24 जून 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) एचडीएफसी बैलेंस्ड एडवांटेज फंड (HDFC Balanced Advantage Fund) ने हाल ही में 1 लाख करोड़ रुपये के एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) का आंकड़ा पार कर लिया है। यह पराग पारीख फ्लेक्सीकैप फंड (Parag Parikh Flexicap Fund) के बाद ऐसा करने वाली दूसरी एक्टिव रूप से मैनेज होने वाली म्युचुअल फंड स्कीम बन गई है। बैलेंस्ड एडवांटेज कैटेगरी (जिसे डायनेमिक एसेट एलोकेशन फंड भी कहा जाता है) भी 3 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े के करीब पहुंच गई है। एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) के अनुसार, 31 मई तक इस कैटेगरी में कुल 2,99,506 करोड़ रुपये की संपत्तियां थीं।

निवेशकों को क्यों लुभा रहे बैलेंस्ड एडवांटेज फंड्स?

बैलेंस्ड एडवांटेज फंड्स (BAFs) बाजार की स्थिति के अनुसार इक्विटी और डेट के बीच निवेश का संतुलन लचीले ढंग से तय करते हैं। एचडीएफसी एसेट मैनेजमेंट कंपनी के सीनियर फंड मैनेजर (इक्विटी) गोपाल अग्रवाल कहते हैं, “इस लचीलापन से निवेशकों को बाजार की तेजी का फायदा मिलता है, साथ ही यह फंड गिरावट के जोखिम को संभालने की कोशिश करता है। यह फंड अस्थिरता या अनिश्चितता के समय में उपयोगी साबित होता है।”

प्रदर्शन में निरंतरता भी इन फंड्स की खासियत है। एडलवाइस म्युचुअल फंड में फैक्टर इनवेस्टिंग के को-हेड भावेश जैन कहते हैं, “इस कैटेगरी ने पिछले तीन से पांच वर्षों में बेहतर रिस्क-एडजस्टेड रिटर्न दिए हैं और अलग-अलग बाजार परिस्थितियों में अच्छा प्रदर्शन किया है।”

डेट फंड्स पर टैक्स नियमों में बदलाव के बाद निवेशकों का रुझान बैलेंस्ड एडवांटेज फंड्स (BAFs) की तरफ बढ़ा है।

ये फंड फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) से इक्विटी मार्केट में कदम रखने वाले निवेशकों के लिए एक आसान शुरुआत साबित होते हैं। इनवेस्को एसेट मैनेजमेंट (इंडिया) के हेड (इक्विटीज) अमित गनात्रा कहते हैं, “FD से निकलकर इक्विटी मार्केट में आने वाले नए निवेशकों के लिए कम उतार-चढ़ाव के साथ रिटर्न पाना जरूरी होता है, और यह जरूरत BAFs के जरिए पूरी हो सकती है।”

बैलेंस्ड एडवांटेज फंड्स (BAF) में निवेश के फायदे

जब बाजार अनुकूल नहीं होता, तब बैलेंस्ड एडवांटेज फंड्स (BAFs) इक्विटी में निवेश घटा देते हैं और जब वैल्यूएशन या मोमेंटम इंडिकेटर आकर्षक होते हैं, तो इक्विटी एक्सपोजर बढ़ा देते हैं। फंड्सइंडिया के रिसर्च हेड अरुण कुमार कहते हैं, “अगर यह रणनीति सही ढंग से लागू की जाए, तो यह उतार-चढ़ाव को कम करती है और नेट इक्विटी फंड्स के लगभग बराबर रिटर्न दे सकती है।”

भावेश जैन बैलेंस्ड एडवांटेज फंड्स के दो फायदे बताते हैं: पहला बेहतर रिस्क-एडजस्टेड रिटर्न और दूसरा इक्विटी व डेट के बीच डायनामिक स्विचिंग पर निवेशक को कोई अतिरिक्त लागत नहीं चुकानी पड़ती हैं।

इसके अलावा, बैलेंस्ड एडवांटेज फंड्स निवेश से जुड़े पूर्वाग्रहों से निपटने में मदद करते हैं, जैसे कि तेजी के बाद भारी निवेश करना या गिरावट के बाद इक्विटी से दूर रहना। व्हाइटओक कैपिटल एएमसी के डायरेक्टर और हेड ऑफ सेल्स वैभव चुग कहते हैं, “आमतौर पर, जब वैल्यूएशन ज्यादा (महंगे) हों तो कम और जब सस्ते हों तो ज्यादा निवेश करना चाहिए। BAFs निवेशकों को यही करने में सक्षम बनाते हैं।”

