26 नवंबर 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : बांग्लादेश की बर्खास्त पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को सजा-ए-मौत मिलने के बाद भी उनकी पार्टी अवामी लीग ने देश के अंदर संघर्ष की राह नहीं छोड़ी है. अवामी लीग पार्टी की ओर से मंगलवार को घोषणा की गई कि वह 30 नवंबर तक पूरे देश में विरोध प्रदर्शन और प्रतिरोध मार्च आयोजित करेगी. पार्टी की ओर से यह फैसला उस समय लिया गया, जब बांग्लादेश की इंटरनेशनल क्राइम्स ट्राइब्यूनल की ओर से हसीना को मौत की सजा सुनाई जा चुकी है.
17 नवंबर को इंटरनेशनल क्राइम्स ट्राइब्यूनल ने 78 साल की शेख हसीना और उनके कार्यकाल के पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान कमाल को मानवता के खिलाफ अपराध के आरोप में फांसी की सजा दी थी. यह मुकदमा शेख हसीना की गैर-हाजिरी में हुआ, इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी आलोचना हुई, जबकि बांग्लादेश इसी फैसले की बिनाह पर भारत से हसीना का प्रत्यर्पण चाहता है. फिलहाल हसीना भारत में मौजूद हैं और बांग्लादेश का दावा है कि मौत की सजा पाए पूर्व गृहमंत्री कमाल भी भारत में ही छिपे हुए हैं.
शेख हसीना की पार्टी ने उठाया झंडा
हसीना की पार्टी अवामी लीग ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया पोस्ट में आरोप लगाया कि यह फैसला मोहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार की साजिश है, ताकि हसीना और उनकी पार्टी को अगले साल फरवरी में होने वाले चुनाव से बाहर रखा जा सके. पार्टी ने ट्राइब्यूनल के फैसले को गैरकानूनी बताते हुए यूनुस के इस्तीफे की मांग की और कहा कि 30 नवंबर तक सभी जिलों और उपजिलों में पार्टी का आंदोलन चलता रहेगा. अवामी लीग ने कहा कि जनता ने इस फर्जी और मजा जैसे मुकदमे को पूरी तरह खारिज कर दिया है.
यूनुस के खिलाफ अवामी लीग का हल्ला बोल
अवामी लीग के मुताबिक वे अपने जमीनी कार्यकर्ताओं, राजनीतिक नेताओं और सहयोगियों के साथ मिलकर राष्ट्र-विरोधी साजिशों का मुकाबला करेगी और चुनावी प्रक्रिया से स्वतंत्रता सेनानी समर्थक ताकतों को बाहर करने की हर कोशिश का जोरदार विरोध किया जाएगा. पार्टी ने चेतावनी दी कि बांग्लादेश में धोखे से चुनाव नहीं होने दिया जाएगा. जरूरत पड़ी तो हर कीमत पर रोकेंगे इसे रोका जाएगा. इतना ही नहीं उन्होंने इसे लेकर एक देशव्यापी आंदोलन शुरुआत की है.
2024 से ही देश से बाहर हैं शेख हसीना
आपको याद दिला दें कि शेख हसीना की सरकार को 5 अगस्त, 2024 में छात्रों के नेतृत्व में हुए हिंसक के बाद सत्ता से हटाया गया था. इन्हीं आंदोलनों के दौरान शेख हसीना को अपनी जान बचाकर तब भागना पड़ा, जब छात्रों का उग्र समूह उनके घर तक पहुंच गया. इसी के तीन दिन बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस पेरिस से लौटकर अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार बन गए. इसके बाद सबसे पहले हसीना देशद्रोह और मानवता के खिलाफ अपराधों से लेकर सैकड़ों चार्ज लगाए गए. उनके दो साथियों के साथ उन पर आरोप था कि उन्होंने आंदोलनकारियों पर कड़ी कार्रवाई की. इसी को लेकर शेख हसीना और तत्कालीन गृहमंत्री को फांसी की सजा सुनाई गई है, जबकि तीसरे साथी ने स्टेट विटनेस बनकर अपनी जान बचा ली.
