जालंधर 29 अक्टूबर 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : नगर निगम में भ्रष्टाचार का दायरा अब इस कदर फैल चुका है कि कई कच्चे और पक्के जूनियर इंजीनियर (जे.ई.) खुद ही ठेकेदारी करने लगे हैं। कुछ ने तो अपने परिवार, रिश्तेदारों या परिचितों के नाम पर फर्में बनवा रखी हैं और उन्हीं के माध्यम से निगम के टैंडर हासिल कर रहे हैं। कई मामलों में टैंडर लेने वाले असली ठेकेदारों को उनका हिस्सा देकर यह जे.ई. खुद ही काम करवा रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक कुछ जे.ई. न केवल ठेकेदारों के बिल खुद वेरीफाई करते हैं, बल्कि मेज़रमैंट बुक (एम.बी.) भी खुद ही लिखते हैं और फाइलें पास करवाने से लेकर पेमैंट तक की पूरी प्रक्रिया खुद ही पूरी करते हैं। यानी ठेका खुद लेना, काम खुद करवाना, जांच खुद करना और बिल खुद पास करवाना, सब कुछ एक ही व्यक्ति के नियंत्रण में है।
सरकार के नियमों की उड़ रही धज्जियां पर किसी को फिक्र नहीं
पंजाब सरकार और लोकल बॉडीज़ विभाग के नियमों के मुताबिक, किसी भी आउटसोर्स या कॉन्ट्रैक्ट बेस पर रखे गए कर्मचारी को वित्तीय पावर नहीं दी जा सकती। मगर जालंधर नगर निगम ने इन नियमों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया है। आज निगम में आऊटसोर्स जे.ई. और एस.डी.ओ. तक के पास फाइनेंशियल पावर हैं, जो न केवल बिल पास करते हैं बल्कि प्रोजैक्ट का पूरा रिकॉर्ड भी खुद संभालते हैं।
कई बार निगम के कमिश्नरों को इस गड़बड़ी की जानकारी दी गई, मगर किसी ने भी इन कर्मचारियों से वित्तीय अधिकार वापस लेने की हिम्मत नहीं दिखाई। उल्टा, उनके कॉन्ट्रैक्ट बढ़ाए जा रहे हैं और उन्हें और अधिक शक्तियां दी जा रही हैं। ऐसे लगता है जैसे किसी को इस ग़लत परम्परा की फिक्र ही नहीं ।
नया खेल शुरू, जे.ई. पर निर्भर हो गया लगता है सिस्टम
पता चला है कि कई जे.ई. अब खुद ही ठेकेदारी में उतर चुके हैं। कुछ तो ऐसे हैं जो ठेकेदारों से सांठगांठ कर उन्हें उनका तय मुनाफा दे देते हैं और फिर अपनी टीम व लेबर के जरिए सारा काम खुद करवाते हैं। निगम के कुछ एरिया में तो यह तक देखने को मिला है कि एक जे.ई. ट्रॉलियों और ट्रैक्टरों के ठेके में भी शामिल है।
यदि विजिलेंस विभाग इस पूरे खेल की जांच करे तो करोड़ों रुपये का घोटाला सामने आ सकता है, क्योंकि यही जे.ई. खुद काम करवाते हैं, खुद जांच करते हैं और खुद ही बिल पास करवाकर ठेकेदारों के नाम पर पेमेंट तक निकलवा लेते हैं। अपने परिचितों या रिश्तेदारों को अपने एरिया के टैंडर दिलवा देते हैं और फिर विकास कार्यों में मनमर्जी करते हैं । ऐसे लग रहा है जैसे निगम का सारा सिस्टम ही एक जेई पर निर्भर होकर रह गया हो ।
धीरे-धीरे किनारे होते जा रहे हैं पुराने ठेकेदार
भ्रष्टाचार के इस नए सिस्टम से निगम में वर्षों से काम कर रहे पुराने ठेकेदार अब साइडलाइन होते जा रहे हैं। कई ठेकेदारों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अब टेंडरों में पारदर्शिता पूरी तरह खत्म हो चुकी है। 60-40 के अनुपात में बिल और सैंक्शन वाली फाइलें बिकने लगी हैं और कई मामलों में तो बिना काम करवाए ही बिल पास कर दिए जाते हैं।
कुछ ठेकेदारों का कहना है कि कई कामों को इमरजेंसी बताकर सैंक्शन के आधार पर करवाया जाता है, फिर वही काम मेंटेनेंस के टैंडर के तहत दोबारा करवा लिए जाते हैं। यानी एक ही काम के दो-दो बिल बना कर निगम को दोहरा नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
विजिलेंस जांच की मांग तेज
सूत्रों के अनुसार, कुछ पुराने ठेकेदारों ने इस पूरे घोटाले से संबंधित दस्तावेज़ और डेटा इकट्ठा कर लिया है। संभावना है कि जल्द ही यह मामला विजिलेंस ब्यूरो या हाईकोर्ट में याचिका के रूप में उठाया जा सकता है। शहर के जानकारों का कहना है कि यदि पंजाब सरकार ने इस नए ठेकेदारी ट्रेंड पर सख्ती से लगाम नहीं लगाई, तो आने वाले समय में जालंधर नगर निगम भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा बन जाएगा जहां अफसर, ठेकेदार और इंजीनियर एक ही चेन का हिस्सा बन चुके हैं।
सारांश:
जालंधर नगर निगम में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद का नया मामला सामने आया है। आरोप है कि कई अधिकारियों ने अपने रिश्तेदारों के नाम पर ठेके और सप्लाई के काम करवाए हैं। जांच में चौंकाने वाले दस्तावेज सामने आए हैं, जिससे निगम में गड़बड़ी का बड़ा जाल बेनकाब हो सकता है। प्रशासन ने मामले की जांच के आदेश जारी कर दिए हैं।
