04 नवंबर 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : नेपाल में नौ दलों ने मिलकर रेड यूनिटी तो बना ली है, लेकिन यह फिलहाल वादों और बयानों तक सीमित दिख रही है. Gen-Z के युवाओं की आवाज और डिजिटल ताकत ने पुरानी राजनीति की नींव हिला दी है. अब यह देखना होगा कि क्या प्रचंड और उनके साथी सच में जनता के एजेंडे को अपनाएंगे या फिर यह एक और चुनावी गठबंधन बनकर रह जाएगा.

काठमांडू. नेपाल की राजनीति में एक बार फिर बड़ा फेरबदल हो गया है. पूर्व प्रधानमंत्री और सीपीएन (माओवादी) के प्रमुख पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने आठ कम्युनिस्ट पार्टियों को एकजुट करने का फैसला किया है. इसे ‘रेड फ्रंट’ कहा जा रहा है. यह कदम ऐसे वक्त उठाया गया है जब Gen-Z आंदोलन यानी युवाओं के भ्रष्टाचार-विरोधी जनआंदोलन ने देश की राजनीति की दिशा ही बदल दी थी और सीपीएन-यूएमएल की सरकार गिर गई थी.अब सवाल उठ रहा है क‍ि क्या यह रेड यूनिटी पुराने दौर की कम्युनिस्ट ताकत को वापस ला पाएगी, या फिर यह युवा नेपाल के सपनों के खिलाफ जाएगी?

काठमांडू के पेरिसडांडा में रविवार को यह ऐतिहासिक समझौता हुआ. सीपीएन (माओवादी सेंटर), सीपीएन (यूनिफाइड सोशलिस्ट) और सात छोटे वामपंथी दलों ने एक मंच पर आकर एकता पत्र पर हस्ताक्षर किए. इनमें माओवादी सेंटर के प्रमुख प्रचंड, यूनिफाइड सोशलिस्ट के नेता माधव कुमार नेपाल, जनसमाजवादी पार्टी नेपाल के प्रमुख सुबासराज काफ्ले, नेपाल सोशलिस्ट पार्टी के महेंद्र राय यादव, सीपीएन जनरल सेक्रेटरी चिरण पुन, सीपीएन सोशलिस्ट के राजू कार्की, सीपीएन माओवादी सोशलिस्ट के कर्णजीत बुधाथोकी और और सीपीएन कम्युनिस्ट के प्रेम बहादुर सिंह शामिल थे. सोमवार को सीपीएन (रिवॉल्यूशनरी माओवादी) के संयोजक गोपाल किर्ति ने भी समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे कुल नौ दल अब इस एकजुट मोर्चे का हिस्सा बन गए हैं.

कम्युनिस्टों की पुरानी जड़ों को बचाने की कोशिश
यह गठबंधन उस दौर में बना है जब नेपाल में वामपंथ का प्रभाव लगातार घटता जा रहा है. प्रचंड और माधव कुमार नेपाल ने कहा, यह एकता कम्युनिस्ट आंदोलन को खत्म होने से बचाने की कोशिश है और बिखरे हुए वोटों को एक साथ लाने की जरूरत है. पिछले कुछ वर्षों में नेपाल की राजनीति में नए दल और नई सोच वाले युवा नेताओं का उभार हुआ है, जिन्होंने भ्रष्टाचार और वंशवाद के खिलाफ खुला मोर्चा खोला है. Gen-Z मूवमेंट के बाद जनता की नजर में पुराने दलों की विश्वसनीयता कम हुई है, और यही वजह है कि अब वामपंथी नेता “एकता” को नया कार्ड बना रहे हैं.

लेकिन कितनी मजबूत है ये नई ‘रेड फ्रंट’?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह एकता दिखने में बड़ी है, लेकिन जमीन पर इसकी पकड़ कमजोर है.
लेफ्ट एनालिस्ट हरी रोका ने काठमांडू पोस्‍ट से बातचीत में कहा, राजनीतिक ताकत सिर्फ नेताओं को जोड़ने से नहीं आती. जब तक ये पार्टियां Gen-Z आंदोलन के उठाए असली सवालों जैसे भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और जवाबदेही का हल नहीं देतीं, तब तक कोई फर्क नहीं पड़ेगा. रोका का यह भी कहना है कि नेपाल की जनता अब भाषणों से नहीं, ठोस काम और नए चेहरों से प्रभावित होती है. वहीं, दूसरे वामपंथी विश्लेषक खगेन्द्र प्रसाई ने कहा, नई पार्टी का असर इस बात पर निर्भर करेगा कि नेपाली कांग्रेस और सीपीएन-यूएमएल जैसी पुरानी पार्टियां इस नए समीकरण के प्रति कैसे रुख अपनाती हैं.

