04 सितंबर 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : उत्तर भारत के ज्यादातर राज्य लगातार हो रही बारिश और बाढ़ की वजह से प्रभावित हैं. पंजाब ने अपने सभी 23 जिलों को बाढ़ प्रभावित घोषित कर दिया है. पंजाब में इस बाढ़ में 30 लोगों की मौत हो गई है और लगभग 350,000 लोग प्रभावित हुए हैं. राजधानी दिल्ली में यमुना नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है. मंगलवार रात नदी के आसपास के निचले इलाकों से 10,000 से ज्यादा लोगों को निकाला गया. इस बीच, राजधानी के समृद्ध उपनगर गुरुग्राम में जलभराव के कारण जनजीवन ठप हो गया. जम्मू और कश्मीर में अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन में दर्जनों लोग मारे गए हैं. पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में भी भूस्खलन का खतरा मंडरा रहा है, जहां 1,000 से अधिक सड़कें बंद हैं.
हालात हर साल कमोबेश एक जैसे ही रहते हैं और हर साल एक नहीं, बल्कि कई राज्य बाढ़ से तबाह हो जाते हैं. दूसरी ओर, नीदरलैंड्स जैसे देश ने बाढ़ का एक स्थायी समाधान खोज लिया है. गौरतलब है कि यह देश भी पहले पानी की आपदा से जूझता रहा था, लेकिन अब पूरी दुनिया उससे जल प्रबंधन सीख रही है. भारत को भी नीदरलैंड्स से यह सीखने की जरूरत है.
बाढ़ को लेकर संवेदनशील देश
नीदरलैंड्स का लगभग 25 फीसदी हिस्सा समुद्र तल से नीचे है, जहां देश की 20 प्रतिशत से अधिक आबादी रहती है. इसके अलावा देश का आधा हिस्सा समुद्र तल से सिर्फ कुछ मीटर ही ऊंचा है. जिस वजह से यहां हमेशा बाढ़ का खतरा बना रहता है. इस खतरे को रोकने के लिए देश में समुद्र किनारे तटबंध बनाए गए हैं. रॉटरडैम शहर में समुद्र पर एक विशाल गेट बना है जो समुद्र के पानी को रोकने का काम करता है. इस रुके हुए पानी का उपयोग वाटर स्पोर्ट्स के आयोजनों के लिए भी किया जाता है.
जल निकासी की शानदार व्यवस्था
नीदरलैंड का जल निकासी (ड्रेनेज) प्रणाली बहुत अच्छी है. इसे 17वीं सदी में बनाया गया था और जिसका लगातार रखरखाव होता रहता है. पानी की निकासी का जिम्मा स्थानीय निकायों, यानी नगरपालिकाओं के पास है, ताकि किसी भी खराबी को तुरंत ठीक किया जा सके. बारिश के मौसम से पहले ही ये निकाय सक्रिय हो जाते हैं और देखभाल शुरू कर देते हैं. अगर शहर में पानी भर जाए, तो उसे निकालने के लिए एक खास पंपिंग सिस्टम है. पवन चक्की जैसे दिखने वाले ये पंपिंग सिस्टम शहर से अतिरिक्त पानी को निकालकर नदियों और नहरों तक पहुंचाते हैं, जिसका उपयोग खेती के लिए होता है.
घरों में पेड़-पौधे और तैरते हुए घर
तकनीक के अलावा नीदरलैंड्स सरकार निजी स्तर पर भी लोगों से बाढ़ नियंत्रण के उपाय अपनाने की अपील करती रही है. इसी कारण यहां हर घर और उसके आसपास ढेर सारे पेड़-पौधे लगे हैं. इससे बाढ़ आने पर जमीन की पानी सोखने की क्षमता बढ़ जाती है. इसके अलावा नीदरलैंड्स में पानी में तैरने वाले घर भी बनाए गए हैं. लकड़ी से बने ये घर आपको एम्सटर्डम से लागोस तक मिल सकते हैं. इन तैरते हुए घरों का बेस सीमेंट का होता है. लेकिन उसके अंदर स्टीरोफोम भरा जाता है, जिससे वे पानी में नहीं डूबते. इसके अलावा सरकार बाढ़-संवेदनशील क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को ऊंचे इलाकों में जाने का विकल्प भी देती है. लेकिन, चूंकि देश का आधा हिस्सा ही बाढ़ के प्रति संवेदनशील है और समुद्र तल से ऊपर ज्यादा विकल्प उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए लोग जहां हैं वहीं रहते हुए बाढ़ से बचाव के उपाय करते रहते हैं.
तैरते द्वीपों बसाए जाएंगे छोटे शहर
एम्स्टर्डम नगर पार्षद नीन्के वान रेनसेन कहते हैं, “नगरपालिका फ्लोटिंग की अवधारणा का विस्तार करना चाहती है, क्योंकि यह आवास के लिए स्थान का बहुउद्देशीय उपयोग है. क्योंकि टिकाऊ तरीका ही आगे का रास्ता है.” पिछले दशक में नीदरलैंड में उभरे तैरते समुदाय अब डच इंजीनियरों द्वारा संचालित बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिए अवधारणा के प्रमाण के रूप में काम कर रहे हैं. ये केवल ब्रिटेन, फ्रांस और नॉर्वे जैसे यूरोपीय देशों में ही नहीं, बल्कि फ्रेंच पोलिनेशिया और मालदीव में भी हैं. जहां हिंद महासागर के इस देश में समुद्र का बढ़ता स्तर अब अस्तित्व के लिए खतरा बन गया है. बाल्टिक सागर में तैरते द्वीपों का भी प्रस्ताव है जिन पर छोटे शहर बसाए जाएंगे.