24 नवंबर 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : एक्टोपिक प्रेगनेंसी महिलाओं के मां बनने की राह में बड़ी बाधा है। जब फर्टाइल एग गर्भाशय में न जाकर फेलोपियन ट्यूब में कहीं जाकर चिपक जाता है और वहीं विकसित होने लगता है तो यह स्थिति एक्टोपिक प्रेगनेंसी कहलाती है। इसका सही समय पर पता न चले तो ट्यूब फटने से मरीज की जान भी जा सकती है। ऐसे में ज्यादातर डॉक्टर बिना रिस्क लिए ट्यूब को काटना ही विकल्प समझते हैं। ताकि मरीज की जान को खतरा न हो। हालांकि शुरुआती स्टेज में पता चलने पर इसे इंजेक्शन से भी ठीक किया जा सकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो ट्यूब काटने के अलावा कोई और विकल्प नहीं होता। लेकिन अब लैप्रोस्कोपिक सर्जरी की मदद से बिना ट्यूब को काटे भी इसे ट्रीट कर रहे हैं। 

देश के जाने-माने गायन्को सर्जन डॉक्टर विजोय नायक (डायरेक्टर, ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायन्कोलॉजी और लैप्रोस्कोपिक सर्जरी विभाग, मैक्स अस्पताल,द्वारका सेक्टर 10, नई दिल्ली) ने बताया कि हर हाल में एक्टोपिक प्रेगनेंसी की शिकार महिलाओं की फेलोपियन ट्यूब बचाने का प्रयास करते हैं। इसमें उन्हें सफलता भी मिलती है। यह काम लैप्रोस्कोपिक सर्जरी से करते हैं। डॉक्टर विजोय नायक अब तक करीब 20 हजार से ज्यादा लैप्रोस्कोपिक सर्जरी कर चुके हैं। इसमें एआई रोबोटिक सर्जरी को बढ़ावा देने पर भी काम किया जा रहा है।

एक्टोपिक प्रेगनेंसी के लक्षण

डॉक्टर विजोय नायक  ने बताया कि कुछ लक्षणों से एक्टोपिक की पहचान की जा सकती है। इसके लक्षणों की बात करें तो पीरियड रुके तो तत्काल प्रेगनेंसी टेस्ट करें। एक्टोपिक होने पर पेट में बाईं या दाईं तरफ दर्द हो सकता है। बीटा एचसीजी जांच कराएं। ट्रांस वजाइनल अर्ली प्रेगनेंसी  अल्ट्रासाउंड करा लें। इसमें भी एक्टोपिक प्रेगनेंसी का पता चल जाता है। ऐसा होने पर तत्काल डॉक्टर के पास जाएं। 

डॉक्टर का कहना है कि 30-32 साल से भी अधिक समय पहले लैप्रोस्कोपी नहीं थी और अल्ट्रासाउंड भी सिर्फ बड़े शहरों में था। वह दौर ऐसा था जब कुछ बड़े निजी संस्थानों में लैप्रोस्कोपी इंट्रोड्यूस की जा रही थी। मगर इसके सर्जन नहीं थे। आम तौर पर एक्टोपिक प्रेगनेंसी में अगर ट्यूब रप्चर होने से पहले इसका पता नहीं चले तो ज्यादातर डॉक्टर ऑपरेशन करके फेलोपियन ट्यूब को निकाल देते हैं।

लैप्रोस्कोपिक सर्जरी बड़ा कदम

डॉक्टर विजोय ने एक केस स्टडी के बारे में बात की और बताया कि “एक युवती यूट्रस में ट्यूमर की शिकायत लेकर आई। उसकी वजह से उसको दर्द बहुत था। उसने कहीं बाहर से अल्ट्रासाउंड कराया था, जिसमें ट्यूमर डिटेक्ट किया गया था, लेकिन जब वह दवा से ठीक नहीं हुआ तो सर्जरी प्लान की। सर्जरी करते समय पता चला कि वह ट्यूमर नहीं, बल्कि फेलोपियन ट्यूब में एक्टोपिक प्रेगनेंसी थी और ट्यूब पूरी तरह फट चुकी थी। उसमें बहुत ब्लीडिंग हो रही थी। मरीज की जान बचाना मुश्किल था। मगर तब उसकी रप्चर हो चुकी ट्यूब निकाल दिया। किसी तरह उसकी जान बची”।

बिना ट्यूब काटे भी हो सकता है एक्टोपिक प्रेगनेंसी का इलाज

“6 महीने बाद उस महिला की दूसरी ट्यूब में भी एक्टोपिक प्रेगनेंसी हो गई। दूसरी ट्यूब रप्चर होने लगी थी। तब मैने उसकी इमरजेंसी सर्जरी प्लान की। घंटो सोचता रहा कि दूसरी ट्यूब भी काट दिया तो वह कभी मां नहीं बन सकेगी। रप्चर होने की स्थिति में पहुंच चुकी ट्यूब को बचाने का तब कोई तरीका मौजूद नहीं था। मैंने बहुत सोचा फिर आइडिया आया कि फेलोपियन ट्यूब में एक छेद करके भ्रूण को निकाल दूं तो शायद बाद में काम बन सके। मैंने वैसा ही किया और ट्यूब को बाद में जोड़ने के लिए छोड़ दिया। कुछ महीनों बाद युवती प्रेगनेंट हुई और उसके गर्भाशय में गर्भ ठहरा। मैं आश्चर्यचकित था। मेरा आइडिया काम आया। इसके बाद से अब तक ऐसी सैकड़ों जटिल सर्जरी की, जिसमें महिलाओं की फेलोपियन ट्यूब को कटने से बचाया।”

सारांश:
एक्टोपिक प्रेगनेंसी वह स्थिति है जिसमें भ्रूण गर्भाशय के बजाय फेलोपियन ट्यूब या अन्य स्थान पर विकसित होने लगता है। इसके सामान्य लक्षणों में पेट में दर्द, मासिक धर्म में गड़बड़ी और ब्लीडिंग शामिल हैं। आधुनिक लैप्रोस्कोपिक सर्जरी से बिना ट्यूब काटे भी इसका इलाज संभव है, जिससे महिला की प्रजनन क्षमता सुरक्षित रहती है।

Bharat Baani Bureau

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