03 अक्टूबर 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) ब्रिटेन के मैनचेस्टर में यहूदी प्रार्थना स्थल पर गुरुवार को हमला हुआ. ये केवल एक आतंकी वारदात भर नहीं है, बल्कि यूरोप की सुरक्षा व्यवस्था और बदलते सामाजिक हालात पर बड़े सवाल खड़े कर रहा है. सीरियाई मूल के 35 वर्षीय ब्रिटिश नागरिक जिहाद अल-शमी ने यह हमला ‘योम किप्पुर’ जैसे पवित्र दिन पर किया. उसने पहले लोगों पर कार चढ़ाई और फिर चाकू से हमला शुरू कर दिया. इस घटना में दो लोगों की मौत और चार के घायल होने की पुष्टि हुई. पुलिस ने हमलावर को मौके पर ही गोली मार दी. हमलावर ने ऐसी जैकेट पहन रखी थी जिससे यह लग रहा था कि उसके पास बम है. हालांकि बाद में पता चला कि वह नकली था. इस हमले के बाद पुलिस ने तीन अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया है, जिसमें दो पुरुष (30 वर्ष) और एक महिला (60 वर्ष) है. हालांकि इसके बावजूद शनिवार को फिलिस्तीन एक्शन समूह पर ब्रिटेन के प्रतिबंध के खिलाफ रैली आयोजित की गई है और पुलिस ने इसे रोकने से मना कर दिया.

आतंकी हमले को लेकर क्या हैं चिंताएं?

  • कट्टरपंथ की जड़ें: हमले के तुरंत बाद यह चर्चा छिड़ गई है कि क्या यह सिर्फ ब्रिटेन की समस्या है या यूरोप के लिए भी एक गंभीर खतरे की घंटी? दरअसल ब्रिटेन में लगातार बढ़ रहा अवैध इमीग्रेशन चिंता का विषय है. बड़ी संख्या में लोग इस्लामिक देशों से आकर यहां शरण लेते हैं. कई बार यही समूह शरिया कानून लागू करने की मांग करते हैं. पश्चिमी देश कई बार इस मुद्दे पर चेतावनी दे चुके हैं. वहीं यह भी सवाल हो रहा है कि क्या इजरायल-हमास युद्ध के बाद सड़कों पर खुलेआम रैली से यहूदियों के खिलाफ नफरत आम हो गई.
  • क्या ब्रिटेन अभी भी ईसाई देश?: इस्लामिक देशों से आने वाले शरणार्थियों को लेकर चिंता ब्रिटेन के हर वर्गमें हैं. सितंबर में जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप यूके की यात्रा पर गए थे, तब भी यह देखने को मिला. डोनाल्ड ट्रंप और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे. इस दौरान एक पत्रकार ने स्टार्मर से पूछा कि क्या ब्रिटेन अभी भी एक ‘ईसाई’ देश है? इस पर स्टार्मर ने कहा, ‘मेरा क्रिश्चन चर्च बचपन से ही मेरा हिस्सा रहा है. हां, यह हमारे अनौपचारिक संविधान में जुड़ा है, लेकिन हम बाकी धर्मों का भी उतना ही सम्मान करते हैं और मुझे गर्व है कि हमारा देश इसे खुले दिल से अपनाता है.’
  • अवैध इमीग्रेशन: ब्रिटेन में हाल के वर्षों में बड़ी संख्या में प्रवासी आए हैं, जिनमें सीरिया और अफगानिस्तान जैसे देशों से आने वाले शामिल हैं. आलोचकों का मानना है कि इंटीग्रेशन की कमी कट्टरपंथ को जन्म देती है.
  • यूरोप के स्लीपर सेल: इस तरह के हमलों की पहले से किसी को भनक नहीं लगती है. ऐसे में अवैध अप्रवासन से सवाल उठ रहा है कि क्या स्लीपर सेल धीरे-धीरे यूरोप में सक्रिय हो रहे हैं.
  • हमले की टाइमिंग: यह हमला ऐसे समय हुआ है जब इजराइल-हमास युद्ध को दो साल होने वाले हैं और हाल ही में ब्रिटेन ने फिलिस्तीन को मान्यता दी है. इससे पहले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र में लंदन के मेयर सादिक खान पर हमला बोला था. उन्होंने अपने बयान में कहा था कि लंदन ‘शरिया कानून’ की ओर बढ़ रहा है.
  • यहूदी समुदाय पर खतरा: हाल के वर्षों में यूरोप में यहूदी-विरोधी हमले बढ़े हैं. ब्रिटेन के मुख्य रब्बी सर एफ़्रैम मिर्विस ने कहा कि यहूदी अब अपने भविष्य को लेकर असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. मुख्य रब्बी ने कहा कि उत्तरी मैनचेस्टर के क्रम्पसॉल में हुआ हमला ‘हमारी सड़कों, परिसरों, सोशल मीडिया और अन्य जगहों पर यहूदी घृणा की निरंतर लहर’ का ‘दुखद परिणाम’ है. उन्होंने आगे कहा, ‘यह वह दिन था जिसकी हमें उम्मीद थी कि हम कभी नहीं देखेंगे, लेकिन हम अंदर ही अंदर जानते थे कि यह दिन आएगा.’

हमले से जुड़े जरूरी सवाल

क्या यह हमला ‘स्लीपर-सेल’ का संकेत है?

अभी तक यह स्पष्ट नहीं है. पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया है, जिससे नेटवर्क की संभावना पर जांच जारी है. फिलहाल इसे एक आतंकी घटना माना गया है.

क्या अवैध इमीग्रेशन सीधे तौर पर जिम्मेदार है?

नहीं. ज्यादातर प्रवासी पहले ही हिंसा से बचकर आते हैं. कट्टरपंथ केवल छोटे हिस्से में पनपता है. लेकिन बड़े पैमाने पर इमीग्रेशन + कमजोर इंटीग्रेशन सुरक्षा एजेंसियों के लिए चुनौती बन सकता है.

सारांश:
यूके में यहूदियों पर हमला करने वाले हमलावर का नाम ‘जिहाद’ सामने आया। इस घटना से यूरोप में स्लीपर सेल्स की संभावनाओं को लेकर चिंता बढ़ गई है।

Bharat Baani Bureau

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