03 सितम्बर 2024 : हाल के समय में कई सारे नियामकीय बदलावों से ब्रोकरों के मुनाफे पर असर पड़ रहा है जिसे देखते हुए अग्रणी ब्रोकर अगले कुछ हफ्तों में शुल्क बढ़ा सकते हैं। सूत्रों ने कहा कि शीर्ष ब्रोकर शेयर की खरीद-बिक्री के लिए शुल्क वसूलना शुरू कर सकते हैं और इंट्राडे तथा डेरिवेटिव ट्रेडिंग के लिए एकसमान शुल्क (flat fees) में 10 से 30 फीसदी का इजाफा कर सकते हैं। कुछ छोटे ब्रोकरों ने पहले ही ब्रोकिंग शुल्क बढ़ा दिए हैं।
इस कदम से बिना कोई शुल्क के ट्रेडिंग की सुविधा यानी शून्य-ब्रोकरेज युग का अंत हो सकता है। शून्य ब्रोकिंग ने लाखों नए निवेशकों को शेयर ब्रोकिंग क्षेत्र में आकर्षित करने और सक्रिय ट्रेडिंग को बढ़ावा देने में मदद की है।
प्रमुख नियामकीय बदलाव जिनसे ब्रोकरों के मुनाफे पर असर पड़ रहा है, उनमें 1 अक्टूबर से स्लैब के आधार पर शुल्क ढांचा खत्म करना, डीमैट अकाउंट के लिए बुनियादी सेवाओं हेतु होल्डिंग सीमा बढ़ाना और सेकंडरी मार्केट के लिए यूपीआई आधारित ब्लॉक मैकेनिज्म का प्रस्ताव शामिल है।
नियामकीय सूत्रों का मानना है कि मौजूदा शुल्क ढांचा कम दिखता है और इस बदलाव से सुनिश्चित होगा कि नया शुल्क ढांचा ज्यादा पारदर्शी हो। देश के तीन सबसे बड़े ब्रोकरों – ग्रो, जीरोधा और अपस्टॉक्स को डिस्काउंट ब्रोकर कहा जाता है और इनकी बाजार हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी है। ये सभी एकसामन 20 रुपये या लेनदेन मूल्य पर 0.03 से 0.05 फीसदी के बीच शुल्क वसूलते हैं।
उद्योग के भागीदारों का कहना है कि अधिकांश प्रमुख ब्रोकर अभी स्थिति को भांप रहे हैं और यह देख रहे हैं कि कौन पहले शुल्क बढ़ाने की पहल करता है। शुल्क बढ़ाने से ब्रोकरों को अपना मुनाफा बचाने में मदद मिलेगी और साथ ही इससे उद्योग में बड़ा बदलाव आएगा। डीमैट खातों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। 2021 में डीमैट खातों की संख्या 4.97 करोड़ थी जो अब बढ़कर 16.7 करोड़ हो गई है।
डिजिटलीकरण की वजह से खाता खोलना आसान हो गया है और महामारी के बाद बचत को निवेश में लगाने की प्रवृत्ति से भी डीमैट खाते खोलने की रफ्तार बढ़ी है। इससे यह भी पता चलेगा ऊंचे शुल्क का ट्रेडिंग पैटर्न पर क्या असर पड़ता है क्योंकि शून्य-शुल्क ढांचा ग्राहकों को ज्यादा ट्रेडिंग करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
फायर्स के सह-संस्थापक और सीईओ तेजस खोडे ने कहा, ‘ब्रोकरेज शुल्क बढ़ना चाहिए और इसके अक्टूबर या उसके बाद बढ़ने की संभावना है क्योंकि तब तक 100 फीसदी एक्सचेंज लेनदेन शुल्क प्रभाव में आ जाएगा। इस दिशा में पहला कदम उनकी ओर से उठाया जाना चाहिए जो बाजार हिस्सेदारी के मामले में शीर्ष 5 ब्रोकरों में शुमार हैं। लंबे समय से ब्रोकरेज शुल्क काफी कम बना हुआ है। खुदरा निवेशकों के बाजार में आने और वॉल्यूम ज्यादा बढ़ने से ही इतने कम शुल्क में कारोबार चल सकता है। मगर अब वॉल्यूम वृद्धि भी काफी कम हो सकती है।’
उद्योग के भागीदारों का कहना है कि डीमैट खातों पर बुनियादी सेवाओं का न्यूनतम होल्डिंग सीमा का मतलब यह हो सकता है कि अधिक निवेशक इन नो-फ्रिल डीमैट खातों के लिए पात्र होंगे, जिससे आय पर भी असर पड़ेगा। सेबी ने शून्य रखरखाव शुल्क वाले खातों की होल्डिंग सीमा 2 लाख रुपये से बढ़ाकर 10 लाख रुपये कर दी है। 4 लाख से 10 लाख रुपये के बीच की होल्डिंग के लिए रखरखाव शुल्क महज 100 रुपये है।
टॉरस फाइनैंशियल मार्केट के सीईओ प्रकाश गगदानी ने कहा, ‘सभी बदलाव से ब्रोकिंग आय पर असर पड़ रहा है। टर्नओवर शुल्क स्टैंडर्ड बन रहे हैं, रेफरल का दौर खत्म हो रहा है और डीमैट खातों की बुनियादी सेवाओं के लिए नए मानदंड लागू हो गए हैं। इससे मुनाफा प्रभावित हो रहा है ओर लागत बढ़ गई है। अभी कारोबार अच्छा चल रहा है क्योंकि बाजार में तेजी है और वॉल्यूम भी बढ़ रहा है। कुछ समय बाद जब बाजार में गिरावट आएगी तो लागत बढ़ जाएगी।’
नियामकीय सूत्रों के अनुसार घरेलू ब्रोकरों के पास वर्तमान में दैनिक आधार पर ग्राहकों के 2 लाख करोड़ रुपये होते हैं। इससे उन्हें लगभग 12,000 करोड़ रुपये की सालाना आय कमाने में मदद होती है। ब्रोकिंग शुल्क को बेहद कम रखने के बावजूद, निष्क्रिय आय की बदौलत प्रमुख ब्रोकर लाभ में रहते हैं।