नई दिल्ली 06 जुलाई 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) . कहते हैं किस्मत में जो लिखा होता है, वो जरूर मिलता है फिर वो एक करिश्मे से मिल जाए या फिर उसके लिए लंबे समय तक मेहनत करनी पड़े. बॉलीवुड से लेकर साउथ तक न जानें ऐसे कितने नाम हैं, जिन्होंने इस बात को सच भी किया. भारतीय सिनेमा अब 100 साल से भी पुराना हो चुका है, लेकिन यह 1940 के दशक के आखिर में आकार लेना शुरू हुआ, जब देश की आजादी के बाद यह सांस्कृतिक धारा का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया. ये वो दौर था फिल्म निर्माता, एक्टर, संगीत निर्देशक और दूसरे तकनीशियन फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे. इसी दौर में एक निर्माता ऐसे थे, जिन्होंने भारत की सबसे प्रसिद्ध फिल्मों में से एक बनाई और अमिताभ बच्चन के डूबते करियर को नई रफ्तार दे दी.
सिनेमा में हिट फिल्मों, स्टार्स और डायरेक्टर्स की बातों तो बहुत होती हैं, लेकिन क्या आप उस निर्माता के बारे में जानते हैं, जो 1975 में आई एक महाब्लॉकबस्टर फिल्म बनाकर अमर हो गए. ये फिल्म कोई और नहीं बल्कि ‘शोले’ थी और ये निर्माता और कोई नहीं बल्कि जीपी सिप्पी थे.
रईसी और शानो-शौकत में बीता बचपन
कराची के एक अमीर व्यापारी परिवार से ताल्लुक रखने वाले जीपी सिप्पी का बचपन कराची की रईसी और शानो-शौकत में बीता था. लेकिन 1947 के विभाजन ने सब कुछ छीन लिया. उनका आलीशान बंगला, बिजनेस और सारी संपत्ति वहीं रह गई और जीपी सिप्पी अपने परिवार के साथ जान बचाकर मुंबई (तब बॉम्बे) आ पहुंचे, जहां उनके पास न घर था, न रोजगार. परिवार के लिए नई शुरुआत करनी पड़ी.
कालीन बेचे, होटल खोला लेकिन नहीं मिला सुकून
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई आकर सिप्पी ने कालीन बेचने से लेकर रेस्टोरेंट खोलने तक कई काम किए, लेकिन कोई भी कोशिश रंग नहीं लाई. एक दिन उन्होंने कोलाबा में एक अधूरी बनी हुई इमारत देखी और उसे खरीदकर बेचने की योजना बनाई. यहीं से उन्होंने रियल एस्टेट के क्षेत्र में कदम रखा और घर बनाकर बेचने का कारोबार शुरू कर दिया.
फिल्मों की दुनिया में पहली कोशिश
रियल एस्टेट से कुछ पैसा कमाने के बाद जीपी सिप्पी ने फिल्मों में निवेश शुरू किया. 1953 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म ‘सजा’ बनाई. हालांकि, इसके बाद उन्होंने कई फिल्में बनाईं, लेकिन उन्हें ‘बी-ग्रेड’ निर्माता के रूप में ही पहचाना जाने लगा. उन्होंने अभिनय और निर्देशन में भी हाथ आजमाया पर खास सफलता नहीं मिली.
बेटे रमेश सिप्पी को सौंपी कमान
जब फिल्मों से मुनाफा नहीं हुआ, तो उन्होंने अपने बेटे रमेश सिप्पी को लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स की पढ़ाई छोड़कर भारत बुलाया. रमेश के आने के बाद उन्होंने ‘सीता और गीता’, ‘अंदाज’ जैसी सफल फिल्में बनाईं. लेकिन असली क्रांति आई 1975 में फिल्म ‘शोले’ से रिलीज हुई.
‘शोले’ बनी हिंदी सिनेमा की मील का पत्थर
3 करोड़ के बजट में बनी ‘शोले’ उस दौर की सबसे बड़ी फिल्म बनी. इसमें संजीव कुमार, अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, जया बच्चन और अमजद खान जैसे सितारे थे. सलीम-जावेद की लिखी यह कहानी और रमेश सिप्पी का निर्देशन मिलकर ऐसी फिल्म लेकर आए, जिसने हिंदी सिनेमा की परिभाषा ही बदल दी. ‘शोले’ 5 साल तक सिनेमाघरों में चली और जब बंद हुई, तो उसकी जगह ली सिप्पी की अगली फिल्म ‘शान’ ने.
अंतिम सफर और विरासत
इसके बाद उन्होंने ‘सागर’, ‘पत्थर के फूल’, ‘राजू बन गया जेंटलमैन’ जैसी फिल्में भी बनाई. जीपी सिप्पी का निधन 2007 में 93 साल की उम्र में हुआ, लेकिन उनकी बनाई ‘शोले’ आज भी भारतीय सिनेमा की सबसे यादगार फिल्मों में गिनी जाती है.
सारांश:
एक वक्त था जब निर्माता-निर्देशक का बचपन रईसी और शानो-शौकत में बीता, लेकिन हालात ऐसे बदले कि उन्हें मुंबई की सड़कों पर बेघर होना पड़ा। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और पाई-पाई जोड़कर अमिताभ बच्चन के करियर की सबसे बड़ी हिट फिल्म बनाई। यह कहानी संघर्ष, हौसले और सिनेमा के प्रति जुनून की मिसाल बन चुकी है।