11 जुलाई 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार नेशनल सिक्योरिटी एक्ट जितना सख्त कानून लाने की तैयारी में जुटी थी. लगातार प्रयास के बाद अब मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को इस मामले में बड़ी सफलता मिली है. स्पेशल पब्लिक सिक्योरिटी बिल को महारष्ट्र विधानसभा ने पास कर दिया है. इस बिल के प्रावधान नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (NSA) जितना ही सख्त हैं. अब इसे विधानपरिषद में पेश किया जाएगा, फिर राज्यपाल की सहमति मिलने के बाद यह कानून में बदल जाएगा. हालांकि, इस बिल का काफी विरोध भी हो रहा था, पर महीनों के प्रयास के बाद आखिरकार इसे विधानसभा से पास कर लिया गया. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने खुद संशोधित बिल को सदन में पेश किया और कहा कि यह कानून उन संगठनों पर शिकंजा कसने के लिए लाया गया है जो शहरी नक्सलवाद (Urban Naxalism) और उग्रवादी गतिविधियों के जरिए संविधानिक ढांचे को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं.
यह विधेयक लंबे समय से राजनीतिक गतिरोध में फंसा हुआ था, लेकिन जन-विरोध और विपक्ष के सुझावों के आधार पर इसमें कई अहम बदलाव किए गए हैं. राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले की अध्यक्षता में एक 25 सदस्यीय सर्वदलीय समिति गठित की गई थी, जिसमें जितेंद्र आव्हाड, सतेज पाटिल, जयंत पाटिल, विजय वडेट्टीवार, शशिकांत शिंदे और अजय चौधरी जैसे वरिष्ठ नेता शामिल थे. समिति ने 9 जुलाई को अपनी रिपोर्ट विधानसभा को सौंपी, जिसके आधार पर सरकार ने संशोधन किए. मुख्यमंत्री फडणवीस ने सदन को बताया कि सरकार को विभिन्न वर्गों से 12,500 से अधिक सुझाव और आपत्तियां प्राप्त हुई थीं. उन्होंने कहा, ‘यह कानून असहमति की आवाज दबाने के लिए नहीं है, बल्कि उन तत्वों के खिलाफ है जो लोकतंत्र में विश्वास नहीं रखते और युवाओं को भटका कर व्यवस्था को उखाड़ फेंकना चाहते हैं.’
महाराष्ट्र में निपटे नक्सली
मुख्यमंत्री फडणवीस के अनुसार, राज्य में नक्सलवाद अब सिर्फ दो तालुकाओं तक सीमित रह गया है, लेकिन इसकी रणनीति बदल चुकी है. अर्बन नक्सिलयों द्वारा युवाओं को भ्रमित कर व्यवस्था के खिलाफ भड़काया जा रहा है और यह कानून उस खतरे से निपटने में कारगर साबित होगा. समिति के सुझाव पर एक प्रमुख बदलाव यह किया गया है कि अब कानून व्यक्तियों और संगठनों को टारगेट करने के बजाय अत्यधिक उग्र विचारधारा वाले संगठनों पर केंद्रित होगा. सरकार का कहना है कि इससे सुरक्षा और लोकतांत्रिक अधिकारों के बीच संतुलन बना रहेगा. हालांकि, विपक्ष ने इस कानून के दुरुपयोग की आशंका जताई है और कहा है कि वे इसकी हर कार्रवाई पर नजर रखेंगे. विपक्षी नेताओं ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर यह कानून असहमति की आवाजों को दबाने का जरिया बना, तो वे सड़क से लेकर सदन तक विरोध करेंगे.
बिल के मुख्य प्रावधान– किसी भी संगठन को, जो सार्वजनिक व्यवस्था या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माना जाएगा, उसे गैर-कानूनी घोषित किया जा सकेगा.
– बिना प्राथमिक आरोप दायर किए, ऐसे संगठनों के सदस्यों को हिरासत में लिया जा सकेगा.
– संगठनों की संपत्ति जब्त की जा सकेगी, बैंक खातों को फ्रीज़ किया जा सकेगा और उनके कार्यालय सील किए जा सकेंगे.
– यदि वही सदस्य किसी नए नाम से संगठन बनाते हैं, तो उसे स्वत: अवैध माना जाएगा.
– केवल DIG या उससे ऊपर का अधिकारी ही इस कानून के तहत कार्रवाई की अनुमति दे सकेगा, जिससे इसके दुरुपयोग की आशंका कम हो सके.
अब विधानपरिषद में होगा पेश
अब यह विधेयक विधान परिषद में भेजा गया है, जहां इसकी अंतिम मंजूरी होनी बाकी है. अगर वहां भी यह पारित हो गया, तो महाराष्ट्र देश के उन चुनिंदा राज्यों में शामिल हो जाएगा, जहां माओवादी या उग्रवादी विचारधाराओं से निपटने के लिए राज्य का अलग कानून मौजूद है. यह कानून ऐसे समय पर लाया गया है जब देशभर में अर्बन नक्सल शब्द और इससे जुड़ी कार्रवाईयों को लेकर व्यापक बहस छिड़ी हुई है. अब देखने वाली बात होगी कि यह कानून सुरक्षा के नाम पर लोकतांत्रिक अधिकारों को सीमित करने वाला बनता है या वास्तव में चरमपंथ से निपटने में सहायक सिद्ध होता है.
सारांश:
महाराष्ट्र विधानसभा में एक सख्त स्पेशल सिक्योरिटी बिल पास किया गया है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) जितना सख्त बताया जा रहा है। इस कानून के तहत पुलिस को बिना वारंट गिरफ्तारी और तलाशी का अधिकार मिलेगा। सरकार का दावा है कि यह कानून राज्य की सुरक्षा और आतंकवाद से निपटने के लिए जरूरी है, जबकि विपक्ष ने इसके दुरुपयोग की आशंका जताई है।