नई दिल्ली 17 जनवरी 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) – . विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में मुसलमानों को निशाना बनाने वाले बयान के बाद चर्चा में आए थे जस्टिस शेखर कुमार यादव. उनकी बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक वाली बयान के बाद उन्हें चीफ जस्टिस (सीजेआई) संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम के समक्ष हाजिर होना पड़ा था. सीजेआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अरुण भांसाली से लेटेस्ट अपडेट मांगी थी. इसके बाद जस्टिस भांसाली ने जस्टिस कुमार से कॉलेजियम के बाद उनके जवाब मांगी थी, जिसके बाद उन्होंने लेटर लिख कर जवाब दिया, जिसमें साफ तौर पर कहा गया है कि वे अपने बयान पर कायम हैं.

जस्टिस शेखर कुमार यादव ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर बताया कि वह अपनी टिप्पणी पर कायम हैं, जो उनके अनुसार न्यायिक आचरण के किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती है.सूत्रों के अनुसार, जस्टिस यादव ने अपने जवाब में दावा किया कि उनके भाषण को निहित स्वार्थ वाले लोगों द्वारा तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है. और न्यायपालिका के सदस्य, जो सार्वजनिक रूप से खुद का बचाव करने में असमर्थ हैं, उन्हें न्यायिक बिरादरी के वरिष्ठों द्वारा संरक्षण दिए जाने की आवश्यकता है.

कब का है विवाद
सूत्रों में दावा किया गया है कि जस्टिस यादव ने अपनी टिप्पणी के लिए माफी नहीं मांगी है. उन्होंने लेटर में कहा कहा कि उनका भाषण संविधान में निहित मूल्यों के अनुरूप सामाजिक मुद्दों पर विचारों की अभिव्यक्ति थी, न कि किसी समुदाय के प्रति घृणा पैदा करने के लिए. 8 दिसंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के लाइब्रेरी में वीएचपी के कानूनी प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जस्टिस यादव ने समान नागरिक संहिता को ‘हिंदू बनाम मुस्लिम’ बहस के रूप में प्रस्तुत किया था. जिसमें उन्होंने कहा था कि हिंदू पक्ष ने सुधार लाए थे, जबकि मुस्लिम पक्ष नहीं.

क्या बोले थे यादव
जस्टिस यादव ने कहा, ‘आपको यह गलतफहमी है कि अगर कोई कानून (यूसीसी) लाया जाता है, तो यह आपके शरीयत, आपके इस्लाम और आपके कुरान के खिलाफ होगा, लेकिन मैं एक और बात कहना चाहता हूं. चाहे वह आपका पर्सनल लॉ हो, हमारा हिंदू कानून हो, आपका कुरान हो या फिर हमारी गीता हो, जैसा कि मैंने कहा कि हमने अपनी प्रथाओं में बुराइयों (बुराइयों) को संबोधित किया है, कमियां थीं, दुरुस्त कर लिए हैं, छुआछूत, सती, जौहर, कन्या भ्रूण हत्या, हमने उन सभी मुद्दों को संबोधित किया है, फिर आप इस कानून को खत्म क्यों नहीं कर रहे हैं, कि जब आपकी पहली पत्नी मौजूद है, तो आप तीन पत्नियां रख सकते हैं, उसकी सहमति के बिना, यह स्वीकार्य नहीं है.’

Bharat Baani Bureau

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