23 अक्टूबर 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : अमेरिका ने रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों पर नए प्रतिबंध लगा दिए हैं। ये कंपनियां हैं रोसनेफ्ट और लुकोइल। इन प्रतिबंधों का असर भारत की रिफाइनरियों पर पड़ सकता है। इनमें सबसे बड़ा झटका रिलायंस इंडस्ट्रीज को झटका लग सकता है, जो रूस से सबसे ज्यादा तेल खरीदती है। लेकिन सरकारी रिफाइनरियां फिलहाल ट्रेडर्स के जरिए खरीद जारी रख सकती हैं। इंडस्ट्री के सूत्रों का कहना है कि ये प्रतिबंध रूस की सेना को यूक्रेन में मदद देने का आरोप लगाकर लगाए गए हैं।

रूस से भारत रोजाना करीब 17 लाख बैरल तेल मंगाता है। इसमें से आधा हिस्सा रिलायंस का है। रिलायंस सीधे रोसनेफ्ट से तेल खरीदती है। दिसंबर 2024 में रिलायंस ने रोसनेफ्ट के साथ एक बड़ा करार किया था। इस करार के तहत वो 25 साल तक रोजाना 5 लाख बैरल तेल ले सकती है। लेकिन अब रोसनेफ्ट पर प्रतिबंध लगने से रिलायंस को अपनी रणनीति को बदलनी पड़ सकती है। कंपनी ट्रेडर्स से भी तेल लेती है, लेकिन सीधी डील पर असर पड़ेगा। हालांकि, रिलायंस ने अभी तक इस बारे में कोई जवाब नहीं दिया है।

रोसनेफ्ट और लुकोइल मिलकर रोजाना 31 लाख बैरल तेल निर्यात करती हैं। रोसनेफ्ट अकेले दुनिया के 6 फीसदी तेल का उत्पादन करती है और रूस के आधे तेल की जिम्मेदारी संभालती है। 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था। उसके बाद पश्चिमी देशों ने रूसी तेल खरीदना बंद कर दिया। भारत ने सस्ते दामों का फायदा उठाया और रूस का सबसे बड़ा खरीदार बन गया।

सरकारी रिफाइनरियों का क्या होगा?

भारत की सरकारी रिफाइनरियां जैसे इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन, भारत पेट्रोलियम, हिंदुस्तान पेट्रोलियम, मैंगलोर रिफाइनरी और एचपीसीएल-मित्तल एनर्जी रूस से तेल लेती हैं। लेकिन इनके पास रोसनेफ्ट या लुकोइल के साथ कोई फिक्स्ड डील नहीं है। ये टेंडर के जरिए तेल खरीदती हैं। टेंडर में यूरोपीय ट्रेडर्स हिस्सा लेते हैं, जो रूसी कंपनियों से तेल खरीदकर भारत को बेचते हैं। ये ट्रेडर दुबई और सिंगापुर में भी बेस्ड हैं। अमेरिका ने इन ट्रेडर्स पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है। यूरोपीय संघ की ओर से भी अभी इनके ऊपर कोई फैसला नहीं लिया गया है।

सूत्रों का कहना है कि अगर कुछ ट्रेडर पीछे हट भी गए, तो रूस नए ट्रेडर दुबई में रजिस्टर करवा सकता है। ये ट्रेडर रूसी तेल खरीदकर भारत और चीन जैसे देशों को बेच सकते हैं। एक सूत्र ने बताया कि ट्रंप प्रशासन के ये कदम आधे-अधूरे हैं। ट्रंप ने लंबे समय तक ऊर्जा प्रतिबंधों का विरोध किया था। अब भी असली ट्रेड करने वाले बाहर हैं। बाजार में भी इन प्रतिबंधों पर ज्यादा विश्वास नहीं है। अगर इतना तेल बाजार से बाहर होता, तो तेल की कीमतें 5-10 डॉलर प्रति बैरल बढ़ जातीं। लेकिन सिर्फ 2 डॉलर की बढ़ोतरी हुई। इससे लगता है कि बाजार को लगता है रूसी तेल कहीं न कहीं बिकेगा।

नायरा एनर्जी पर भी नजर

रूस से तेल खरीदने वाली एक और बड़ी कंपनी है नायरा एनर्जी। इसमें रोसनेफ्ट की 49.13 फीसदी हिस्सेदारी है। नायरा गुजरात के वडिनार में 2 करोड़ टन सालाना की रिफाइनरी चलाती है। यूरोपीय संघ ने पहले ही नायरा पर प्रतिबंध लगा रखा है। अब अमेरिकी प्रतिबंधों से उसे भी खरीद बदलनी पड़ सकती है। हालांकि, कंपनी ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की। नायरा में एक और 49.13 फीसदी हिस्सा केसानी एंटरप्राइजेज का है, जो मारेतेरा और रूसी ग्रुप यूनाइटेड कैपिटल पार्टनर्स का कंसोर्टियम है।

भारतीय सरकार ने अभी तक रिफाइनरियों को रूसी तेल रोकने या कम करने का कोई आदेश नहीं दिया है। ट्रंप ने हाल में कहा था कि भारत रूसी तेल खरीदना बंद कर देगा, लेकिन भारत ने ऐसा कोई वादा नहीं किया।

सूत्रों का मानना है कि ट्रंप का बयान यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों से जुड़ा हो सकता है। EU ने 21 जनवरी से रूसी तेल से बने ईंधन के आयात पर रोक लगा दी है। रिलायंस की एक रिफाइनरी सिर्फ निर्यात के लिए है। वो रूसी तेल से पेट्रोल-डीजल बनाकर EU को बेचती है। मैंगलोर रिफाइनरी भी EU को निर्यात करती है। जनवरी से ये निर्यात रुक जाएंगे। इससे रिलायंस और MRPL को रूसी तेल कम करना पड़ेगा, अगर वो EU को बेचना जारी रखना चाहें। नायरा ने पहले ही EU को निर्यात बंद कर दिया है।

तीन बड़े खरीदारों- रिलायंस, नायरा और MRPL- के खरीद कम करने से जनवरी तक रूसी तेल का प्रवाह घटेगा। ट्रंप शायद इसी को अपनी बात मनवाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। इंडस्ट्री के लोग कहते हैं कि सरकारी रिफाइनरियां जोखिम देख रही हैं, लेकिन तुरंत रुकेंगी नहीं। वो ट्रेडर्स के जरिए जारी रख सकती हैं। लेकिन रिलायंस जैसी प्राइवेट कंपनियों को ज्यादा सतर्क रहना पड़ेगा। रूस की दोनों कंपनियां ट्रंप को ‘युद्ध मशीन’ फंड करने का आरोप झेल रही हैं। भारत के लिए सस्ता तेल जरूरी है, लेकिन प्रतिबंधों का पालन भी। बाजार में अभी शांति है, लेकिन आगे क्या होगा, ये देखना बाकी है।

सारांश:
रूस की तेल कंपनियों पर लगाए गए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध से रिलायंस इंडस्ट्रीज पर असर पड़ सकता है, जबकि सरकारी रिफाइनरियों को फिलहाल कोई गंभीर समस्या नहीं होने की संभावना है।

Bharat Baani Bureau

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