वॉशिंगटन 19 नवंबर 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस के बीच चल रही गलबहियां पूरी दुनिया देख रही है. अमेरिकी राष्ट्रपति ने सऊदी को प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी बता दिया है और F-35, परमाणु डील समेत कई ‘महान समझौते’ किए हैं. मध्य-पूर्व की राजनीति खलबली मचा देने वाले इन दो देशों ने 1945 में भी एक ‘महान समझौता’ किया था, जब एक युद्धपोत पर राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट और आधुनिक सऊदी किंग अब्दुलअजीज इब्न सऊद की मुलाकात हुई थी. इसी मुलाकात के बाद ‘क्विंसी समझौते’ की नींव रखी गई थी.
कैसी थी ‘वैलेंटाइन्स डे’ पर दो लीडर्स की पहली मुलाकात?
इस ‘महान सौदे’ की स्थापना के तहत अमेरिका ने सऊदी अरब को सैन्य सुरक्षा देने का वादा किया था और इस सहायता के बदले में तेल क्षेत्र में अमेरिकी हितों को सुनिश्चित किया गया था.
अमेरिका ने 1933 में सऊदी अरब को आधिकारिक तौर पर मान्यता दे दी थी लेकिन इस गठबंधन की नींव रोमांस का दिन कहे जाने वाले वैलेंटाइन्स डे यानी 14 फरवरी, 1945 को स्वेज नहर पर हुई थी. दोनों देशों के लीडर्स के बीच हुई ये मीटिंग विरोधाभासों और कूटनीति का एक अध्ययन मानी जाती है.
बैठक में किंग की पवित्रता और संस्कृति का ध्यान रखते हुए, रूजवेल्ट अपने साथ सहायकों का एक पूरा दल लाए थे, जबकि वृद्ध किंग, जो अपने देश से बाहर केवल दूसरी बार यात्रा कर रहे थे, अपने साथ कुर्बानी देने के लिए भेड़ें और मक्का के साथ एक भारी भरकम दल लेकर आए थे.
अमेरिका और सऊदी के बीच रिश्ते का पहला चरण
मीटिंग में रूजवेल्ट ने किंग इब्न सऊद से तेल रियायतों की निरंतरता और मध्य पूर्व में स्थिरता का आश्वासन मांगा, जबकि किंग ने अपने युवा, नवगठित राज्य को क्षेत्रीय खतरों से सुरक्षा देने की मांग की. समझौता हुआ कि अमेरिका, किंगडम के आंतरिक राजनीतिक या धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा और अरब दुनिया से जुड़े किसी भी मामले में फैसला लेने से पहले किंग से सलाह ली जाएगी, इसके बदले में सऊदी अरब अपने विशाल पेट्रोलियम भंडारों तक विश्वसनीय पहुंच प्रदान करेगा.
अमेरिका और सऊदी के बीच रिश्ते का दूसरा फेज
अमेरिका और सऊदी ने अपने वादों को निभाया और कुछ वक्त तक रिश्ते अच्छे चले लेकिन इजराइल की स्थापना के साथ दोनों के रिश्ते डगमगाने लगे. हालांकि, तेल के बदले सुरक्षा वाली व्यवस्था चलती रही. 1945 के समझौते के बाद, संबंध वाणिज्यिक औपचारिकता से रणनीतिक अनिवार्यता की ओर बढ़े, ये फैसला मुख्य रूप से शीत युद्ध और मध्य पूर्व में सोवियत प्रभाव के खतरे से प्रेरित था. अमेरिका सऊदी अरब का प्रमुख सैन्य संरक्षक बन गया.
अमेरिका और सऊदी के बीच रिश्ते का तीसरा फेज
1951 में, दोनों देशों ने एक पारस्परिक रक्षा सहायता समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसने अमेरिकी प्रशिक्षण, बिक्री और सैन्य सहयोग के लिए रूपरेखा स्थापित की. अमेरिका ने एक सैन्य उपस्थिति स्थापित की, विशेष रूप से धरान एयरफील्ड पर, जो दशकों तक एक महत्वपूर्ण ईंधन भरने वाला पड़ाव और सैन्य अड्डा रहा.
