नई दिल्ली 09 जुलाई 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : भारतीय क्रिकेट टीम की तरफ से खेलने वाले हर क्रिकेटर का करियर लंबा नहीं हो पाता है. लेकिन कुछ ऐसे क्रिकेटर हैं, जिन्होंने अपने छोटे करियर में ही बेहतरीन खेल का प्रदर्शन किया और उनका नाम सम्मान के साथ लिया जाता है. वेंकटपति राजू ऐसा ही एक नाम है. दुबले-पतले शरीर वाले राजू को दक्षिण अफ्रीकी ऑलराउंडर ब्रायन मैकमिलन ने मजाक में ‘मसल्स’ निकनेम दिया था.
आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद में जन्म
वेंकटपति राजू का जन्म 9 जुलाई 1969 को आंध्र प्रदेश में हुआ था. इनका पूरा नाम सागी लक्ष्मी वेंकटपति राजू है. बचपन से ही क्रिकेट में दिलचस्पी रखने वाले राजू ने 1990 में न्यूजीलैंड के खिलाफ वनडे और टेस्ट में डेब्यू किया था.
1990 में डेब्यू और 2001 में आखिरी मैच
1989-90 के घरेलू सत्र में प्रथम श्रेणी मैचों में 32 विकेट लेने की वजह से उन्हें राष्ट्रीय टीम में मौका दिया गया था. वेंकटपति राजू का करियर चोटों से प्रभावित होने की वजह से ज्यादा लंबा नहीं रहा। 1990 में डेब्यू करने वाले राजू ने अपना आखिरी वनडे 1996 में आखिरी वनडे और 2001 में आखिरी टेस्ट खेला था.
ऐसा था इंटरनेशनल करियर
बाएं हाथ के स्पिनर राजू ने अपने करियर में 28 टेस्ट मैचों में 93 और 53 वनडे मैच में 63 विकेट लिए. राजू अपनी बाएं हाथ की स्पिन गेंदबाजी के लिए जाने जाते हैं. लेकिन न्यूजीलैंड के खिलाफ पहले ही मैच में उन्होंने कीवी गेंदबाजों को अपनी बल्लेबाजी से परेशान कर दिया था.
एशिया कप जीता, दो वर्ल्ड कप भी खेले
दो घंटे से ज्यादा की बल्लेबाजी करते हुए उन्होंने 31 रन बनाए थे, जो इस फॉर्मेट का उनका सर्वाधिक स्कोर है. 1990-91 में एशिया कप जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा रहे राजू 1992 और 1996 वनडे विश्व कप भी खेले थे.
टीम से होते रहे अंदर-बाहर
ज्यादा मौके न मिलने के बावजूद वह आंध्र प्रदेश की तरफ से घरेलू क्रिकेटर लगातार खेले। 177 प्रथम श्रेणी मैचों में 589 और 124 लिस्ट ए मैचों में 152 विकेट उनके नाम दर्ज है. 2004 में उन्होंने अपना आखिरी घरेलू मैच उत्तर प्रदेश के खिलाफ खेला था.
संन्यास के बाद क्रिकेट प्रशासन में आए
क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद राजू कोचिंग और क्रिकेट प्रशासन के क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं. राजू 2007-2008 में साउथ जोन से भारतीय क्रिकेट टीम की चयन समिति का हिस्सा थे. वह हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष रह चुके हैं.
अपने चेले को भी बनाया क्रिकेटर
राजू अक्सर राष्ट्रीय और घरेलू मैचों में कमेंट्री करते हुए भी नजर आते हैं. बाएं हाथ के स्पिनर प्रज्ञान ओझा ने कहा था कि वेंकटपति राजू ने उन्हें क्रिकेटर बनने के लिए प्रेरित किया था
सारांश:
वेंकटरपथी राजू, जिन्होंने टीम इंडिया के लिए दो वर्ल्ड कप (1992 और 1996) खेले, आज गुमनामी में हैं। बाएं हाथ के इस स्पिनर ने कई अहम मुकाबलों में भारत को सफलता दिलाई, लेकिन धीरे-धीरे वह टीम से बाहर हो गए और चर्चा से दूर हो गए। दिलचस्प बात यह है कि उनका एक शागिर्द आज टीम इंडिया का बड़ा स्टार बन चुका है, जिसने उनके बताए गुरों से अपना नाम बनाया।