नई दिल्ली 03 सितंबर 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) . बॉलीवुड में आइटम सॉन्ग का ट्रेंड आज जितना बड़ा है, उसकी नींव रखने वालों में सबसे पहला नाम उस एक्ट्रेस का आता है, जिन्हें फिल्म इंडस्ट्री की पहली आइटम गर्ल कहा गया ग्लैमर और डांस के दम पर उन्होंने हिंदी सिनेमा में अपनी अलग जगह बनाई. कहा जाता है कि वह सिर्फ कैमरे पर ही नहीं, असल जिंदगी में भी रॉयल लाइफस्टाइल जीती थीं. उनके पास लग्जरी कारें थीं और वह अपने कुत्तों को भी उन्हीं कारों में घुमाने ले जाती थीं. बॉलीवुड की मशहूर डांसर हेलेन भी उन्हें अपना गुरु मानती थीं. लेकिन शोहरत और दौलत के उस दौर के बाद हालात ऐसे बने कि उनके पास खाने के लाले पड़ गए.कभी फिल्मों में जलवे बिखेरने वाली इस स्टार का अंत बेहद गुमनाम और दुखद रहा. ये हसीना और कोई नहीं बल्कि कुक्कू मोरे हैं.

कुक्कू मोरे को 40 और 50 के दशक में ‘रबर गर्ल’ कहा जाता था. क्योंकि उनके डांस में ऐसी लचक और फुर्ती थी कि लोग हैरान रह जाते थे. कैबरे डांस को उन्होंने बॉलीवुड में पहचान दिलाई. उन्होंने अपनी जवानी को आलिशान तरह से काटी लेकिन जीवन के आखिरी दिनों में दो वक्त की रोटी और पाई-पाई के लिए मोहताज हो गईं.

आजादी से पहले रखा फिल्मों में कदम

कुक्कू मोरे का जन्म एंग्लो-इंडियन परिवार में 1928 में हुआ था. 1946 में आई फिल्म ‘अरब का सितारा’ से हिंदी सिनेमा में कदम रखा, जिसको नानूभाई पटेल ने निर्देशित किया था. उनके डांस के कारण 40-50 के दशक में हर फिल्ममेकर की पहली पसंद रहीं. दो साल बाद फिल्म ‘अनोखी अदा’ में दिखाई दी. रंगीन फिल्मों का दौर आया तो उनकी पॉपुलैरिटी बढ़ गईं और फिर वह लगभग हर फिल्म की हिस्सा होने लगी.

रईसी में गुजरी जवानी
कुक्कू मोरे अपने दौर की वो हसीना रहीं, जिनके लिए कहा जाता है कि उन्होंने भरी जवानी आलीशान तरीके से काटी. उनकी अलमारी डिजाइनर ड्रेसेस और महंगे फुटवियर्स से भरी रहती थी. वह कोई भी कपड़ा दोबारा तन पर नहीं पहनती और न ही फुटवियर. कुक्कू की रईसी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब हीरो साइकिल से सेट पर पहुंचा करते थे, तब इनके पास 3 लग्जरी गाड़ियां थीं. एक गाड़ी तो इन्होंने अपने कुत्तों के लिए खरीद रखी थी, जिसमें उन्हें साथ सेट पर और घुमाने ले जाया जाता था. दूसरी गाड़ी इन्होंने अपने लिए खरीद रखी थी और तीसरी दूसरे कामों में इस्तेमाल की जाती थी.

हेलेन को रातोंरात बनाया स्टार

कुक्कू मोरे ने ही हेलेन को नृत्य की ट्रेनिंग दी और उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में पहला ब्रेक दिलवाया. 1958 में फिल्म हावड़ा ब्रिज के गाने ‘मेरा नाम चिन चिन चू’ ने हेलेन को रातोंरात स्टार बना दिया. कुक्कू की दी हुई सीख ने हेलेन को बॉलीवुड की पहली आइटम गर्ल बनाया. हेलेन ने तीसरी मंजिल, कारवां, और डॉन जैसे गानों में अपने डांस से दर्शकों का दिल जीता. लेकिन जैसे-जैसे हेलेन की लोकप्रियता बढ़ी, कुक्कू की चमक फीकी पड़ने लगी. 1963 में कुक्कू ने फिल्मों से रिटायरमेंट ले लिया और यहीं से उनकी जिंदगी का दुखद मोड़ शुरू हुआ.
नहीं करती थी पैसे की कद्र, खुद को माना गरीबी का जिम्मेदार

कहते हैं न कि पैसे की जो कद्र नहीं करता पैसा उसकी भी नहीं करता है, ऐसा ही कुछ कुक्कू के साथ भी हुआ. तबस्सुम ने अपने शो तबस्सुम टॉकीज में कुक्कू के बारे में बताया था कि वो अपनी गरीबी का जिम्मेदार खुद को मानती थीं. कुक्कू ने एक बार तबस्सुम से कहा था, ‘जब मेरे पास बेतहाशा पैसे थे तब मैंने उसकी कद्र नहीं की. मैंने पैसों को पानी की तरह बहाया. मैंने पैसों से प्यार किया, लेकिन मेरी जिंदगी में दिक्कतें तब शुरू हुईं, जब मैंने खाने की कद्र नहीं की. उन्होंने बताया कि कुक्कू बड़े-बड़े 5-स्टार होटलों से खाना मंगवाती थीं, दोस्तों को खिलाती थीं, खुद भी खाती थीं, जो बच जाता था उसे फेंक दिया करती थीं. ऊपरवाले को उनकी ये बेतरतीबी पसंद नहीं आई और फिर वो दिन भी आया जब वह एक-एक दाने को मोहताज हो गई. कभी शान से नौकरों से घिरी रहने वालीं कुक्कू खुद अपने घर के सारे काम करती थीं.

गरीबी में सड़ी सब्जियों को पकाकर खाईं

तबस्सुम ने बताया था कि कुक्कू गरीबी में खाने की तलाश में सड़कों पर निकला करती थीं. पैसे नहीं होते थे तो कोई सामान नहीं देता था. एक समय ऐसा आया जब वो सब्जी की दुकानों के बाहर खड़ी इंतजार करती थीं. जैसे ही सब्जीवाला सब्जी धोकर सड़ी हुई सब्जियां फेंकता था तो कुक्कू उन्हें ही उठाकर घर ले आती थीं. उन्हीं सड़ी सब्जियों को पकाती और खाती थीं. गरीबी के दिन ऐसे आए कि घर का किराया देने के पैसे नहीं बचे. सड़कों पर ही सोतीं और भीख में जो कुछ मिलता उससे गुजारा करती थीं, जब कुछ नहीं होता तो सड़कों से खाना उठाकर खाती थीं.

कैंसर की दवाइयों तक के लिए नहीं थे पैसे

1963 के बाद कुक्कू मोरे गरीबी के कारण लोगों से दूर होती गईं और फिर धीरे-धीरे लोगों ने भी उनको पूछना बंद कर दिया. 1980 में उन्हें कैंसर हो गया, लेकिन गरीबी ऐसी कि दवाइयों के पैसे तक नहीं होते थे. 1981 में कुक्कू को टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान उन्होंने 30 सितंबर को दम तोड़ दिया था. इतना बड़ा नाम होने के बाद भी आखिरी समय में विदाई देने के लिए उनके पास कोई नहीं था.

Bharat Baani Bureau

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