11 जुलाई 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने सोमवार को ऐलान किया कि उनका देश फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देगा. यह ऐलान उस समय आया है जब गाजा में जारी संघर्ष, मानवीय संकट और भुखमरी को लेकर ऑस्ट्रेलियाई सरकार पर देश और दुनिया के भीतर से दबाव बढ़ रहा था. प्रधानमंत्री अल्बनीज ने कहा कि इस निर्णय की औपचारिक घोषणा सितंबर में होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान की जाएगी.
एंथनी अल्बनीज ने कहा कि यह फैसला फिलिस्तीनी प्राधिकरण से मिले महत्वपूर्ण आश्वासनों के आधार पर लिया गया है. इन आश्वासनों में हमास की सरकार में कोई भूमिका न होना, गाजा का निरस्त्रीकरण और चुनाव कराना शामिल हैं. अल्बनीज ने कहा कि द्विराष्ट्र समाधान ही पश्चिम एशिया में हिंसा के चक्र को तोड़ने और गाजा में संघर्ष, पीड़ा और भुखमरी को समाप्त करने को लेकर सबसे बड़ी उम्मीद है.
कितने देशों ने दी फिलिस्तीन को मान्यता?
ऑस्ट्रेलिया के इस फैसले के साथ ही वह फ्रांस, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों की कतार में शामिल हो गया है, जिनके नेताओं ने हाल के दिनों में संकेत दिए हैं कि वे भी फिलिस्तीन को मान्यता देने वाले हैं. इससे पहले मई, 2024 में नॉर्वे, आयरलैंड और स्पेन ने संयुक्त रूप से फिलस्तीन को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता दी थी. अब तक 140 से अधिक देश फिलस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे चुके हैं. हालांकि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और कुछ अन्य पश्चिमी देशों ने अब तक इस पर स्पष्ट रुख नहीं अपनाया था. ऑस्ट्रेलिया के इस कदम को पश्चिमी देशों की नीति में संभावित बदलाव के रूप में देखा जा रहा है.
इजरायली पीएम की बढ़ी मुश्किलें
ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने हाल ही में इज़राइल के प्रधानमंत्रीबेंजामिन नेतन्याहू की गाजा में नई सैन्य कार्रवाई की योजनाओं की आलोचना भी की थी. सरकार के कई मंत्री भी सार्वजनिक रूप से फिलिस्तीन को मान्यता देने के पक्ष में बोलते रहे हैं. अल्बनीज के इस फैसले को जहां कई मानवाधिकार संगठनों और मुस्लिम समुदायों ने सराहा है, वहीं इज़राइल समर्थक गुटों ने इसकी आलोचना करते हुए कहा है कि इससे आतंकवाद को बल मिलेगा. ऑस्ट्रेलिया सरकार का मानना है कि यह कदम क्षेत्र में शांति और स्थायित्व की दिशा में एक सकारात्मक प्रयास है.
सारांश:
ऑस्ट्रेलिया ने फिलिस्तीन को मान्यता देने का ऐलान किया है, जिससे इज़रायल को एक और कूटनीतिक झटका लगा है। इस फैसले से मध्य-पूर्व में तनाव बढ़ सकता है और नेतन्याहू सरकार की चिंता गहरी हो गई है।