13 नवंबर 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : दिल्ली में लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास 10 नवंबर को आईईडी से लदी एक हुंडई आई20 कार घने ट्रैफिक के बीच फट गयी थी, जिसमें लगभग एक दर्जन लोग मारे गए थे. इस विस्फोट की चल रही जांच से एक महत्वपूर्ण जानकारी सामने आयी है. शुरुआती खुफिया जानकारी से पता चलता है कि विस्फोट जैश-ए-मुहम्मद (जेईएम) मॉड्यूल द्वारा किया गया था, जो ऑपरेशन सिंदूर के दौरान संगठन के बहावलपुर मुख्यालय को हुए नुकसान का बदला लेना चाहता था. जांच से संकेत मिलता है कि विस्फोट के लिए जिम्मेदार कई डॉक्टरों के आतंकी समूह के हैंडलर तुर्की में स्थित थे और मॉड्यूल के संपर्क में थे. कई मीडिया रिपोर्टों के अनुसार डॉ. उमर उन नबी और उसका साथी डॉ. मुजम्मिल शकील गनी हमले की योजना बनाने के लिए तुर्की भी गये थे. उमर उन नबी के बारे में माना जाता है कि वह आई20 कार चला रहा था. जबकि डॉ. मुजम्मिल शकील गनी को गिरफ्तार किया गया है.

तुर्की की आतंकवादी गतिविधियां?
दिलचस्प बात यह है कि दिल्ली विस्फोट से ठीक पहले उत्तर प्रदेश एटीएस ने इस्तांबुल इंटरनेशनल के सह-संस्थापक फरहान नबी सिद्दीकी को ग्रेटर नोएडा से कथित तौर पर नफरत फैलाने वाला साहित्य प्रकाशित करने और हवाला के जरिए 11 करोड़ रुपये से ज्यादा की विदेशी धनराशि प्राप्त करने के आरोप में गिरफ्तार किया था. लेकिन उसका तुर्की साथी नासी तोरबा फरार हो गया. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक एटीएस अधिकारियों ने बताया कि तोरबा ने नबी को इस नेटवर्क से परिचित कराया था और उसकी तलाश की जा रही है.

विदेश से आ रहा धन
जांचकर्ताओं ने पाया कि तुर्की और जर्मनी से प्राप्त धन का इस्तेमाल अमरोहा और पंजाब में मदरसे और मस्जिद के नाम पर जमीन खरीदने में किया गया था. कथित दुष्प्रचार और वित्तीय गठजोड़ में मदद के लिए नबी के रिश्तेदारों और कुछ सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों (राजपत्रित रैंक) के खातों की जांच की जा रही है. पुलिस ने कहा कि शुरुआती साक्ष्य एक सुगठित नेटवर्क की ओर इशारा करते हैं जो धार्मिक और शैक्षिक गतिविधियों की आड़ में विभाजनकारी नैरेटिव को बढ़ावा देने और विदेशी धन की हेराफेरी के लिए एनजीओ के माध्यम से काम कर रहा है. 

तुर्की-पाकिस्तान सांठगांठ
दिल्ली विस्फोट में तुर्की के लिंक का उभरना पाकिस्तान से बाहर फैल रहे भारत विरोधी आतंकी अभियानों की ओर इशारा करता है, लेकिन यह आश्चर्यजनक नहीं हो सकता है. तुर्की कई सालों से कश्मीर में अलगाववादी आतंकवादी आंदोलन का समर्थन कर रहा है. इसने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान की मदद भी की थी. पहलगाम में आतंकी हमले के कुछ दिनों बाद जब भारत और पाकिस्तान आमने-सामने थे. तब भारत ने पाकिस्तान में आतंकवादियों और उनके समर्थकों को दंडित करने का वादा किया था. एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि कई तुर्की नागरिक सी-130 ई हरक्यूलिस परिवहन विमान हथियारों के साथ पाकिस्तान में उतरे थे. जिससे यह अनुमान लगाया गया कि यह कदम इस्लामाबाद के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक द्वारा अंतिम समय में हथियारों की डिलीवरी का संकेत था. जो जाहिर तौर पर भारत द्वारा संभावित सर्जिकल स्ट्राइक की प्रतिक्रिया की तैयारी थी.

