नई दिल्ली 27 जनवरी 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) – अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जब से कुर्सी पर बैठे हैं, कुछ न कुछ हलचल जारी है. उनके आने के बाद से ग्लोबल मार्केट को सबसे ज्यादा परेशान करने वाला क्रूड ऑयल भी भारी दबाव महसूस कर करा है. आखिर ऐसा क्या कारण है कि ट्रंप की हर बात से कच्चे तेल की सांस फूलने लगती है. वे जब भी टैरिफ बढ़ाने की बात करते हैं तो क्रूड के भाव अपने आप नीचे आने शुरू हो जाते हैं. उनके कड़क मिजाज और क्रूड का ऐसा क्या नाता है, जो इतना असर डालता है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा OPEC पर दबाव डालने और कोलंबिया जैसे प्रमुख साझेदारों के साथ व्यापार तनाव बढ़ाने के कारण तेल की कीमतें दबाव में बनी हुई हैं. ट्रंप ने पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (OPEC) से तेल की कीमतें कम करने की अपनी मांग दोहराई, जिसके बाद कच्चे तेल के बाजार में गिरावट देखी गई. ब्रेंट क्रूड वायदा 1.11 प्रतिशत गिरकर 77.63 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया, जबकि अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) क्रूड 1.19 प्रतिशत गिरकर 73.77 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया.
ओपेक को दिया सीधा संदेश
ट्रंप ने बार-बार ओपेक से तेल की कीमतें कम करने का आग्रह किया है, इसे रूस की वित्तीय स्थिति को नुकसान पहुंचाने और यूक्रेन युद्ध को जल्दी समाप्त करने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है. उन्होंने कहा, ‘युद्ध जल्दी रोकने का एक तरीका है कि ओपेक इतना पैसा बनाना बंद कर दे और तेल की कीमतें गिरा दे, युद्ध तुरंत रुक जाएगा’. ट्रंप ने यह भी चेतावनी दी कि अगर ओपेक कार्रवाई करने में विफल रहता है तो रूस और अन्य देशों पर संभावित प्रतिबंध और शुल्क लगाए जा सकते हैं.
ट्रंप ने शुरू कर दी कार्रवाई
तेल की कीमतों पर और दबाव डालने के लिए ट्रंप ने कोलंबिया को निशाना बनाया है, जो अमेरिका को विदेश से तेल की आपूर्ति करने वाला चौथा सबसे बड़ा देश है. कोलंबिया द्वारा निर्वासित प्रवासियों को ले जाने वाले अमेरिकी विमानों को उतरने की अनुमति देने से इनकार करने के बाद ट्रंप ने कोलंबियाई वस्तुओं पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया, हफ्तेभर में 50 प्रतिशत तक बढ़ सकता है. अमेरिका कोलंबिया के समुद्री कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार है, जो 2024 में प्रतिदिन 1,83,000 बैरल (बीपीडी) आयात करता रहा है. यह कोलंबिया के कुल कच्चे तेल निर्यात का 41 प्रतिशत है.
पीछे हट गया कोलंबिया
ट्रंप के टैरिफ लगाने के बाद कोलंबिया ने पांव पीछे खींच लिए हैं और अमेरिका की शर्तों को मान लिया है. इस अस्थायी समाधान के बावजूद, कच्चे तेल की कीमतें अस्थिर बनी रहीं, ब्रेंट $78.01 प्रति बैरल और WTI $74 से ऊपर कारोबार कर रहे थे. ट्रंप की आक्रामक व्यापार और ऊर्जा नीतियों के चलते वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में बदलाव हो रहा है, जिससे तेल बाजार बढ़ती अनिश्चितताओं के साथ समायोजित हो रहे हैं. रूसी कच्चे तेल पर प्रतिबंधों से लेकर प्रमुख अमेरिकी साझेदारों के साथ नए व्यापार तनाव तक, ये सभी कारक और ओपेक का सतर्क दृष्टिकोण, फिलहाल कच्चे तेल की कीमतों पर दबाव बनाए हुए हैं. इसका भारत को भी बहुत लाभ मिलेगा, क्योंकि यहां कुल खपत का 85 फीसदी तेल आयात करना पड़ता है. क्रूड सस्ता होने से आम आदमी के लिए पेट्रोल-डीजल भी सस्ता हो जाएगा.
सारांश ट्रंप की नीतियां और कच्चे तेल के टैरिफ का सीधा असर वैश्विक बाजार पर पड़ता है, विशेष रूप से भारत जैसे तेल आयातक देशों पर। कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव से भारत को लाभ और नुकसान दोनों हो सकते हैं, लेकिन यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा फैक्टर बन चुका है।