06 सितम्बर 2024 : जनाब, मोहम्मद यूनुस साहब ! आपका ये सब कहना ठीक नहीं लगता है. आप महज बांग्लादेशी गवर्नमेंट के हेड ही नहीं हैं. नोबेल पुरस्कार से सम्मानित एक विद्वान भी हैं. यहां भारत में रहते हुए तो हमें ये नहीं दिख रहा कि भारत ऐसा कोई नैरेटिव खड़ा कर रहा हो कि आपका मुल्क अफगानिस्तान बन जाएगा. ये भारत की फितरत में ही नहीं है. अफगानिस्तान का जिक्र आपने किया है तो याद दिला दें कि अफगानिस्तान में भारत ने पिछले कुछ सालों में 25 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की मदद वाले प्रोजेक्ट चलाए. ज्यादातर को पूरा कर अफगान हुकूमत को सौंप भी दिया. ये बात इस वजह से बताई कि भारत तो अफगानिस्तान को भी किसी तरह कमतर नहीं आंकता. हालात जो भी है, जरुरत के वक्त पड़ोसी की मदद भारत की नियत में है.
बांग्लादेश को कमजोर करना भारत का मकसद नहीं
खैर बांग्लादेश को भारत कत्तई खराब हालत में नहीं देखना चाहता. हुकूमत का बदलना, किसी भी तरह से, उस देश का अंदरुनी मसला है. भारत कत्तई दखल नहीं देना चाहता. आगे भी नहीं देगा. जरा खयाल करके देखिए. भारत के विपक्षी दलों तक ने बांग्लादेश मसले पर कुछ नहीं कहा. इक्का दुक्का नेताओं ने अगर कहीं सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर लिखा भी तो फोटो और वीडियो के साथ लिखा. बांग्लादेश के ही फोटो और वीडियो दिखाए.
यकीन मानिए भारत वो मुल्क है जो दुनिया में कहीं भी ह्यूमैन राइट कुचले जाने पर जरुर आवाज उठाता है. लेकिन अपने पड़ोसी का इस मामले में लिहाज किया. हद हो गई तो कुछ नेताओं ने जरुर सोशल प्लेटफार्म पर लिखा. याद दिलाना मौजूं होगा कि सोशल पर अगली कतार के नेताओं ने कुछ खास नहीं लिखा.
कट्टरपंथी कहते तो कोई दिक्कत न होती
बहरहाल, आपने जो फरमाया कि बांग्लादेश में हिंदुओं ने शेख हसीना का साथ दिया इस वजह से उन पर हमले हो रहे हैं- इससे ज्यादा तकलीफ हुई. ये बात कोई कट्टरपंथी राजनीतिक शख्स कहता तो न होती. आप आलिम. इसीलिए दुनिया के सबसे उम्दा ईनाम से नवाजे गए हैं. इस लिहाज से ये बात ज्यादा नागवार गुजरी. शुरुआत में जब आपने कहा था कि बांग्लादेश में किसी हिंदू पर जुल्म नहीं होगा. तब आपके कौल की सिताइश की गई थी. लेकिन आपके दूसरी बात ने ही आपकी ही पहली बात को काट दिया. खुद आपने ही मान लिया कि अखलियत के हिंदुओं पर जुल्म किए गए. ये किसी भी हुक्मरान के लिए अच्छी बात नहीं है.
आन सांग सू की नजीर हैं
आपको याद दिला दे कि आन सांग सू की को भी आपकी ही तरह नोबेल पुरस्कार मिला हुआ है. दिगर बात है कि दोनों को अलग अलग मसलों पर मिला. लेकिन सरकार बनाने के बाद उन्होंने रोहिंग्या मसले पर सेना की हिमायत की. सेना के अत्याचार पर पर्दा डाला था. इसके लिए दुनिया भर में सू की की मज़म्मत की गई. हर ओर से लोगों ने सू की को गलत ठहराया. कई ओर से तो ये भी आवाज उठी कि सू की से नोबल पुरस्कार भी वापस ले लेना चाहिए. बहरहल, कुछ ही वक्त में उसी सेना ने तख्ता पलट करके उन्हें नजरबंद कर दिया. ये नजीर है.
रही बात शेख हसीना को भारत में रखने की तो इस मुल्क की संप्रभुता को कोई भी चैलेंज नहीं कर सकता. यहां की रिवायत रही है कि जो यहां आ जाए उसकी हिफाजत करनी ही होती है. खासतौर से सियासी मामलों में. वैसे ये सबको मालूम है कि शेख साहब (बंगबंधु शेख मुजीबुरहमान) को किस तरह मारा गया था. लिहाजा हिफाजत की खातिर आए किसी शख्स पर ये मुल्क न तो कोई शर्त लगाता है, न ही उसे कोई नसीहत देता है. बस जगह मुहैया करा देता है. अगर डिप्लोमैटिक चैनल से कुछ आपकी हुकूमत कुछ करना चाहे तो वो आपका अख्तियार है. लेकिन मीडिया में आपका इस तरह का बयान हिंदुओं पर जुल्म ढाने वालों को बढ़ावा दे सकता है.