One Nation One Election 17 दिसंबर 2024 (भारत बानी ब्यूरो ) : केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार (17 दिसंबर) को ‘एक देश, एक चुनाव’ संवैधानिक संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश कर दिया। यह संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024 है। कांग्रेस समेत अधिकांश विपक्षी दलों ने इस विधेयक का विरोध करते हुए इसे वापस लेने की मांग की है। वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विधेयक को जेपीसी में भेजने की पैरवी की है।
कानून मंत्री ने देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ कराने के प्रावधान वाले ‘संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024’ और उससे जुड़े ‘संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024’ को पुर:स्थापित करने के लिए संसद के निचले सदन (लोकसभा) में रखा।
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा- JPC में भेजा जाए विधेयक
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक साथ चुनाव कराने संबंधी विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) में भेजे जाने की पैरवी करते हुए कहा कि जब मंत्रिमंडल में चर्चा के लिए विधेयक आया था, तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं मंशा जताई थी कि इसे जेपीसी के विचार के लिए भेजा जाना चाहिए।
जनता दल (यूनाईटेड) ने ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक को देश हित में करार दिया और कहा कि लोकसभा में इसे पेश किए जाने के दौरान कांग्रेस का रवैया बेहद ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ रहा। जद (यू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने एक बयान में कहा कि उनकी पार्टी पहले से ही इस विधेयक के समर्थन में रही है। उन्होंने कहा, ‘‘इस फैसले से लोकतंत्र में मजबूती आएगी एवं सरकार की योजनाओं और नीतियों में निरंतरता बनी रहेगी। साथ ही बार-बार चुनाव में होने वाली फिजूल खर्ची पर भी रोक लगेगी।’’
बता दें, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की अवधारणा को प्रभावी बनाने के लिए संवैधानिक संशोधन विधेयक को बीते 12 दिसंबर को मंजूरी दे दी थी। संसद का वर्तमान शीतकालीन सत्र 20 दिसंबर को समाप्त होगा।
केंद्र सरकार ने ‘एक देश एक चुनाव’ योजना को दो चरणों में लागू करने की योजना बनाई है। पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे, जबकि दूसरे चरण में स्थानीय निकाय चुनाव – जैसे पंचायत और नगर पालिकाओं के चुनाव – आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर होंगे।
ONOE Bill: विरोध में विपक्ष
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ संबंधी सरकार के विधेयक पर आपत्ति जताते हुए लोकसभा में कहा कि यह संविधान के बुनियादी ढांचे पर हमला करता है और इस सदन के विधायी अधिकार क्षेत्र से परे है, इसलिए इसे वापस लिया जाना चाहिए।
सपा सांसद धर्मेंद्र यादव ने लोकसभा में कहा कि यह विधेयक संविधान की मूल भावनाओं को खत्म करने और देश को तानाशाही की ओर ले जाने का प्रयास है, इसे वापस लिया जाए।
तृणमूल कांग्रेस के नेता कल्याण बनर्जी ने एक साथ चुनाव कराने संबंधी विधेयक पर कहा कि यह चुनावी सुधार नहीं है, एक व्यक्ति की महत्वाकांक्षाओं और सपनों को पूरा करने का प्रयास है तथा संविधान के मूल ढांचे पर हमला है; इस विधेयक से विधानसभाओं की स्वायत्तता छिन जाएगी।
द्रमुक नेता टीआर बालू ने सवाल किया कि जब सरकार के पास दो- तिहाई बहुमत नहीं है तो फिर इस विधेयक को लाने की अनुमति आपने कैसे दी? इस पर बिरला ने कहा, ‘‘मैं अनुमति नहीं देता, सदन अनुमति देता है।’’ बालू ने कहा, ‘‘मैं सरकार से आग्रह करता हूं कि इस विधेयक को जेपीसी के पास भेजा जाए और विस्तृत विचार-विमर्श के बाद इसे सदन में लाया जाए।’’
आईयूएमएल के नेता ईटी मोहम्मद बशीर ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह लोकतंत्र, संविधान और संघवाद पर हमले का प्रयास है।
