नई दिल्ली 05 सितंबर 2025 (भारत बानी ब्यूरो ). बॉलीवुड ने समय-समय पर कई ऐसे गाने दिए हैं, जो दशकों बाद भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं. गाने नए हो या पुराने एक बार अगर लोगों के मुंह पर चढ़ गए तो यकीन मानिए मतलब पता हो या ना हो, आप उन्हें गाहे-बगाहे गुनगुनाते ही रहेंगे. कुछ गाने सच में इतने इमोशनल होते हैं कि सुनने वाले की आंखों में आंसू के साथ रोंगटे खड़े हो जाते हैं. 42 साल पहले लिखने वाले ने ऐसा एक गीत लिखा, जो आज भी हर बेटी और उनके मां-बाप के लिए कलेजा चीरने वाला है.
लता मंगेशकर ने एक से बढ़कर एक गीत गाए हैं. लेकिन सुरेश वाडकर के साथ उन्होंने एक अमर गीत गाया, जिसको शायद ही किसी ने नहीं सुना होगा. ये वो गाना है जिसको सुनने के बाद शायद ही कोई भावुक नहीं हुआ हो. 42 साल पहले यानी 1983 में रिलीज हुई फिल्म ‘अर्पण’ में परवीन बाबी ने अपने मन का पीड़ा को इस कदर रखा कि जीतेंद्र भी भावुक हो गए. गाने के बोल हैं- ‘असा हुण टुर जाणा ए…’
सुनने वाले को रूला देता है ये गाना
आनंद बक्शी ने इस गाने को दिल का गहराइयों से लिखा और उस गानों ने हर सुनने वाली की आंखों में आंसू ला दिए. इस गाने के संगीतकार थे लक्ष्मीकांत प्यारेलाल. कुछ लोगों ने इसे अपनी बेटी की विदाई गीत से जोड़ा तो किसी कि आंखे इसलिए भी नम हुई कि वो एक दिन अपने छोटी सी बिटियां को भी ऐसे ही विदा करेगा. गाने के बोल है- ‘लिखने वाले ने लिख डाले, लिखने वाले ने लिख डाले, मिलने के साथ विछोड़े, अस्सा हूण दूर जाणा ए, दिन रह गए थोड़े’
क्या है इस गाने का मतलब
गाने का मतलब बड़ा मार्मिक है. दरअसल, एक बेटी अपने बाबुल से अपनी भावनाओं का वर्णन करती है. गीत का लोकप्रिय हिस्सा जो एक बेटी कह रही है कि ‘लिखने वाले ने लिख डाले, अस्सा हूण दूर जाणा ए दिन रह गए थोड़े’. ‘मेरे साथ यह कैसी विडंबना है कि लिखने वाले ने लिख डाले मिलने के साथ विछोड़े मतलब एक माता-पिता और बेटी का मिलना यानी उनके घर पैदा होना लिखने वाले ने लिख दिया लेकिन साथ में लिखने वाले ने ये भी लिख दिया कि इन्हें बिछड़ना भी होगा, एक उम्र आने पर. इस तरह से यहां से चले जाना है क्योंकि अब बहुत कम वक्त बचा है.’
जब भावुक होती हैं परवीन बॉबी
गाने की एक और लाइन है, जिसमें परवीन बॉबी भावुक होती दिखाई दे रही हैं और कहते हैं. ‘याद न आना, भूल न जाना’. यानी वो कहती है मुझे बाबुल तुम मुझे याद ना आना क्योंकि आपको याद कर कर के मुझे रोना आएगा और साथ ही कहती है भूल न जाना, यानी ऐसी भी मत करना कि अपनी बेटी को भूल भी मत जाना.
माता-पिता और बेटी के रिश्ते को बताता है ये गाना
‘अर्पण’ का यह गीत, जिसमें परवीन बबी स्क्रीन पर भावनाओं को जीवंत करती हैं, माता-पिता और बेटी के बीच के अनकहे रिश्ते को दर्शाता है. कई माताओं का कहना है कि इस गाने को सुनते समय उनकी आंखें अनायास ही भर आती हैं, क्योंकि यह बेटी के घर छोड़ने के दर्द को उजागर करता है.
42 साल पुराना ये गाना आज भी ताजा
42 साल बाद भी इस गाने का जादू बरकरार है. यह न केवल एक गीत है बल्कि एक भावनात्मक परंपरा है, जो पीढ़ियों को जोड़ती है. चाहे शादी का माहौल हो या फिर पुरानी यादों को ताजा करने का मौका, यह गाना हर बार दिल को छू लेता है. परवीन बबी, जीतेंद्र और राज बब्बर स्टारर यह फिल्म और इसका यह गीत आज भी उतना ही ताजा और प्रासंगिक है, जितना 1983 में था.
क्या है इस गाने की खासियत?
सदाबहार भावनाएं- आनंद बख्शी के लिखे इस गाने के बोल बेहद साधारण लेकिन दिल को छू लेने वाले हैं। यह गीत हर माता-पिता की अनकही भावनाएं को बयां करता है.
विदाई की परंपरा बन गया- यह गाना शादियों में दुल्हन की विदाई के दौरान बजने वाला एक क्लासिक बन गया है. इसकी लोकप्रियता इतनी है कि आज भी ज्यादातर शादियों में यह गाना जरूर बजता है.
हर मां-बाप के लिए है खास- ये गाना 42 साल पुराना है, लेकिन हर मां इस गाने को सुनने से भी कतराती हैं, क्योंकि यह उन्हें बेटी के घर से जाने के दर्द की याद दिला देता है.