18 नवंबर 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) भारत ने पिछले कुछ सालों में मेडिकल की दुनिया में बड़ी-बड़ी सफलताएं हासिल की हैं। लेकिन यहां स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही के मामले भी सबसे ज्यादा सामने आ रहे हैं। आसानी से दवाएं मिल जाना, ओवर द काउंडर दवाओं की सप्लाई होना और बात बात पर एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन करना सेहत पर भारी पड़ रहा है। लैंसेट ई-क्लिनिकल मेडिसिन जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के आंकड़े हैरान करने वाले हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 83% भारतीय रोगियों में मल्टीड्रग रेसिस्टेंस ऑर्गनिज्म यानि बहुऔषधि प्रतिरोधी जीव (एमडीआरओ) मौजूद हैं। इन लोगों पर एंटीबायोटिक दवाओं का असर होना बंद हो गया है। ये स्थित सिर्फ मरीजों के लिए नहीं बल्कि पूरे देश की चिकित्सा के लिए चुनौती है। जिससे सभी को एक साथ मिलकर निपटने की जरूरत है।
भारत पर बड़ा संकट
एआईजी अस्पताल के शोधकर्ताओं ने इस स्टडी में चेतावनी दी गई है कि भारत सुपरबग विस्फोट के केन्द्र में है, जिसके लिए तत्काल नीतिगत परिवर्तन और एंटीबायोटिक प्रबंधन पर एक राष्ट्रीय आंदोलन की जरूरत है। ये रिजल्ट 18 नवंबर से 25 नवंबर तक मनाए जाने वाले एंटीमाइक्रोबियल स्टीवर्डशिप वीक के अवसर पर जारी किए गए। इस स्टडी में 4 देशों 1,200 से अधिक रोगियों का विश्लेषण किया गया। जिसमें पाया गया कि सामान्य एंडोस्कोपिक प्रक्रिया (ईआरसीपी) से गुजरने वाले भारतीय रोगियों में MDRO सहने की क्षमता दूसरे देशों के मरीजों से कहीं ज्यादा थी।
एंटीबायोटिक दवाओं का नहीं हो रहा असर
भारत में 83% मरीज़ों में MDRO पाया गया, इटली में 31.5%, संयुक्त राज्य अमेरिका में 20.1% और नीदरलैंड में 10.8% मरीज़ों में MDRO पाया गया। यानि इतने लोगों पर अब कॉमन एंटीबायोटिक दवाओं का असर नहीं होगा। एआईजी हॉस्पिटल्स के अध्यक्ष और स्टजी में सह-लेखक डॉक्टर डी नागेश्वर रेड्डी ने कहा, “जब 80% से अधिक मरीज… पहले से ही दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया से ग्रस्त हैं, तो इसका मतलब है कि खतरा अब अस्पतालों तक ही सीमित नहीं है, यह हमारे समुदायों, हमारे पर्यावरण और हमारे दैनिक जीवन में भी है।”
खतरे को बढ़ा रही हैं सेहत से जुड़ी ये आदतें
इससे पता चलता है कि समुदाय स्तर पर ये समस्या गहरी जड़ें जमा चुकी है, जो एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग, बिना डॉक्टर के पर्चे के एंटीबायोटिक दवाओं की आसानी से उपलब्धता, अधूरे ट्रीटमेंट और बड़े लेवल पर अपने हिसाब से दवाएं खाने जैसे कारकों से जुड़ी हुई है। एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होने के कारण अस्पतालों को ज्यादा पावरफुर दवाओं का उपयोग करने के लिए मजबूर करती है, इससे तुरंत फायदा नहीं मिल पाता है, केस में जटिलताएं बढ़ने का खतरा रहता है और ट्रीटमेंट भी महंगा हो जाता है।
सारांश:
लैंसेट की एक हालिया रिपोर्ट में भारत के लिए गंभीर चेतावनी जारी की गई है। रिपोर्ट के अनुसार, देश के 83% मरीज एक बड़े स्वास्थ्य संकट की जद में हैं। यह संकट गंभीर बीमारियों के देर से पता चलने, इलाज में देरी और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से जुड़ा है। रिपोर्ट ने स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत बनाने और जागरूकता बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया है।
