चंडीगढ़, 5 नवंबर, 2025 – पंजाबी कल्चरल काउंसिल ने केंद्र सरकार द्वारा पंजाब यूनिवर्सिटी की सीनेट और सिंडिकेट को भंग करने संबंधी विवादास्पद अधिसूचना वापस लेने के फैसले का स्वागत करते हुए इस निर्णय को पंजाब के अकादमिक समुदाय, विद्यार्थियों और लोकतांत्रिक मूल्यों की जीत करार दिया है। इस कदम के साथ दोनों लोकतांत्रिक निकाय बहाल हो गए हैं और विश्वविद्यालय की पुरानी जनतांत्रिक संरचना फिर से स्थापित हो गई है।
काउंसिल के अध्यक्ष एडवोकेट हरजीत सिंह ग्रेवाल ने कहा कि केंद्र सरकार का यह यू-टर्न इस बात का सबूत है कि जनदबाव और सामूहिक इच्छाशक्ति सबसे गलत फैसलों को भी पलट सकती है। इस कदम को “जनता की आवाज की जीत” बताते हुए स्टेट अवॉर्डी ग्रेवाल ने कहा कि भाजपा सरकार ने आखिरकार यह स्वीकार कर लिया है कि वह पंजाब की सांस्कृतिक और बौद्धिक पहचान का प्रतीक 142 वर्ष पुरानी संस्था की लोकतांत्रिक व्यवस्था को नष्ट नहीं कर सकती।
ग्रेवाल ने कहा कि काउंसिल भारत की सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक से संबंधित इस सुधारात्मक कदम की सराहना करती है, लेकिन केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में विश्वविद्यालय की स्वायत्तता और इसमें पंजाब की उचित प्रतिनिधित्व को खत्म करने का कोई प्रयास न किया जाए।
उन्होंने कहा कि पंजाब के लोगों ने एकजुट होकर 1 नवंबर को जारी किए गए आदेश का विरोध किया था, जिसे विश्वविद्यालय की ऐतिहासिक स्वायत्तता में असंवैधानिक हस्तक्षेप माना गया। विभिन्न शिक्षकों और छात्र संगठनों ने भी मांग की थी कि 59 वर्ष पुरानी शासन व्यवस्था को पुनर्गठित करने और चुने हुए प्रतिनिधियों की जगह नामित सदस्यों को लाने की बजाय, विश्वविद्यालय की लोकतांत्रिक प्रणाली को कायम रखा जाए और उसे और मजबूत बनाया जाए।
