Rekha Gupta

01 अप्रैल 2025 ( (भारत बानी ब्यूरो): द‍िल्‍ली-एनसीआर में प्रदूषण हर साल लोगों का दम घोटता है. लेकिन अब इसकी असल वजह सामने आ गई है. सीएजी की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है क‍ि द‍िल्‍ली में प्रदूषण जांच के नाम पर सिर्फ दिखावा हो रहा था. दिल्ली में प्रदूषण जांच केंद्र (PCC) मनमानी तरीके से पॉल्‍यूशन सर्टिफ‍िकेट (PUCC) जारी कर रहे थे. इससे इनकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हुए हैं. कई ऐसी गाड़‍ियों को सर्टिफ‍िकेट जारी कर द‍िया गया, जो उत्सर्जन मानकों को पूरा नहीं कर रहे थे. आइए जानते हैं क‍ि सीएजी रिपोर्ट में क‍िन खामियों की ओर इशारा क‍िया गया है.

डाटाबेस में रिकॉर्ड नहीं हो रहे थे उत्सर्जन आंकड़े
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद, उत्सर्जन डेटा और वाहनों के राष्ट्रीय डेटाबेस (VAHAN) के बीच कोई लिंक स्थापित नहीं किया गया. इससे PCCs को वाहन के BS उत्सर्जन मानक को मैन्युअल रूप से चुनने की अनुमति मिली, जिससे हेराफेरी की संभावना बढ़ गई.

रजिस्ट्रेशन और PUC जांच में बड़ा अंतर
दिल्ली में पंजीकृत वाहनों की संख्या और किए गए PUC परीक्षणों के बीच भारी अंतर पाया गया. इसका मतलब है कि वाहन मालिक नियमित रूप से अपने वाहनों की प्रदूषण जांच नहीं करवा रहे हैं.

परीक्षण उपकरणों की जांच की कोई व्यवस्था नहीं
परिवहन विभाग (DoT) ने PUC उपकरणों की जाँच या प्रदूषण जांच केंद्रों (PCCs) की दक्षता को सुनिश्चित करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की. कई ऐसे केंद्र थे जो प्रदूषण प्रमाणपत्र जारी कर रहे थे, जबकि उनके उपकरणों की जाँच ही नहीं हुई थी.

रिमोट सेंसिंग तकनीक अब तक नहीं अपनाई गई
सुप्रीम कोर्ट द्वारा बार-बार जोर दिए जाने के बावजूद, 2009 से विचाराधीन रिमोट सेंसिंग उपकरणों का उपयोग अब तक नहीं किया गया. यह तकनीक बिना वाहन को रोके ही उत्सर्जन जांच कर सकती है.

वाहन फिटनेस परीक्षण में भी खामियां
दिल्ली में वाहनों की फिटनेस जांच की विश्वसनीयता भी संदेह के घेरे में है. वर्ष 2018-19 से 2020-21 के बीच झुलझुली के स्वचालित परीक्षण केंद्र का उपयोग बेहद कम हुआ, जबकि अधिकतर फिटनेस जांच बुराड़ी में किए गए, जहां केवल दृश्य निरीक्षण के आधार पर वाहनों को पास किया गया. झुलझुली केंद्र में भी कई वाहनों को बिना उत्सर्जन जांच के ही पास कर दिया गया.

वाहन मालिकों को याद दिलाने की कोई व्यवस्था नहीं
2014-15 से 2018-19 के बीच 20% से 64% वाहन मालिकों ने अपने फिटनेस प्रमाणपत्र नवीनीकरण नहीं करवाए. लेकिन DoT ने इन्हें याद दिलाने के लिए कोई प्रणाली नहीं बनाई.

पुराने वाहनों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने के उपाय नहीं
CPCB ने पुराने डीजल वाहनों में डीजल पार्टिकुलेट फिल्टर (DPF) लगाने को अनिवार्य करने के निर्देश दिए थे. लेकिन DoT ने 2017 में केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) से नियमों में संशोधन का अनुरोध किया था, जो अब तक लंबित है.

पुराने वाहनों का पंजीकरण जारी, जब्त करने की कार्रवाई सुस्त
सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध के बावजूद पुराने वाहनों का पंजीकरण जारी रहा. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के निर्देशों के बाद भी 2018-21 के बीच केवल 6.27% पुराने वाहनों को ही डीरजिस्टर किया गया. दिल्ली में 41 लाख से अधिक पुराने वाहन (ELV) हैं, लेकिन केवल 357 वाहनों को जब्त किया गया.

एनसीआर से आने वाले वाहनों की निगरानी नहीं
दिल्ली में प्रवेश करने वाले वाहनों के उत्सर्जन की निगरानी बेहद कमजोर रही. कुल 128 एंट्री पॉइंट्स में से केवल 7 पर ही जांच दल तैनात किए गए थे. वहीं, प्रवर्तन शाखा के पास 1,134 कर्मियों की जरूरत थी, लेकिन केवल 292 कर्मचारी तैनात थे.

सरकार को सख्त कदम उठाने की जरूरत
रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि सरकार को प्रदूषण जांच की विश्वसनीयता बढ़ाने, स्वचालित परीक्षणों को बढ़ावा देने, पुराने वाहनों पर नियंत्रण करने और प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमता बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए.

सारांश: सीएजी रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि दिल्ली में प्रदूषण जांच केंद्र (PCC) मनमाने तरीके से पॉल्यूशन सर्टिफिकेट जारी कर रहे थे, जिससे प्रदूषण जांच की विश्वसनीयता पर सवाल उठे हैं.

Bharat Baani Bureau

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