इन फंड्स में आमतौर पर इक्विटी फंड्स की तुलना में उतार-चढ़ाव कम होता है। भावेश जैन कहते हैं, “BAF में यदि कोई सिस्टेमैटिक विदड्रॉअल प्लान (SWP) अपनाया जाए, तो यह नियमित कैश फ्लो देता है और टैक्स के लिहाज से भी फायदेमंद होता है।

BAF की इन सीमाओं का रखें ध्यान

बैलेंस्ड एडवांटेज फंड्स का उद्देश्य इक्विटी फंड्स को पछाड़ना नहीं होता। कुमार कहते हैं, “कम उतार-चढ़ाव के साथ कम रिटर्न भी आते हैं।”

चुग कहते हैं कि अगर फंड का वैल्यूएशन मॉडल मजबूत नहीं है, तो उसका प्रदर्शन कमजोर रह सकता है। कुमार का यह भी कहना है कि कुछ मॉडल रिकवरी के दौरान बहुत जल्दी इक्विटी एक्सपोजर घटा देते हैं। उनके मुताबिक, पिछले 2-3 वर्षों में कुछ BAFs ने इक्विटी में कम निवेश बनाए रखा, जिससे वे बाजार की बड़ी तेजी में हिस्सा नहीं ले सके।

अगर बाजार में लंबे समय तक तेजी (bull runs) बनी रहती है, तो BAFs का प्रदर्शन कमजोर रह सकता है, जिससे निवेशकों में असंतोष बढ़ सकता है और वे फंड से बाहर निकल सकते हैं। चुग कहते हैं, “निवेशक यह भूल जाते हैं कि BAFs का उद्देश्य बाजार में हिस्सेदारी के साथ-साथ उतार-चढ़ाव को भी कम करना है।”

BAFs में किसे करना चाहिए निवेश?

बैलेंस्ड एडवांटेज फंड्स उन निवेशकों के लिए बेहतर साबित हो सकते हैं जो फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) से बाहर निकलकर पहली बार इक्विटी मार्केट में कदम रखने की योजना बना रहे हैं। कुमार कहते हैं, “जब निवेशक BAFs की उतार-चढ़ाव वाली प्रकृति से सहज हो जाते हैं, तो वे धीरे-धीरे सीधे इक्विटी फंड्स की तरफ जा सकते हैं।”

जिन निवेशकों का जोखिम लेने का स्तर कम है, उन्हें भी ये फंड आकर्षित कर सकते हैं। अग्रवाल कहते हैं, “ऐसे निवेशक जो कम उतार-चढ़ाव के साथ, लंबी अवधि में स्थिर ग्रोथ चाहते हैं या जो SWP के जरिए नियमित कैश फ्लो चाहते हैं, उनके लिए ये फंड उपयुक्त हैं।”

भावेश जैन का सुझाव है कि रिटायर्ड निवेशक इन फंड्स का इस्तेमाल संभावित रूप से स्थिर और टैक्स-एफिशिएंट कैश फ्लो के लिए कर सकते हैं।

वहीं दूसरी ओर, जो निवेशक अपनी एसेट एलोकेशन खुद मैनेज करते हैं, उनके लिए BAF उतना फायदेमंद नहीं हो सकता। कुमार कहते हैं, “BAF में इक्विटी का आवंटन आमतौर पर 30% से 70% के बीच हो सकता है। इससे निवेशक की कुल एसेट एलोकेशन असंतुलित हो सकती है।” समस्या तब भी हो सकती है जब निवेशक खुद इक्विटी एक्सपोजर बढ़ाएं और उसी समय फंड मैनेजर उसे घटा दे।

अलग-अलग मॉडल, अलग-अलग नतीजे

बैलेंस्ड एडवांटेज फंड्स अपनी डायनामिक एलोकेशन स्ट्रैटेजी को लागू करने के तरीके में एक-दूसरे से काफी अलग होते हैं। इसी वजह से पिछले छह महीनों में कुछ फंड्स ने बेहतर प्रदर्शन किया है, जबकि कुछ पिछड़ गए हैं।

इक्विटी एलोकेशन की रेंज और उसे तय करने का तरीका भी फंड-टू-फंड अलग होता है। कुमार कहते हैं, “कुछ मॉडल वैल्यूएशन मेट्रिक्स जैसे प्राइस-टू-ईअर्निंग (P/E) या प्राइस-टू-बुक वैल्यू (P/B) का इस्तेमाल करते हैं, कुछ इनका मिश्रण अपनाते हैं, जबकि कुछ फंड्स मोमेंटम-बेस्ड अप्रोच को फॉलो करते हैं।” उदाहरण के लिए, एडलवाइस बैलेंस्ड एडवांटेज फंड बाजार के ट्रेंड इंडिकेटर्स का इस्तेमाल करता है, जैसे मोमेंटम, मूविंग एवरेज और वोलैटिलिटी।

