नई दिल्‍ली 04 सितंबर 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में हुए ट्राम हादसे ने भारत में दौड़ने वाली ट्राम की सुरक्षा पर भी सवाल उठा दिया है, क्‍योंकि यहां भी ट्राम दूसरे वाहनों के साथ सड़कों पर दौड़ती है. कचव तकनीक के दौर में ट्राम में हादसों को रोकने के लिए क्‍या तकनीक इस्‍तेमाल हो रही है, आइए जानते हैं.

लिस्‍टन ट्राम हादसे में 15 लोगों की जान चली गयी है. यह घटना उस समय हुई जब एक ट्राम अनियंत्रित होकर सड़क पर चल रहे वाहनों से टकरा गई. प्रारंभिक जानकारी में तकनीकी खराबी या चालक की लापरवाही को कारण माना जा रहा है. इस घटना दुनियााभर में दौड़ने वाली ने ट्रामों की सुरक्षा और तकनीक पर सवाल उठाए हैं, जिसके चलते भारत में चलने वाली इकलौती कोलकाता की ट्राम तकनीक भी चर्चा में आ गयी है.

ट्राम में इस्तेमाल होने वाली तकनीक

कोलकाता में ट्रामें बिजली से चलती हैं. ये 550 डीसी वोल्ट की ओवरहेड तारों से बिजली लेती हैं, जो पैंटोग्राफ या ट्रॉली पोल के जरिए ट्राम के मोटर तक पहुंचती है. कोलकाता की ट्रामें स्टैंडर्ड गेज (4 फीट 8.5 इंच) की पटरियों पर चलती हैं, जो सड़कों में एम्बेडेड होती हैं.

पुराने मॉडल पर चल रही हैं ट्राम

मौजूदा समय ट्राम भी आधुनिक हो चुकी हैं. वंदेभारत एक्‍सप्रेस जैसी तकनीक से ट्राम लैस हो चुकी हैं. आधुकिक ट्रामों में रीजेनरेटिव ब्रेकिंग, स्वचालित दरवाजे, एयर कंडीशनर, वाई फाई जैसी तकनीकों से लैस होती हैं. पर कोलकाता में पुराने मॉडल अभी भी मैनुअल रूप से ट्राम ऑपरेट हो रही हैं.

ट्राम की सुरक्षा तकनीक

पूर्व रेलवे के सीपीआरओ ने बताया कि कोलकाता में चल रही ट्राम स्‍पीड 40 किमी/घंटा तक होती है. इस वजह से हादसों का खतरा कम है. ये कम दूरी के बीच ही चलती हैं और इसमें सवारियों की संख्‍या भी धीरे धीरे कम होती जा रही है. मौजूदा समय हालात यह हो गयी है कि सड़क पर चल रहे दूसरे वाहन तेज गति से सड़कों पर दौड़ते हैं और ट्राम धीमी गति से चलती है. हालांकि ट्राम में इमरजेंसी ब्रेक, फर्स्‍ट एड बाक्‍स जैसी सुविधाएं सुरक्षा बढ़ाती हैं.

यहां भी हो चुके हैं हादसे

कोलकाता ट्राम में भी हादसे हो चुके हैं. साल 2012 में एक बच्चा ट्राम डिपो में हादसे का शिकार हुआ था. वहीं 2014 में एक बिना चालक की ट्राम ने 10 गाड़ियों को टक्कर मारते हुए दौड़ पड़ी थी. इसमें कई लोग घायल हुए थे.

कचव के दौर में ट्राम कितनी सुरक्षित

भारतीय रेलवे ट्रेनों को हदसों से बचाने के लिए उसमें कचव तकनीक का इस्‍तेमाल कर रहा है. इस तकनीक का इस्‍तेमाल शुरू भी हो चुका है. सबसे पहले सबसे व्‍यवस्‍त रूटों पर चलने वाली ट्रेनों और ट्रैकों पर लगाया जा रहा है. वहीं, ट्राम में इस तरह की कोई तकनीक नहीं है, जो हादसों से बचा सके.

कोलकाता ट्रेन एशिया की सबसे पुरानी ट्राम

कोलकाता में चलने वाली ट्राम एशिया की सबसे पुरानी इलेक्ट्रिक तकनीक से चलने वाली ट्राम है. कोलकाता में 1873 में शुरू हुई यह सेवा 1902 में इलेक्ट्रिक में कनवर्ट हो गयी थी. तब से लेकर आज तक इलेक्ट्रिक पर ट्राम दौड़ रही है.

25 रूटों से 2 पर सीमित हुई

पहले ट्राम कोलकाता में 25 रूटों पर दौड़ती थी, हजारों लोगों के लिए लोकल ट्रांसपोर्ट का सबसे अच्‍छा साधन था. लेकिन धीरे धीरे लोगों ने सफर कम कर दिया और आज केवल दो रूटों गड़ियाहाट से एस्प्लेनेड और एस्प्लेनेड से मैदान तक ही चलती हैं.

पहले दिल्‍ली से पटना तक दौड़ती थी ट्राम

भारत में आज भले ही ट्राम केवल कोलकाता में ही चलती हों. लेकिन किसी समय देश के कई शहरों ट्राम दौड़ती थीं. कोलकाता (1873), मुंबई (1874), चेन्नई (1874), नासिक (1889) के साथ कानपुर, दिल्ली, पटना और भावनगर में भी ट्रामें चलती थीं. मुंबई में 1964 तक, चेन्नई में 1953 तक और दिल्ली में 1963 के बाद ट्राम बंद हो गईं. नासिक में कम चौड़ी ट्राम थीं, जो घोड़ों द्वारा खींची जाती थीं. पटना में 1903 तक और भावनगर में 1947 तक ट्रामें चलीं. यात्रियों की सख्‍या कम होने, रखरखाव की कमी और मेट्रो-बसों की सुविधा बढ़ने ये बंद होती गयीं.

Bharat Baani Bureau

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