पटना 18 नवंबर 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) . अपनी बोल्ड बयानबाज़ी और विवादों में घिरे रहने वाले कई दिग्गज विधायक बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार जीत की दौड़ में पिछड़ गए हैं. गोपाल मंडल, हरिभूषण ठाकुर ‘बचौल’ और डॉ. संजीव जैसे नेताओं को इस बार मतदाता ने रिजेक्ट कर दिया है. भागलपुर जिले के गोपालपुर से लंबे समय तक जदयू विधायक रहे गोपाल मंडल का टिकट जदयू ने काट दिया था. इस कारण बिहार चुनाव में वह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतर गए. नीतीश कुमार की पार्टी जदयू से टिकट नहीं मिलने पर विद्रोही तेवर अपनाया तो सही, लेकिन जनता ने उनकी मांग ठुकरा दी. उन्हें सिर्फ 12,686 वोट मिले जो पार्टी के उम्मीदवार बुलो मंडल की जीत के मुकाबले बेहद कम थे.
गोपाल मंडल के कांड ने किया बदनाम
बता दें कि गोपाल मंडल पहले बागी नेताओं में शामिल किया जा चुका था और जदयू ने उनको पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में निलंबित कर दिया था. उन्होंने टिकट कटने का दर्द भी सार्वजनिक मंच पर व्यक्त किया था और एक बार नीतीश कुमार के आवास के बाहर धरना तक दिया था. गोपाल मंडल से जुड़े कई कांड सुर्खियों में रहे हैं. एक बार वह ट्रेन में कच्छा पहनकर घूमते नजर आए थे. ऐसे में उनकी हार इस बात का संकेत है कि बिहार में सिर्फ बयानबाज़ी और करिश्मा ही पर्याप्त नहीं-संगठन, पार्टी की ताकत और स्थानीय समीकरण अभी भी अहम हैं.
बचौल के बड़बोलेपन की हुई हार
मधुबनी की बिस्फी सीट से भाजपा के विधायक हरिभूषण ठाकुर ‘बचौल’ को इस बार चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. बता दें कि उनकी कट्टर बयानबाजी और ज़ुबानी हमले काफ सुर्खियों में रहते हैं. बिहार चुनाव में एनडीए की सुनामी के बीच भी बिस्फी विधानसभा पर राजद प्रत्याशी आसिफ अहमद ने बचौल पर बड़ी जीत दर्ज की. भाजपा के हरिभूषण ठाकुर 8107 वोटों से से राजद प्रत्याशी से हारे. बता दें कि 2020 में भाजपा के हरिभूषण ठाकुर ने जीत हासिल की थी.
डॉ. संजीव की हेकड़ी भी हुई गुम
वहीं, जदयू से जुड़ने और पार्टी-निर्देशों की आलोचना करने वाले पूर्व विधायक डॉ. संजीव को महज इतना हासिल हुआ कि जनता ने उनकी राजनीतिक छवि को स्वीकार न करने का निर्णय लिया. उन्हें लोजपा (आरवी) के बाबूलाल शौर्य के हाथों हार का सामना करना पड़ा. परबत्ता विधानसभा सीट से अंतिम नतीजे में बाबूलाल शौर्य ने कुल 1,18,677 वोट हासिल करते हुए 34,039 वोटों की भारी लीड के साथ जीत दर्ज की. आरजेडी के डॉ. संजीव कुमार को 84,638 वोट मिले और वे दूसरे स्थान पर रहे थे.
मतदाता ने क्या संदेश दिया?
इस चुनाव में बड़बोले नेताओं के राजनीतिक भाषण और बयानबाज़ी का जश्न इन तीनों के लिए ज़्यादा दिन फलदायी नहीं रहा. जनता ने यह साफ कर दिया कि बोलने भर से राजनीति नहीं चलती, सिंबल और पार्टी संगठन उसके लिए अभी भी महत्व रखते हैं. लोकप्रियता की चमक अगर जमीन पर कार्यक्रम और विकास में न बदले तो वह वोट में कन्वर्ट नहीं हो पाता है. गोपाल मंडल, हरिभूषण ठाकुरऔर डॉ संजीव जैसी दिग्गज छवि के प्रत्याशियों के लिए ये हार सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि यह बड़े राजनीतिक संकेत भी देती है.
सारांश:
चुनाव प्रचार के दौरान लगातार विवादों में रहने वाले एक नेता को जनता ने इस बार करारा जवाब दिया। ट्रेन में हुए ‘कच्छा कांड’ से लेकर भड़काऊ बयानों तक, इनकी हरकतों ने उन्हें बदनाम किया। हालांकि, ज़्यादा बोलने के बावजूद ये नेता जनता का भरोसा नहीं जीत सके और चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।