मॉडल्स में कुछ और भी विविधताएं देखने को मिलती हैं। कैपिटल लीग के पार्टनर रजुल कोठारी कहते हैं, “कुछ BAFs मल्टीफैक्टर क्वांट स्ट्रैटेजी को फॉलो करते हैं। कुछ फंड्स हाइब्रिड स्ट्रैटेजी अपनाते हैं, जिसमें क्वांट और फंड मैनेजर के विवेक का मिश्रण होता है। कुछ फंड्स स्टैटिक या बहुत सीमित डायनामिक मॉडल पर काम करते हैं।” कुछ फंड्स नुकसान को सीमित करने के लिए इक्विटी एक्सपोजर को हेज भी करते हैं।कैसे चुनें सही बैलेंस्ड एडवांटेज फंड्स?

ऐसे फंड्स चुनें जिनका लंबा और स्थिर ट्रैक रिकॉर्ड हो। कुमार कहते हैं, “ऐसे फंड को प्राथमिकता दें जिसका कम से कम 10 साल का परफॉर्मेंस ट्रैक रिकॉर्ड हो, ताकि आप विभिन्न बाजार चक्रों में इसके प्रदर्शन का मूल्यांकन कर सकें। तीन और पांच साल की रोलिंग रिटर्न को देखें कि क्या प्रदर्शन में निरंतरता है। साथ ही, बड़ी गिरावटों के दौरान फंड का ड्रॉडाउन अपने प्रतिस्पर्धियों की तुलना में कैसा रहा, यह भी जांचें।”

भावेश जैन का सुझाव है कि ऐसे फंड को चुनें जो मंदी के दौर में कम गिरा हो और तेजी के समय बेहतर रिटर्न देने में सक्षम रहा हो।

फंड की निवेश स्ट्रैटेजी को समझना जरूरी है। कोठारी कहती हैं, “क्या यह वैल्यूएशन-आधारित है या मोमेंटम-आधारित? क्या यह एक नियम-आधारित क्वांटिटेटिव मॉडल को फॉलो करता है, या फंड मैनेजर को इसे बदलने की छूट है?” उनका सुझाव है कि जो निवेशक ज्यादा सतर्क हैं, वे वैल्यूएशन-आधारित मॉडल को चुनें, जबकि जो तेजी के दौर में ज्यादा इक्विटी एक्सपोजर चाहते हैं, वे मोमेंटम स्ट्रैटेजी वाले फंड को चुन सकते हैं।

कुमार का सुझाव है कि अलग-अलग मॉडल वाले दो या तीन BAFs को मिलाकर निवेश करना बेहतर हो सकता है। वे कहते हैं, “एक वैल्यूएशन फोकस्ड फंड और एक मोमेंटम फोकस्ड फंड को मिलाकर निवेश करने से बेहतर संतुलन बन सकता है और दोनों स्ट्रैटेजी की कमियों को संतुलित किया जा सकता है।”

निवेशकों को समय-समय पर फंड का नेट इक्विटी लेवल ट्रैक करते रहना चाहिए। मनीफ्रंट के को-फाउंडर और सीईओ मोहित गांग कहते हैं, “जिन फंड्स में इक्विटी का स्तर कम होता है, वे ज्यादा डिफेंसिव माने जाते हैं, जबकि जिनमें इक्विटी का एक्सपोजर ज्यादा होता है, वे लंबे समय में वेल्थ क्रिएशन के लिए बेहतर हो सकते हैं।” वे यह भी सलाह देते हैं कि फंड का एक्सपेंस रेशियो जरूर जांचें, क्योंकि ज्यादा खर्च रिटर्न को कम कर सकता है।

अंत में, सिर्फ पिछले रिटर्न के आधार पर किसी फंड को न चुनें। गांग 

सारांश:
Balanced Advantage Funds (BAFs) को बाजार में कम जोखिम और स्थिर रिटर्न का विकल्प माना जाता है, लेकिन हर फंड आपके लिए सही नहीं होता। निवेश से पहले फंड की एसेट एलोकेशन स्ट्रैटेजी, रिस्क प्रोफाइल, फंड मैनेजर का ट्रैक रिकॉर्ड और फीस स्ट्रक्चर को समझना बेहद जरूरी है। बिना जानकारी के निवेश करने पर बड़ा नुकसान हो सकता है। समझदारी से निवेश करें और लॉन्ग टर्म लक्ष्य को ध्यान में रखें।

Bharat Baani Bureau

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