अमेरिका और सऊदी के बीच रिश्ते का चौथा फेज
60 के दशक के दौरान, अमेरिका ने रूढ़िवादी सऊदी राजशाही को मिस्र के गमाल अब्देल नासिर जैसे नेताओं द्वारा समर्थित कट्टरपंथी, सोवियत-समर्थित अरब राष्ट्रवाद के खिलाफ एक विश्वसनीय गढ़ के रूप में देखा. 1967 के छह दिवसीय युद्ध के दौरान यह संबंध बचा रहा, हालांकि इजराइल के लिए अमेरिकी समर्थन के कारण आंतरिक सऊदी असंतोष काफी बढ़ गया था.
अमेरिका और सऊदी के बीच रिश्ते का पांचवां फेज
1973 के योम किप्पुर युद्ध ने गठबंधन को पहला बड़ा झटका दिया. इजराइल के लिए अमेरिकी समर्थन के जवाब में, किंग फैसल के नेतृत्व में सऊदी अरब ने फैसला सुनाया कि अमेरिका और इजराइल का समर्थन करने वाले देशों के खिलाफ ओपेक तेल प्रतिबंध लागू किया जाएगा. जिसके तहत तेल की कीमत चौगुनी हो गई, जिससे दुनिया भर में बड़े पैमाने पर आर्थिक व्यवधान पैदा हुआ और सऊदी अरब नई शक्ति बनकर दुनिया भर में उभरा.
इस राजनयिक टूट के बावजूद, अंतर्निहित सुरक्षा-के-बदले-तेल विनिमय अडिग साबित हुआ. इसका नतीजा ये हुआ कि प्रतिबंध समाप्त होने के बाद, अमेरिका-सऊदी अरब की रणनीतिक निर्भरता और गहरी हुई. सऊदी अरब ने अपने विशाल तेल राजस्व (पेट्रोडॉलर) को पश्चिमी बैंकों और अमेरिकी ट्रेजरी प्रतिभूतियों में पुनर्निवेश किया, जिससे दोनों देशों की वित्तीय स्थिरता प्रभावी ढंग से जुड़ गई.
अमेरिका और सऊदी के बीच रिश्ते का छठवां फेज
1990 में कुवैत पर जब इराकी आक्रमण हुआ तब अमेरिका और सऊदी का सैन्य सहयोग के चरम पर पहुंच गया. सऊदी अरब ने किंगडम की रक्षा का नेतृत्व करने के लिए अमेरिका को पुकारा और सद्दाम हुसैन की सेनाओं को खदेड़ने के लिए सैकड़ों-हजारों अमेरिकी सैनिक पहुंच गए. इस संयुक्त प्रयास ने अगले दो दशकों तक इस संबंध को मजबूत किया, हालांकि सऊदी धरती पर विदेशी सैनिकों की निरंतर उपस्थिति एक प्रमुख आंतरिक राजनीतिक और धार्मिक तनाव का कारण बन गई.
80 सालों से कैसे चल रहा ‘रोमांस’?
अमेरिका और सऊदी के रिश्ते गहरे तनावों से होकर गुजरे हैं. हालांकि, हर बार ये दोनों और भी तगड़े सहयोगी बनकर उभरे हैं. 1945 में रूजवेल्ट और किंग अब्दुलअजीज इब्न सऊद के बीच बना रणनीतिक समझौता ऐसे लोहे का बना था, जिसमें जितनी बार जंग लगती गई ये और भी मजबूत होता गया.
अमेरिका आज भी स्थिर ऊर्जा आपूर्ति और एक क्षेत्रीय भागीदार के तौर पर सऊदी को देखता है और किंगडम अभी भी अपनी सबसे उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकी और अंतिम सुरक्षा गारंटी के लिए अमेरिका पर निर्भर है.
सारांश:
अमेरिका और सऊदी अरब के रिश्ते ट्रंप और क्राउन प्रिंस के दौर से नहीं, बल्कि करीब 80 साल पहले शुरू हुए थे। उस समय दोनों देशों के नेताओं की पहली मुलाकात ने संबंधों की दिशा तय की। ऊर्जा, सुरक्षा और रणनीतिक साझेदारी के आधार पर यह रिश्ता दशकों में और मजबूत हुआ। आज भी दोनों देशों की विदेश नीति, अर्थव्यवस्था और वैश्विक शक्ति संतुलन में यह ऐतिहासिक रिश्ता अहम भूमिका निभाता है।
