08 दिसंबर 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : रूस ने जब समुद्र में सुनामी ला देने वाले हथियार का परीक्षण किया, तो दुनिया के वो देश खौफ में आ गए, जो रूस के खिलाफ खड़े हैं. अभी ज्यादा दिन नहीं हुए कि रूस ने आर्कटिक पोर्ट सेवेरोविंस्क से अपनी सबसे खतरनाक न्यूक्लियर पनडुब्बी खाबरोवस्क लॉन्च की. इसने पश्चिमी देशों के खेमे में इतनी हलचल मचा दी कि वो इसका तोड़ ढूंढने लगे. रूस का दावा है कि यह पनडुब्बी सिर्फ पोसाइडन जैसे रेडियोएक्टिव सुनामी पैदा करने वाले ड्रोन टॉरपीडो ही नहीं ले जाती, बल्कि इसका लो नॉइज डिजाइन इसे लगभग अदृश्य बना देता है.
इसे समुद्र का शैतान या समंदर का भूत भी कहा जा रहा है. इसकी वजह है इसके नए पंप-जेट इंजन, जो इसकी आवाज काटने वाली कोटिंग और शांत रिएक्टर सिस्टम, जो इसे समुद्र की गहराई में वाकई भूत की तरह चलने देते हैं, जिन्हें कोई सुन तक नहीं सकता. अब नाटो देश मिलकर इसका तोड़ निकालने के लिए काम कर रहे हैं और इसका जिम्मा उठाया है ब्रिटेन ने. अब वो ऐसा जाल तैयार कर रहा है, जो रूस के इस तूफान का जवाब देगा.
रूसी ‘भूत’ का शिकार समुद्री शिकारियों की फौज
ब्रिटेन ने रूस की खाबरोवस्क पनडुब्बी का तोड़ निकालने के लिए Atlantic Bastion नाम का एक पूरा समुद्री निगरानी नेटवर्क तैयार करने का ऐलान किया है. इसमें नए टाइप-26 फ्रिगेट, P-8 पोसाइडन एयरक्राफ्ट और पानी के नीचे अपने-आप चलने वाले ड्रोन शामिल होंगे. ये सब मिलकर खास तौर पर रूसी सबमरीन्स की खोज करेंगे. ब्रिटेन खुलकर मान रहा है कि यह पूरा सिस्टम रूस की बढ़ती पनडुब्बी क्षमताओं का जवाब है. इसका पहला चरण ही अटलांटिक नेट है, जिसमें एक बड़ा सेंसर नेटवर्क आइसलैंड ग्रीनलैंड ब्रिटेन पर निगरानी रखेगा. ये वही रास्ता है, जो रूस की पनडुब्बियों के लिए अटलांटिक का मुख्य दरवाजा है.
कैसे ब्रिटेन पकड़ेगा रूसी ‘भूत’?
ब्रिटेन की इस योजना के मुताबिक जो हथियार अटलांटिक बास्टियन में शामिल किए जाएंगे, उनकी खासियत थी – समुद्री ड्रोन, जो समुद्र में खुद चलकर पनडुब्बियों की तलाश करेंगे. समुद्र में बड़ी संख्या में एक्टिव और पैसिव सेंसर है और इस योजना को ब्रिटेन के रक्षा मंत्री जॉन हीली ने रॉयल नेवी का फ्यूचर बताया. इसमें सैकड़ों अंडरवाटर ग्लाइडर ड्रोन होंगे, जो समुद्र के नीचे चुपचाप चलेंगे. ये रूसी पनडुब्बियों के शोर को पकड़ेंगे और उनकी लोकेशन और दिशा का पता लगाएंगे. यह सिस्टम उत्तरी अटलांटिक के GIUK Gap क्षेत्र की निगरानी करेगा. यह वही इलाका है जहां से रूसी पनडुब्बियों को गुजरना पड़ता है. ब्रिटेन का नया प्रोजेक्ट पुरानी अमेरिकी SOSUS प्रणाली जैसा है, जो कोल्ड वॉर के वक्त सोवियत पनडुब्बियों को सुनकर पहचानती थी. बस फर्क ये है कि अब सेंसर स्थिर नहीं, बल्कि चलने वाले AI संचालित ड्रोन होंगे और ये ज्यादा खतरनाक होगा.
शोर नहीं शांति बनी चुनौती
ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि रूसी पनडुब्बियां साल 1980 के दशक से लगातार और ज्यादा शांत होती जा रही हैं. नई रूसी पनडुब्बियों को पकड़ पाना बेहद कठिन है. ये सिर्फ साइलेंट सेंसर नहीं, बल्कि एक्टिव सोनार, बाई-स्टैटिक रडार, और ज्वाइंट सिस्टम चाहिए. यही वजह है कि ब्रिटेन ने समुद्र की निगरानी के लिए हाई टेक AI आधारित सिस्टम बनाने का प्लान शुरू किया है. विशेषज्ञ मानते हैं कि रूस की उन्नत परमाणु पनडुब्बियों का खतरा अभी भी पूरी तरह काबू में नहीं आएगा.
सारांश:
रूस के राष्ट्रपति पुतिन के ‘अदृश्य सिपाही’ (stealth military asset) ने NATO को चिंतित कर दिया है। इस तकनीकी क्षमता के चलते ब्रिटेन समुद्र में विशेष शिकारियों की फौज तैनात कर रहा है, ताकि संभावित खतरों का मुकाबला किया जा सके।
