नई दिल्ली 17 नवंबर 2025 (भारत बानी ब्यूरो ). भारत के गेंदबाजी आक्रमण पर एक नज़र डालिए, तो समझ में आता है कि टीम मैनेजमेंट को अपनी ही तकत का एहसास नही है. हमारे पास जसप्रीत बुमराह हैं संभवतः दुनिया के सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाज़. मोहम्मद सिराज बार-बार साबित कर चुके हैं कि अच्छी विकेटों पर वे मैच जिता सकते हैं. कुलदीप यादव मैच-विनर हैं, और रविंद्र जडेजा भी. अक्षर पटेल और वाशिंगटन सुंदर भी कम सक्षम नहीं हैं, जिससे यह एक बेहद संतुलित गेंदबाजी इकाई बनती था.
फिर आप ऐसी पिचें क्यों चुनते हैं जो पहले दिन से ही टर्न लेने लगती हैं ऐसी “रैंक टर्नर्स” जहाँ पहली ही सेशन से गेंद ग्रिप करने लगती है, ऐसे विकेट विपक्षी स्पिनरों को भी बराबर का मौका देते हैं, जैसा पिछले सीज़न में मिचेल सैंटनर और अज़ाज़ पटेल के साथ हुआ था अब साइमन हार्मर और केशव महाराज ने उसी तरह कहर बरपाया
डरा हुआ टीम मैनेजनमेंट
कोलकाता हार के बाद सवाल ये उठता है: हम ऐसी पिचें क्यों चुनते हैं, क्या हम अपने ही गेंदबाजी आक्रमण को लेकर असुरक्षित हैं, क्या हमें उन पर भरोसा नहीं है कि वे अच्छी विकेटों पर भी मैच जिता सकते हैं, जबकि उन्होंने दुनिया भर में यही कर दिखाया है, अगर हम अपने गेंदबाज़ों को इतना श्रेय देते हैं, तो फिर ऐसी पिचें तैयार करने का क्या औचित्य है. ये नहीं है कि भारत को जीतने के लिए ऐसे विकेटों की ज़रूरत है. इंग्लैंड और ‘बाज़बॉल’ को 2024 में भारत ने सामान्य भारतीय पिचों पर ही convincingly हराया था, जहां बल्लेबाज़ों, तेज़ गेंदबाज़ों और स्पिनरोंसभी के लिए कुछ न कुछ था. नौ पारियों में चार बार भारत ने 400 से ज़्यादा रन बनाए, और एक बार 396 बनाए.
यही एक पारंपरिक भारतीय पिच से अपेक्षित होता है. वेस्टइंडीज़ के खिलाफ भारत ने फ़ॉलो-ऑन कराया था, और शुभमन गिल ने दक्षिण अफ्रीका मैच से एक दिन पहले कहा कि उन्हें उस फैसले का अफसोस है. क्या इसका मतलब है कि टीम उस अनुभव से मानसिक रूप से प्रभावित हुई? क्या उन्हें लगा कि अच्छी विकेट पर वे दक्षिण अफ्रीका को दो बार आउट नहीं कर पाएंगे. क्या यही वजह है कि उन्होंने ऐसी सतह चाही.
गेंदबाजों पर संदेह दूर होना जरूरी
एक बात साफ है: भारत को ऐसी पिचों पर नहीं खेलना चाहिए. भारत को अपने गेंदबाज़ों पर भरोसा रखना होगा. इन गेंदबाज़ों ने दुनिया भर में भारत को मैच जिताए हैं, और घर पर भी ऐसा ही करेंगेलेकिन तभी जब उन पर विश्वास किया जाए ऐसी पिचों पर जहाँ एक बिंदु के बाद मैच एक लॉटरी जैसा बन जाता है, गेंदबाज़ी कौशल का महत्व कम हो जाता है और पिच खेल पर हावी हो जाती है. मौजूदा बल्लेबाज़ी लाइन-अप में ऐसी परिस्थितियों में टिककर खेलने की तकनीक नहीं दिखती, और ऐसे विकेट टीम के लिए उलटा असर डाल रहे हैं. यह कहने की ज़रूरत नहीं कि हर बार ऐसी पारी के बाद बल्लेबाज़ों का आत्मविश्वास भी टूटता है.
भारत गुवाहाटी में दक्षिण अफ्रीका को हराकर सीरीज़ बराबर कर सकता है लेकिन इसके लिए पहले उन्हें खुद पर विश्वास करना होगा. वे मानसिक रूप से बिखरे हुए रहकर, रक्षात्मक खेलकर, और फिर से एक अधूरी पिच की मांग करके यह नहीं कर पाएंगे. आने वाले कुछ दिन बताएंगे कि यह टीम मानसिक रूप से कितनी मजबूत है। क्या वे ज़िम्मेदारी लेकर वापसी करेंगे, या वही गलती दोहराएंगे.
सारांश:
इस ओपिनियन लेख में टीम इंडिया की मानसिकता और नेतृत्व पर सवाल उठाए गए हैं। लेखक का मानना है कि मैच से पहले ही टीम का आत्मविश्वास डगमगा जाता है, खासकर शुबमन गिल और गौतम गंभीर की रणनीति और रवैये को लेकर आलोचना की गई है। लेख में कहा गया है कि जब टीम में ‘पहलवान’ जैसा कोई खिलाड़ी नहीं है, तो ‘अखाड़ा’ जैसे जोश की उम्मीद क्यों की जाए? यह विश्लेषण टीम की तैयारी और मानसिक मजबूती पर केंद्रित है।