पहले ही पड़ गई दरार

एकता का ऐलान होते ही इस मोर्चे में मतभेद सामने आने लगे हैं. माओवादी सेंटर के वरिष्ठ नेता जनार्दन शर्मा, यूनिफाइड सोशलिस्ट के दिग्गज झलनाथ खनाल और महासचिव घनश्याम भूषण ने घोषणा की है कि वे इस विलय प्रक्रिया में शामिल नहीं होंगे. इन नेताओं का कहना है कि पार्टी बिना स्पष्ट विचार और जनसंपर्क रणनीति के एक हो रही है, जो सिर्फ सत्ता की राजनीति है. कुछ नेताओं ने यह भी चिंता जताई है कि यूनिफाइड सोशलिस्ट के नेता माधव कुमार नेपाल, जो फिलहाल भ्रष्टाचार के एक मामले में अदालत का सामना कर रहे हैं, उनके साथ मिलकर चलना जनता के बीच गलत संदेश भेज सकता है.

‘पुराने चेहरे, पुराने वादे’

नेपाल के युवा, जिन्होंने सोशल मीडिया पर “No Not Again Politics” जैसी मुहिम चलाई थी, इस नई एकता को लेकर खासे निराश हैं. Gen-Z वर्ग का मानना है कि पुरानी पार्टियों के पुराने नेता अब जनता की उम्मीदों को नहीं समझ पा रहे. एक युवा छात्रा ने काठमांडू पोस्ट से कहा, अगर वही चेहरे बार-बार लौटेंगे, तो बदलाव कैसे आएगा? लोग अब सोशल मीडिया पर ज्यादा ताकतवर हैं, और वहां कोई झूठ नहीं छिपता. राजनीतिक विश्लेषक भीम भुर्टेल ने भी इसी बात पर जोर देते हुए कहा, आज के पोस्ट-मॉडर्न दौर में विचारधारा नहीं, बल्कि डिजिटल कनेक्शन और युवाओं की पहुंच मायने रखती है. पुरानी कम्युनिस्ट पार्टियां एकजुट होकर अपनी प्रासंगिकता बचाना चाहती हैं.”

क्या फिर लौटेगा नेपाल में ‘रेड इरा’?

हालांकि कुछ माओवादी नेता अब भी उम्मीद लगाए हैं कि यह एकता वामपंथी राजनीति को नया जीवन दे सकती है. युवराज चौलागाईं, माओवादी सेंटर के एक नेता ने कहा, “कम्युनिस्ट आंदोलन संकट में है, इसलिए समान विचार वाले दलों का साथ आना जरूरी है. अगर यह एकता सही दिशा में गई, तो असर जरूर दिखेगा. लेकिन उन्होंने यह भी माना कि अगर हम बदलाव की मांग को नहीं समझ पाए और वही पुराने चेहरे आगे बढ़े, तो जनता हमें पूरी तरह नकार देगी.

भारत के लिए मायने

नेपाल की राजनीति में कम्युनिस्ट दलों की एकता भारत के लिए भी दिलचस्प है. नेपाल हमेशा भारत की सुरक्षा और रणनीतिक नीति में अहम रहा है. अगर यह वामपंथी मोर्चा मज़बूत होता है, तो भारत-नेपाल संबंधों में नई चुनौतियां और नए समीकरण पैदा हो सकते हैं, खासकर तब जब चीन नेपाल में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा है.

सारांश:
नेपाल में वामपंथी दलों ने मिलकर नया ‘रेड फ्रंट’ गठित किया है, जिससे देश में राजनीतिक संकट गहराता जा रहा है। इस कदम से युवाओं के रोजगार और विकास के सपनों पर असर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाल की इस नई सियासी दिशा का भारत के साथ रिश्तों पर भी गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

Bharat Baani Bureau

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