देता है आतंकियों को संरक्षण
2025 में भारत ने स्पष्ट रूप से तुर्की के उस रवैये की निंदा की है जिसमें तुर्की पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियों को समर्थन दे रहा है. खासकर भारत ने तुर्की के पाकिस्तान को हथियार और आतंकियों को संरक्षण देने के लिए समर्थन देने की बात कही है. तुर्की की आतंकवादी संगठनों जैसे इकवान उल मुस्लिमीन और अन्य कट्टरपंथी समूहों को मदद देने की खबरें हैं और यह भारत के लिए गंभीर सुरक्षा चिंता बनी हुई है. इसके चलते भारत में तुर्की के विरोध में बहिष्कार और ट्रेड स्ट्राइक जैसे अभियान भी चलाए जा रहे हैं. तुर्की की पाकिस्तान के साथ रणनीतिक करीबी और आतंकवाद को समर्थन देना भारत के लिए बड़ा कूटनीतिक और सुरक्षा खतरा है. 

भारत ने दिया था कड़ा संदेश
भारत सरकार ने तुर्की को कड़ा संदेश भी दिया था कि वह पाकिस्तान से आतंकवाद का समर्थन बंद कराए, नहीं तो इसके खिलाफ और सख्त कदम उठाए जाएंगे. इस सिलसिले में भारत ने तुर्की की कंपनियों की सुरक्षा मंजूरी रद्द करना और सामाजिक स्तर पर भी विरोध जताना शुरू कर दिया था. तुर्की का यह रुख भारत के खिलाफ आतंकवादियों का नया शरणगाह बनने की आशंका को बढ़ावा देता है. इसलिए यह कहा जा सकता है कि वर्तमान परिस्थितियों में तुर्की एक ऐसे राज्य के रूप में उभर रहा है जो पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन कर रहा है. जिससे भारत के लिए यह सुरक्षा और कूटनीति दोनों स्तर पर गंभीर चुनौती है.

जैश बना रहा तुर्की में बेस
अभी की जानकारी के अनुसार जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन तुर्की में अपने बेस बना रहे हैं. हाल ही में दिल्ली ब्लास्ट की जांच में भी यह सामने आया है. जांच में यह संदेह है कि उन्हीं मुलाकातों और तुर्की में हुए संपर्कों के बाद उन्होंने भारत में आतंकी गतिविधियों के निर्देश पाए. तुर्की पाकिस्तान का करीबी मित्र है और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों के लिए तुर्की को एक सुविधाजनक स्थान माना जाता है. क्योंकि तुर्की जैश के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई नहीं करता. इसके साथ ही कई खुफिया रिपोर्टों और सुरक्षा एजेंसियों के आकलन में यह भी बताया गया है कि तुर्की पाकिस्तान को तकनीकी, वित्तीय और गुप्त समर्थन देकर दक्षिण एशियाई क्षेत्र में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है.

जैश-ए-मोहम्मद नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में भी अपने नेटवर्क का विस्तार कर रहा है, जिसकी रचना तुर्की और पाकिस्तान की मिलीभगत से हो रही है. यह साफ है कि जैश-ए-मोहम्मद तुर्की में सक्रिय है और वहां से भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियों को संचालित कर रहा है. जिससे भारत की सुरक्षा को गंभीर खतरा है.

सारांश:
हाल ही में कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि तुर्की भारत-विरोधी गतिविधियों का नया ठिकाना बनता जा रहा है। यहां पाकिस्तान समर्थित संगठनों और कट्टरपंथी तत्वों को बढ़ावा मिल रहा है। खुफिया एजेंसियों के अनुसार, कुछ आतंकवादी संगठन तुर्की की जमीन से भारत के खिलाफ नेटवर्क मजबूत कर रहे हैं। तुर्की और पाकिस्तान के बीच बढ़ती नजदीकी इस रुझान की प्रमुख वजह मानी जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति भारत की सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता का विषय बन सकती है।

Bharat Baani Bureau

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