04 जुलाई 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : चीन ने जरूरी रेयर अर्थ मिनरल्स के निर्यात पर रोक लगाकर पश्चिमी देशों के रक्षा उद्योग को मुश्किल में डाल दिया है। इससे हथियार बनाने वाली कंपनियों को दूसरी जगहों से सामान जुटाने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है और लागत आसमान छू रही है। साथ ही, इससे ये बात सामने भी आई है कि दुनिया रेयर अर्थ मिनरल्स के लिए कितना चीन पर निर्भर है।

अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूक्रेन की सेना को ड्रोन के पुर्जे सप्लाई करने वाली एक अमेरिकी कंपनी को रेयर अर्थ मिनरल्स से बने चुंबकों की कमी की वजह से दो महीने तक देरी झेलनी पड़ी। ये चुंबक ड्रोन की मोटर, मिसाइल सिस्टम, जेट इंजन और सैटेलाइट के सामान में इस्तेमाल होते हैं। इनकी कीमतें अब कई गुना बढ़ गई हैं। कुछ रक्षा कंपनियों को सामान के लिए पांच गुना ज्यादा दाम चुकाने पड़ रहे हैं। एक बार तो जेट फाइटर इंजन में यूज होने वाले सैमेरियम की कीमत सामान्य से 60 गुना ज्यादा बताई गई।

चीन का रेयर अर्थ मिनरल्स पर कब्जा

चीन दुनिया के करीब 90 फीसदी रेयर अर्थ मिनरल्स की सप्लाई करता है और सैमेरियम, नियोडिमियम, डिस्प्रोसियम जैसे जरूरी सामान और चुंबकों के प्रोडक्शन में उसका दबदबा है। साथ ही, वो 70 फीसदी से ज्यादा रेयर अर्थ मिनरल्स खनन को कंट्रोल भी करता है। इस साल अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव बढ़ने पर चीन ने निर्यात पर और सख्ती कर दी। जून में ट्रंप सरकार ने कुछ व्यापारिक रियायतें दीं, तो थोड़ी-बहुत सप्लाई फिर शुरू हुई, लेकिन रक्षा के लिए जरूरी रेयर अर्थ मिनरल्स और दूसरी जरूरी खनिजों पर रोक अब भी बरकरार है।

इस कमी ने बड़े देशों की रक्षा सप्लाई चेन की कमजोरियां उजागर कर दी हैं। माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स, ड्रोन मोटर, नाइट-विजन डिवाइस, मिसाइल सिस्टम और सैटेलाइट पार्ट्स बनाने के लिए ये तत्व बहुत जरूरी हैं।

भारत के EV मेकर्स को झटका

भारत भी इन पाबंदियों से परेशान है। अधिकारियों का कहना है कि अप्रैल में चीन ने भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन (EV) कंपनियों को रेयर अर्थ मिनरल्स की सप्लाई पूरी तरह रोक दी। ये कदम उन सामानों पर बढ़ती वैश्विक नजर के बीच उठाया गया, जो सिविल और सैन्य दोनों कामों में इस्तेमाल हो सकते हैं। चीन ने कथित तौर पर ये सुनिश्चित किया कि ये चुंबक उनकी निगरानी से बाहर रक्षा उद्योगों तक न पहुंचें।

EV बनाने में इन चुंबकों की लागत सिर्फ 1-3 फीसदी होती है, लेकिन ये इतने जरूरी हैं कि इनके बिना साधारण EV, दोपहिया वाहन या Apple के एयरपॉड्स जैसे प्रोडक्ट्स का प्रोडक्शन रुक जाता है। पिछले साल भारत के ऑटो उद्योग ने 306 करोड़ रुपये के रेयर अर्थ मिनरल्स चुंबक आयात किए थे।

दुनिया में इन चुंबकों की मांग 2035 तक दोगुनी होकर 6-6.5 लाख टन तक पहुंच सकती है। भारत में ये मांग चार से छह गुना बढ़कर 2,000-3,000 टन हो सकती है।

अमेरिका का ‘महामारी वाला प्लान’

अमेरिका चीन पर निर्भरता कम करने के लिए वही तरकीब अपना रहा है, जो महामारी के वक्त इस्तेमाल हुई थी। इसमें अपने यहां खनन को बढ़ावा देने के लिए सरकारी स्तर पर कीमत की गारंटी देना शामिल है। रॉयटर्स की खबर के मुताबिक, 24 जुलाई को एक मीटिंग में अधिकारियों ने रेयर अर्थ मिनरल्स कंपनियों और ऐप्पल-माइक्रोसॉफ्ट जैसी टेक कंपनियों को बताया कि हाल का MP मटेरियल्स सौदा अमेरिकी खनन और प्रोसेसिंग को बढ़ाने की बड़ी कोशिश का हिस्सा है।

भारत का क्रिटिकल मिनरल मिशन

भारत के पास दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा रेयर अर्थ मिनरल्स भंडार है, लेकिन EV में यूज होने वाले भारी तत्वों को निकालना महंगा है। साथ ही, ये तत्व इतनी मात्रा में नहीं मिलते कि उनसे फायदा हो।

इस कमी से निपटने के लिए भारत सरकार ने क्रिटिकल मिनरल मिशन शुरू किया है, जिसमें सात साल में 18,000 करोड़ रुपये लगाकर अपनी क्षमता बढ़ाने की योजना है। लेकिन ये प्लान लंबे समय के लिए हैं, और अभी कमी से जूझ रही कंपनियों को तुरंत राहत नहीं दे सकते।

बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट में एक्सपर्ट्स ने कहा था कि ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका या अफ्रीकी देशों से सामान लेने की कोशिशें चल रही हैं, लेकिन कोई भी देश अभी चीन के पैमाने, तेजी या सस्ते दामों की बराबरी नहीं कर सकता।

Bharat Baani Bureau

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *