22 सितंबर 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) अमेरिका ने हाल ही में H-1B वीजा फीस में जबरदस्त बढ़ोतरी की है। अब तक जहां यह फीस केवल 1,500 से 4,000 डॉलर के बीच हुआ करती थी, वहीं अब इसे सीधा 100,000 डॉलर यानी लगभग 87 लाख रुपये कर दिया गया है। यह बढ़ोतरी केवल नए वीजा पर लागू होगी। पहले से वीजा लिए हुए लोगों या जिनका रिन्यूअल होना है, उन पर फिलहाल इसका असर नहीं पड़ेगा। इसके बावजूद इस फैसले ने भारत के आईटी सेक्टर और निवेशकों की धड़कनें बढ़ा दी हैं।
क्यों अहम है H-1B वीजा
भारत का आईटी सेक्टर लंबे समय से अमेरिका पर निर्भर रहा है। अमेरिकी कंपनियां और भारतीय आईटी दिग्गज- जैसे Infosys, TCS, Wipro और HCL इस वीजा के जरिए हजारों भारतीय इंजीनियरों को अमेरिका भेजते रहे हैं। वहीं बैठकर वे क्लाइंट्स के प्रोजेक्ट्स पर काम करते हैं। यह मॉडल न सिर्फ अमेरिका बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी अहम है। अकेले अमेरिका भारत के आईटी निर्यात का लगभग 55 से 60 प्रतिशत हिस्सा समेटे हुए है। वर्ष 2024-25 में भारत का आईटी और सॉफ्टवेयर निर्यात 181 अरब डॉलर रहा, जिसमें नेट एक्सपोर्ट 160 अरब डॉलर था। अनुमान था कि 2025-26 में इसमें पांच प्रतिशत की वृद्धि होगी, लेकिन अब इस पर संदेह गहराने लगा है।
फिलहाल असर सीमित क्यों माना जा रहा है
एमके रिसर्च की चीफ इकॉनमिस्ट माधवी अरोड़ा मानती हैं कि निकट अवधि में इसका गहरा असर दिखाई नहीं देगा। वजह यह है कि बड़ी आईटी कंपनियां पिछले कुछ सालों से ही एहतियात बरत रही हैं। उन्होंने अमेरिका में लोकल हायरिंग बढ़ाई है और अब उनकी वर्कफोर्स में 50 से 70 प्रतिशत तक अमेरिकी नागरिक शामिल हैं। लगभग एक लाख कर्मचारियों को उन्होंने वहीं नियुक्त कर रखा है। इसके अलावा अमेरिकी डिलीवरी सेंटर्स, ऑटोमेशन और सब-कॉन्ट्रैक्टिंग जैसे मॉडल अपनाए जा रहे हैं, जिससे उनकी निर्भरता H-1B वीजा पर लगातार घटती जा रही है।
छोटे और मझोले कारोबारों की मुश्किलें
जहां बड़ी कंपनियां इस झटके को संभाल लेंगी, वहीं छोटे और मझोले आईटी कारोबारों के लिए राह आसान नहीं होगी। दरअसल, ये कंपनियां अब भी बॉडीशॉपिंग मॉडल पर काम करती हैं। इस मॉडल में भारतीय इंजीनियरों को H-1B वीजा पर अमेरिका भेजकर सीधे क्लाइंट्स से बिलिंग की जाती है। अब जब वीजा की लागत इतनी बढ़ गई है, तो इन कंपनियों को या तो अमेरिकी नागरिकों को नियुक्त करना होगा, जो पांच गुना महंगे पड़ते हैं, या फिर प्रोजेक्ट्स छोड़ने होंगे। यह इनकी आमदनी और अस्तित्व दोनों पर संकट खड़ा कर सकता है।
नया मॉडल: ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स
इस संकट ने आईटी कंपनियों को नए रास्ते तलाशने के लिए मजबूर कर दिया है। इनमें सबसे प्रमुख है ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स यानी जीसीसी मॉडल। भारत में इस समय 1,800 से ज्यादा जीसीसी मौजूद हैं और ये लगभग 65 अरब डॉलर से ज्यादा का निर्यात कर रहे हैं। उम्मीद है कि 2030 तक इनकी संख्या 2,000 से भी ज्यादा हो जाएगी और इनका साइज 150 अरब डॉलर से ऊपर पहुंच जाएगा। इस मॉडल में विदेशी कंपनियां खुद भारत में अपने सेंटर खोलती हैं और यहीं से काम करवाती हैं। इससे ऑनसाइट प्रोजेक्ट्स पर निर्भरता घटती है और भारत में ऑफशोरिंग को बढ़ावा मिलता है।
भारत की वैश्विक छवि अब तक एक आउटसोर्सिंग डेस्टिनेशन या बैकऑफिस के रूप में रही है। लेकिन वीजा संकट और जीसीसी मॉडल की बढ़ती अहमियत के चलते यह छवि बदल सकती है। अब भारत सिर्फ सपोर्ट सर्विसेज देने वाला देश नहीं रहेगा, बल्कि एक ऑफशोर डिजिटल इंजीनियरिंग और ग्लोबल ऑपरेशंस का हब बन सकता है। धीरे-धीरे यह बदलाव भारत को दुनिया के सामने एक वैश्विक इनोवेशन सेंटर के रूप में स्थापित कर सकता है।
अमेरिकी राजनीति का अगला खतरा
यह संकट सिर्फ वीजा फीस तक ही सीमित नहीं है। अमेरिका में एक नया कानून प्रस्तावित है, जिसका नाम है HIRE Act यानी Halting International Relocation of Employment Act। इसके तहत अमेरिकी कंपनियों को अगर वे विदेश में काम आउटसोर्स करती हैं, तो 25 प्रतिशत टैक्स देना पड़ सकता है। अगर यह कानून पास हो जाता है तो भारत के ऑफशोरिंग मॉडल के लिए यह और भी बड़ा झटका साबित होगा।
इस पूरे घटनाक्रम का असर भारतीय स्टार्टअप्स पर भी दिख सकता है। जीसीसी अब भारत में ज्यादा टैलेंट को हायर करेंगे और बेहतर तनख्वाह देंगे। ऐसे में स्टार्टअप्स के लिए टैलेंटेड लोगों को रोकना मुश्किल होगा। वेतन के कंपटीशन में स्टार्टअप्स पिछड़ सकते हैं। इससे उन्हें या तो हाई-वैल्यू सेवाओं की तरफ बढ़ना होगा, या फिर टियर-2 शहरों में जाकर कम लागत वाले ऑपरेशन चलाने होंगे। कुछ कंपनियां तो लागत घटाने के लिए फिलीपींस और अन्य एशियाई देशों का रुख भी कर सकती हैं।
आईटी निर्यात भारत के लिए सिर्फ एक उद्योग नहीं बल्कि विदेशी मुद्रा का सबसे बड़ा स्रोत है। वर्ष 2024-25 में भारत का नेट आईटी एक्सपोर्ट 160 अरब डॉलर रहा, जबकि नेट रेमिटेंस 120 अरब डॉलर पर लगभग स्थिर रहा। अभी के लिए अनुमान है कि 2025-26 में भारत का चालू खाता घाटा (CAD) जीडीपी का 1.2 प्रतिशत रहेगा। लेकिन अगर वीजा संकट लंबा चला, तो यह स्थिति बदल सकती है और विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ सकता है।
निवेशकों के लिए संकेत
एमके रिसर्च का कहना है कि फिलहाल आईटी सेक्टर का जोखिम बढ़ गया है। नीतिगत और जियोपॉलिटिकल अनिश्चितता की वजह से आईटी कंपनियों की वैल्यूएशन प्रभावित हो सकती है। बड़ी कंपनियां भले ही टिक जाएं, लेकिन मिडकैप और स्मॉलकैप आईटी कंपनियों के लिए यह झटका और भारी पड़ सकता है।
कुल मिलाकर H-1B वीजा फीस की बढ़ोतरी भारतीय आईटी सेक्टर के लिए एक झटका तो है, लेकिन इसके भीतर एक अवसर भी छिपा है। छोटी कंपनियां और स्टार्टअप्स मुश्किल में पड़ सकते हैं, लेकिन बड़ी कंपनियां और जीसीसी मॉडल भारत को एक नए मुकाम तक पहुंचा सकते हैं। यह संकट भारत को एक आउटसोर्सिंग डेस्टिनेशन से निकालकर ग्लोबल इनोवेशन हब बनाने की दिशा में धकेल सकता है।
आने वाले समय में सबसे बड़ा सवाल यही रहेगा कि क्या भारतीय आईटी कंपनियां इस संकट को अवसर में बदल पाती हैं या यह बढ़ोतरी हमारी पारंपरिक ताकत को कमजोर कर देगी।