]25 फरवरी 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) – तिब्बत पर कब्जे के बाद से वहां के निवासियों के साथ चीनी बर्रबरता की कहनी पूरी दुनिया जानती है. विरोध को बर्रबरता तौर पर दबाया गया. जान का जोखिम को देखते हिुए हजारों की संख्या में तिब्बत के लोग अपना घर-बार छोड़ कर भागना पड़ा. तिब्बत से नेपाल और फिर नेपाल से भारत. कई दशकों से यह चलता आ रहा है. अब चीन ने उन इलाकों पर इतना जबरदस्त निर्माण कर दिया कि एक तरह से वह रास्ता भी बंद हो गया. रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल के कोराला बॉर्डर क्रासिंग प्वाइंट हाईटेक क्रासिंग प्वाइंट बना दिया गया है. पहले मस्तंग के निवासी ही को स्पेशल पास के जरिए पार कर सकते थे. रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने काफी बड़े हिस्से में एक पूरा शहर बसा दिया है. अब कोई भी बिना चीन की इजाजत के वहां से नेपाल में नहीं घुस सकता. नेपाल ने भी अपने इलाके में इमिग्रेशन प्वाइंट बनाए है.

बॉर्डर इंफ्रास्ट्रकचर के नाम पर बसा दिया पूरा शहर
तिब्बत और नेपाल के बीच तकरीबन 4000 किलोमीटर की सीमा है. इस पूरी सीमा पर 14 बॉर्डर क्रॉसिंग प्वाइंट है. इस सब जगह से नेपाल और चीन के बीच व्यापार होता है. रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने अपर मस्तांग के कोराला बॉर्डर के दूसरी ओर कस्टम फैसेलिटी के अलावा क्वराइंटाइन सेंटर, पार्किग और रहने के लिए होटल और इमारतो का निर्माण किया है. चीन ने भारत के साथ लगती तिब्बत की सीमा के पास ही नहीं बल्कि नेपाल से लगती पर भी अपनी गतिविधियों को नेपाल तेज किया. मस्तंग के इलके को चीन द्वारा बंद करवने के पीछे का मकसद है कि यहां से तिब्बती शर्णर्थी भाग ना सके. साथ ही मठों में आने जाने वाले तिब्बत के निवासियों पर नजर रख सके. यहां पर बड़ी संख्या में बौद्ध मठ है. जानकारों की माने तो चीन को इस बात का डर है कि कहीं इन मठों के जरिए उसके खिलाफ कोई साजिश तो नहीं रची जा रही.

दलाई लामा के अवतार को लेकर चीन परेशान
तिब्बत के धर्मगुरू दलाई लामा भारत में निर्वासित जीवन जीने को मजबूर है. चीन तिब्बत की संस्कृति और भाषा को मिटाने पर तुला है. इसी महीने ही दलाई लामा में तिब्बत के युवा बैद्ध भिक्षुओ को तिब्बत के धर्म ग्रंथ का ज्यादा अध्यन करने को कहा था. साथ ही चीन के कई भिक्षुओं पर चीनी प्रभाव पर भी इशारा दिया था. तिब्बत के 15वें दलाई लामा के पुनर्जन्म तिब्बत के बाहर होने के संकेत उन्होंने दिए है. चीन इस बात का दावा कर रहा है कि अगले दलाई लामा के अवतार चीन में पैदा होगा. उसे ही चीनी सरकार मंजूरी देगी. अभी ही चीन के खिलाफ तिब्बत के लोगो में खासा गुस्सा है. उनके विरोधों को वह कुचलता रहा है. 15वें दलाई लामा को लेकर अगर विवाद हुआ तो चीन को तिब्बत में बड़े विद्रोह को झेलना पड़ सकता है. बहरहाल चीन ने नेपाल में बैद्ध मठों जो कि बहुत ताकतवर है उनकी ताकत कम करने के लिए बड़े पाबंदियों की एक नई फेहरिस बनाए खड़ा है.

भाषा से लेकर बैद्ध संस्कृति को मिटाने पर तुला चीन
चीन तिब्बत को अपना हिस्सा मानता है. और चीन के संविधान में साफ लिखा गया है कि अल्पसंख्यक समूहों को अपनी भाषा के इस्तेमाल और उसके विकास का कानूनी आधिकार दिया गया है. जब बात तिब्बत के लोगों की आती है तो वह उसी संविधान के किनारे कर देता है. चीन तो तिब्बत की संस्कृति और भाषा को पूरी तरह से मिटाने में तुला है. रिपोर्ट के मुताबिक चीन के कब्जे वाले तिब्बत में तिब्बती भाषा में पढ़ाए जा रहे स्कूलों को बंद करना शुरू कर दिया है. सूत्रो के मुताबिक पश्चिमी चीन के सिचुआन प्रांत के अधिकारी तिब्बती भाषा में पढ़ाने वाले निजी तिब्बती स्कूलों को बंद कर रहे हैं. छात्रों को सरकारी स्कूलों में पढ़ने जाने के लिये मजबूर होना पढ़ रहा है जहां मैड्रिन भाषा में ही पढ़ाया जांता है. साथ ही चीनी प्रशासन ने तिब्बत के स्कूलों में मैंड्रिन को फर्सट लैंग्वेज के तौर पर स्थापित कर दिया है. वहा कि पारंपरिक भाषा दूसरे नंबर पर है.

सारांश : तिब्बत में चीन का दमन लगातार बढ़ रहा है। अब नेपाल सीमा पर सख्त पहरा लगा दिया गया है, जिससे तिब्बती शरणार्थियों के लिए भागना भी मुश्किल हो गया है। मानवाधिकार संगठनों ने इस कार्रवाई की कड़ी निंदा की है, लेकिन चीन अपने रुख पर अड़ा हुआ है।

Bharat Baani Bureau

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *