही कम हो, लेकिन इसका गलत असर पूरे बाजार के माहौल और विदेशी निवेशकों के भरोसे पर पड़ सकता है। अभी MSCI इंडिया इंडेक्स में शामिल कंपनियों की कुल कमाई का सिर्फ 2% हिस्सा ही अमेरिका को निर्यात होता है। इसके बावजूद, गोल्डमैन मानता है कि इसके चलते कंपनियों की कमाई (EPS) में 2% तक की गिरावट हो सकती है। उन्होंने 2025 और 2026 के लिए कंपनियों की कमाई में 12% और 14% बढ़ोतरी का अनुमान बनाए रखा है, लेकिन इसमें गिरावट का खतरा भी बना हुआ है।

नोमुरा भी इस बात से सहमत है। उसके अनुसार, फार्मा और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सेक्टर पर अभी कोई सीधा असर नहीं होगा, लेकिन अगर इन पर भी अलग से टैक्स (सेक्टोरल टैरिफ) लगते हैं, तो इनके मुनाफे पर असर पड़ सकता है। साथ ही, छोटे और मझोले उद्योग (SMEs) और टेक्सटाइल कंपनियों की हालत और कमजोर हो सकती है।

बार्कलेज की राय है कि शेयर बाजार में आने वाले समय में उतार-चढ़ाव बना रहेगा। हालांकि वह यह भी मानता है कि भारत की अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है और लंबी अवधि में बाजार फिर से संभल सकता है।

मध्यम समय में राहत की उम्मीद: सप्लाई चेन भारत की ओर शिफ्ट हो सकती है

नोमुरा और गोल्डमैन सैक्स दोनों मानते हैं कि “चाइना प्लस वन” नीति से भारत को लंबे समय में फायदा हो सकता है। कई अमेरिकी कंपनियां अब इलेक्ट्रॉनिक्स, गाड़‍ियों और कपड़े जैसे सेक्टर में चीन की जगह भारत को चुनने की सोच रही हैं। निवेशकों को लगता है कि सप्लाई चेन को चीन से हटाकर भारत में लाना एक बेहतर विकल्प बन सकता है।

बार्कलेज का कहना है कि भारत इस मौके का फायदा फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) के जरिए उठा सकता है। भारत सरकार पहले से ही यूरोप, ब्रिटेन और ASEAN देशों के साथ व्यापार समझौते करने पर काम कर रही है।

हालांकि नोमुरा का मानना है कि अभी के समय में भारत को वियतनाम जैसे देशों जितना टैरिफ का फायदा नहीं मिलेगा। लेकिन लंबे समय में भारत की स्थिति मजबूत हो सकती है, खासकर जब सरकार “पीएलआई स्कीम” यानी उत्पादन को बढ़ावा देने वाली योजनाएं चला रही है।

नीतियों में बदलाव जरूरी: व्यापार और फाइनेंस की रणनीति बदलनी होगी

अमेरिका द्वारा टैरिफ (आयात शुल्क) बढ़ाने का फैसला भारत सरकार के लिए एक साफ संकेत है कि उसे अमेरिका के साथ व्यापार समझौते (Trade Deal) की बातचीत को अब तेज करना चाहिए। नोमुरा का कहना है कि अगर सरकार कृषि और डेयरी सेक्टर को छोड़कर बाकी क्षेत्रों में थोड़ा लचीलापन दिखाए, तो समझौता जल्दी हो सकता है।

साथ ही, सरकार को छोटे और मझोले कारोबारों (MSMEs) की मदद के लिए ज्यादा कदम उठाने होंगे- जैसे कम ब्याज पर लोन देना, एक्सपोर्ट क्रेडिट बढ़ाना और RoDTEP जैसी स्कीम्स से उन्हें फायदा पहुंचाना।

जहां तक सरकार के खर्च और वित्तीय घाटे (Fiscal Deficit) की बात है, गोल्डमैन, नोमुरा और बार्कलेज- सभी का मानना है कि सरकार अपने तय 4.4% GDP वाले लक्ष्य को बनाए रखेगी। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि एक्सपोर्ट करने वाले कारोबारों को जल्द से जल्द सरकार की मदद मिले, ताकि वे इस झटके से उबर सकें।

Bharat Baani Bureau

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