वाशिंगटन 26 अगस्त 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस समय ‘टैरिफ किंग’ बने हुए हैं. उन्होंने तनाव बढ़ाते हुए भारत से आने वाले सामान पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाने का ऐलान किया है. ये बुधवार से लागू होगा. यही नहीं, उन्होंने चीन को 200% तक टैरिफ की धमकी दे डाली है. इसका मतलब है कि भारत और चीन से अमेरिका जाने वाले सामान महंगे हो जाएंगे, जिससे व्यापार पर बड़ा असर पड़ सकता है. भारत पर यह टैरिफ इसलिए लगाया गया है क्योंकि वह रूस से तेल खरीद रहा है, जिसे अमेरिका पसंद नहीं कर रहा. ट्रंप की सख्ती से चीन परेशान हो गया है और उसने तुरंत अपना दूत अमेरिका भेज दिया है.

दरअसल चीन दुनिया के 90% मैग्नेट (चुंबक) बनाता है, जो स्मार्टफोन और चिप्स जैसी चीजों में इस्तेमाल होते हैं. अमेरिका ने इन पर टैरिफ बढ़ाया तो चीन ने जवाब में अपने दुर्लभ मिनरल्स (रेयर अर्थ) के निर्यात पर पाबंदी लगा दी. अब चीन को डर है कि अगर ट्रंप ने अपने खास दोस्त भारत को नहीं छोड़ा, तो वह और सख्ती कर सकता है. इसी डर से चीन ने अपने बड़े व्यापार अधिकारी ली चेंगगैंग को अमेरिका भेजा है. ली वहां अमेरिकी अधिकारियों और कारोबारियों से मिलेंगे. उनका मकसद है कि दोनों देशों के बीच चल रहे व्यापार युद्ध को थोड़ा ठंडा किया जाए.

दोनों देशों में 90 दिन का समझौता

अभी दोनों देशों ने 90 दिन के लिए टैरिफ युद्ध रोकने का समझौता किया है, लेकिन ट्रंप की सख्ती से यह समझौता टिकेगा या नहीं, यह साफ नहीं है. चीन चाहता है कि अमेरिका टैरिफ कम करे और उसे अपनी नई तकनीकों तक पहुंच दे. लेकिन बदले में अमेरिका क्या मांगेगा, यह बड़ा सवाल है. चीन पहले भी 2020 में ट्रंप के साथ ‘फेज 1’ समझौता कर चुका है, जिसमें उसने अमेरिका से ज्यादा सामान खरीदने का वादा किया था. लेकिन अब वह और बेहतर सौदा चाहता है.

चीन ने क्यों भेजा अपना आदमी?

अमेरिका ने चीनी सामान पर 30% तक ड्यूटी लगाई हुई है, जबकि चीन ने अमेरिकी सामान पर 10% टैरिफ लगाया है.एक्सपर्ट्स की चेतावनी है कि अगर टैरिफ 35% से ऊपर जाते हैं तो चीनी एक्सपोर्ट लगभग ठप हो जाएंगे.अमेरिकी रिटेलर्स त्योहारों से पहले सामान जमा कर रहे हैं. ऐसे में टैरिफ के कारण वह दूसरे बाजारों से सामान खरीद सकते हैं. टैरिफ के कारण चीनी प्रोड्यूसर्स भी नए बाजार ढूंढने में जुटे हैं.वहीं अमेरिका की बात करें तो चीन अमेरिकी सोयाबीन और दूसरे एग्रीकल्चर प्रोडक्ट्स कम खरीद रहा है, जिससे अमेरिकी किसान मुश्किल में हैं.

Bharat Baani Bureau

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