03 अक्टूबर 2024 : पश्चिम एशिया में इजरायल, ईरान और लेबनान में संघर्ष बढ़ने और अमेरिका में प्रमुख बंदरगाहों पर श्रमिकों की हड़ताल से भारतीय निर्यातकों की चिंता बढ़ गई है। निर्यातकों को डर है कि तनाव आगे और गहराने से ढुलाई की लागत बढ़ सकती है और आपूर्ति श्रृंखला में बाधा आ सकती है। इसका असर कच्चे तेल की कीमतों पर भी दिख सकता है।
भारतीय निर्यातकों के संगठन फियो के महानिदेशक और मुख्य कार्याधिकारी अजय सहाय ने कहा कि तत्काल असर नहीं दिखा है मगर संघर्ष का दायरा बढ़ने से तेल की कीमतों में तेजी आने लगी है।
सहाय ने कहा, ‘अमेरिकी प्रतिबंध के बावजूद ईरान तेल का प्रमुख आपूर्तिकर्ता है। अगर ईरान पर और कड़े प्रतिबंध लगाए जाते हैं तो बाजार से तेल का प्रमुख आयातक बाहर हो सकता है। इससे कच्चे तेल के दाम बढ़ सकते हैं और क्षेत्रीय अस्थिरता भी बढ़ सकती है।’
इसके अलावा ओमान और ईरान के बीच होर्मुज जलडमरूमध्य के माध्यम से माल की आवाजाही में किसी तरह की बाधा आने से शिपिंग का खर्च बढ़ जाएगा। सहाय ने कहा, ‘ईरान के मिसाइल हमलों के बाद हवाई मार्ग भी प्रभावित हुआ है। इससे आपूर्ति श्रृंखला में बाधा आ सकती है और निवेशक की धारणा पर भी असर पड़ सकता है।’
भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात संवर्धन परिषद (ईईपीसी) के चेयरमैन अरुण कुमार गारोड़िया ने कहा कि पश्चिम एशिया में लगातार हो रहे संघर्ष से स्थिति विकट हो गई है। उन्होंने कहा, ‘हम स्थिति पर करीबी नजर रख रहे हैं। उम्मीद है कि संघर्ष अब और आगे न बढ़े। अगर संघर्ष युद्ध में तब्दील होता है तो यह किसी भी हद तक जा सकता है और व्यापार में भी बाधा आ सकती है।’
भारतीय निर्यातकों को और चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि इंटरनैशनल लॉन्गशोरमेन एसोसिएशन (आईएलए) के बंदरगाह कामगारों ने मंगलवार को हड़ताल की घोषणा की है, जिससे अमेरिका के पूर्वी तट और मेक्सिको की खाड़ी में 36 प्रमुख बंदरगाह ठप हो गए हैं। अमेरिका के अंदर और बाहर जाने वाले लगभग 55 फीसदी कंटेनर प्रभावित बंदरगाहों से ही होकर गुजरते हैं।
मूडीज के विश्लेषकों ने एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत, इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया की इन बंदरगाहों पर अत्यधिक निर्भरता है। इससे उन पर अधिक प्रभाव पड़ेगा जबकि हॉन्ग कॉन्ग, सिंगापुर और मलेशिया जैसी अर्थव्यवस्थाओं पर इसका प्रभाव नहीं पड़ेगा।
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि पश्चिम एशिया में चल रहे संघर्ष से पुनर्गठित मौद्रिक नीति दरों को यथावत बनाए रख सकता है क्योंकि तेल की कीमतों और समग्र अर्थव्यवस्था पर संघर्ष के संभावित असर का मूल्यांकन करना पड़ेगा।
पश्चिम एशिया के साथ भारत का काफी व्यापार होता है। रूस के अलावा भारत इराक, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और सऊदी अरब से कच्चे तेल का आयात करता है। पश्चिम एशियाई देशों में भारत के निर्यात में खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। इसमें बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और यूएई शामिल हैं। यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
ईरान, इराक, इजरायल, जॉर्डन, लेबनान, सीरिया और यमन जैसे अन्य पश्चिम एशियाई देशों में भारत का इराक और इजरायल से ज्यादा व्यापार होता है।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (जीटीआरआई) ने कहा किपिछले साल अक्टूबर में शुरू हुए इजरायल-हमास युद्ध के कारण पश्चिम एशिया में व्यापार में काफी बाधा आई है। और अब यह संघर्ष लेबनान, सीरिया, ईरान तक फैल गया है। सऊदी अरब और यूएई अभी इसमें शामिल है जिससे इन देशों के साथ भारत का व्यापार बढ़ सकता है।
जीटीआरआई ने कहा, ‘युद्ध प्रभावित देशों के साथ व्यापार में बड़ी गिरावट आई है और जलमार्गों में बाधा के कारण निर्यातकों की ढुलाई लागत बढ़ रही है। अगर लाल सागर में संकट का समाधान होता है तो भारत को राहत मिल सकती है।’
इस साल जनवरी से जुलाई के बीच इजरायल, जॉर्डन और लेबनान के साथ निर्यात में काफी कमी आई है। इस दौरान इजरायल के साथ भारत का निर्यात 63.3 फीसदी घटकर 1.3 अरब डॉलर रह गया। इसी तरह जॉर्डन संग निर्यात 38 फीसदी घटकर 63.8 करोड़ डॉलर रह गया है और लेबनान को किए जाने वाले निर्यात में करीब 7 फीसदी की कमी आई है।