03 सितम्बर 2024 : फाइव जी वाले तकनीकी से भरे युग में मोबाइल हमारे जीवन का बेहद अहम हिस्सा बन चुका है. यहीं कारण है कि इस पर सब्जी से लेकर विशेष खोज तक की निर्भरता तेजी से बढ़ी है. खास बात यह है कि बच्चों में इसकी उपयोगिता लगातार बढ़ रही है. मनोरंजन की दृष्टिकोण से कई घंटे बच्चे इस पर जाया कर रहे हैं. ऐसे में इसके दुष्प्रभाव की कई मामले देखने को मिलें हैं.

खासकर उनकी आंखों के लिए. गिरिडीह के सदर अस्पताल के आंख विशेषज्ञ डॉ वीरेंद्र कुमार के अनुसार लगातार मोबाइल स्क्रीन देखने से बच्चों की आंखें सूखने लगती हैं, जिससे कई स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं. डॉ कुमार मुताबिक यह जानना जरूरी है कि कैसे मोबाइल का अत्यधिक उपयोग डिस ऑर्डर का कारण बन सकता है.

कैसे सूख रही हैं बच्चों की आंखें
डॉक्टरों का कहना है कि मोबाइल स्क्रीन की ब्लू लाइट आंखों के लिए हानिकारक होती है. जब बच्चे लंबे समय तक मोबाइल का उपयोग करते हैं, तो वे लगातार स्क्रीन की ओर देखते रहते हैं. जिससे आँखों का पलक झपकने का दर कम हो जाता है. पलक झपकने से आंखों में नमी बनी रहती है. लेकिन, जब यह प्रक्रिया धीमी हो जाती है, तो आंखें सूखने लगती हैं. इसे ‘ड्राई आई सिंड्रोम’ कहा जाता है.

क्या है डिसऑर्डर होने का खतरा
बच्चों की आँखों में नमी की कमी से सूखापन, जलन और लाली की समस्या हो सकती है. अगर समय पर ध्यान न दिया जाए तो यह समस्या गंभीर हो सकती है. मोबाइल स्क्रीन को नजदीक से देखने की आदत से बच्चों में निकट दृष्टि दोष (मायोपिया) विकसित हो सकता है. जिससे दूर की चीजें धुंधली दिखाई देने लगती हैं. लंबे समय तक स्क्रीन देखने से आँखों में थकान, सिरदर्द, धुंधलापन, और आंखों के चारों ओर दर्द हो सकता है. इसे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम कहा जाता है, जो मोबाइल उपयोग से भी हो सकता है.

कितना मोबाइल उपयोग है जायज
नेत्र विशेषज्ञ डॉ वीरेंद्र कुमार के अनुसार, बच्चों के लिए मोबाइल उपयोग का समय सीमित होना चाहिए. 5-12 साल के बच्चों के लिए दिन में 1-2 घंटे से ज्यादा स्क्रीन टाइम नहीं होना चाहिए. साथ ही, हर 20 मिनट बाद 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर किसी चीज को देखने की आदत डालनी चाहिए. जिसे ’20-20-20′ नियम कहा जाता है. वहीं 12 साल से ऊपर के बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम को 2-3 घंटे तक सीमित रखना चाहिए. मोबाइल उपयोग के दौरान ब्रेक लेना बहुत जरूरी है, ताकि आँखों को आराम मिल सके.

क्या है बचाव के उपाय
बच्चों को स्क्रीन से उचित दूरी पर बैठने और इसे उचित रोशनी में उपयोग करने की आदत डालें. मोबाइल की ब्राइटनेस को आंखों के लिए आरामदायक स्तर पर रखें. बच्चों को आउटडोर खेलों में शामिल करें. ताकि उनकी आंखें प्राकृतिक रोशनी में आराम कर सकें और मायोपिया का खतरा कम हो. बच्चों की आँखों की नियमित रूप से जांच करवाएं, ताकि किसी भी समस्या को समय रहते पहचाना जा सके.डॉ वीरेंद्र कुमार ने लोकल18 से बात करते हुए कहा अगर आप मोबाइल, कंप्यूटर या लैपटॉप में काम करते है तो ब्लू कट चश्मा का उपयोग करें. जितना हो सके आपके बच्चों को मोबाइल से दूर रखें.

Bharat Baani Bureau

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