शिवसेना (उबाठा) के सांसद अनिल देसाई ने भी विधेयक का विरोध किया और कहा कि यह विधेयक संघवाद पर सीधा हमला है और राज्यों के अस्तित्व को कमतर करने की कोशिश है।
बीजेपी, कांग्रेस ने जारी किया व्हिप
विधेयक के पेश होने से पहले बीजेपी ने तीन लाइन का व्हिप जारी कर अपने सभी लोकसभा सांसदों को उपस्थित रहने का निर्देश दिया है। यह बिल बीजेपी का लंबे समय का चुनावी एजेंडा है। कांग्रेस ने भी लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने संबंधी विधेयक लोकसभा में पेश किए जाने के मद्देनजर अपने सांसदों को व्हिप जारी कर आज यानी मंगलवार को सदन में उपस्थित रहने को कहा है।
शिवसेना की ओर से भी अपने सांसदों को व्हिप जारी कर मंगलवार को सदन में उपस्थित रहने को कहा है। लोकसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक शिवसेना सांसद श्रीरंग बारणे ने व्हिप जारी करते हुए कहा कि सदन में ‘‘कुछ बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे/विधायी कार्य’’ पर चर्चा की जानी है और उन्हें पारित किया जाना है।
इस बीच, राहुल गांधी, ममता बनर्जी और एमके स्टालिन समेत कई विपक्षी नेताओं ने एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव की कड़ी आलोचना की है। उनका तर्क है कि यह विधेयक “लोकतंत्र विरोधी” है। उन्होंने सरकार पर इस बिल को भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को नष्ट करने के लिए एक टूल के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है।
बीजेपी को मिलेगी समिति की अध्यक्षता
इस संबंध में एक पदाधिकारी ने सोमवार को कहा कि सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते बीजेपी को समिति की अध्यक्षता मिलेगी और इसके कई सदस्य इसमें शामिल होंगे। उन्होंने बताया कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाली उच्चस्तरीय समिति के सदस्य रहे गृह मंत्री अमित शाह विधेयक पेश किए जाने के दौरान निचले सदन में उपस्थित रह सकते हैं। इस उच्चस्तरीय समिति की अनुशंसा के आधार पर यह विधेयक लाया जा रहा है।
विधेयक में क्या प्रस्ताव है?
13 दिसंबर को जारी ड्रॉफ्ट बिल के मसौदे के अनुसार, अगर लोकसभा या कोई राज्य विधानसभा अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करने से पहले भंग हो जाती है, तो उस कार्यकाल के शेष समय के लिए मध्यावधि चुनाव कराए जाएंगे।
विधेयक में अनुच्छेद 82(ए) को शामिल करने का प्रस्ताव है, जो लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव अनिवार्य करता है।
इसके अतिरिक्त, इसमें अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि), 172 और 327 (विधानसभाओं के चुनावों के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति) में संशोधन करने की बात कही गई है। संशोधन राष्ट्रपति द्वारा घोषित की जाने वाली ‘नियत तिथि’ से प्रभावी होंगे, जो आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक के साथ मेल खाएगा।
विधेयक के लागू होने की समय-सीमा से पता चलता है कि “नियत तिथि” 2029 में अगले लोकसभा चुनावों के बाद होगी, साथ ही 2034 में एक साथ चुनाव शुरू होने की उम्मीद है। लोकसभा का कार्यकाल नियत तिथि से पांच वर्ष निर्धारित किया जाएगा। इसके बाद निर्वाचित राज्य विधानसभाओं के लिए, उनका कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के साथ ही समाप्त हो जाएगा।
अगर लोकसभा या किसी राज्य विधानसभा को समय से पहले भंग कर दिया जाता है, तो नव निर्वाचित सदन या विधानसभा केवल मूल कार्यकाल की शेष अवधि तक ही काम करेगी।
तीन बिल के जरिए होगा लागू
“एक देश, एक चुनाव” योजना को लागू करने के लिए सरकार ने दो संवैधानिक संशोधनों सहित तीन विधेयक प्रस्तावित किए हैं:
1. पहला संविधान संशोधन विधेयक
• लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सुविधा प्रदान करता है।
• अनुच्छेद 82ए में बदलाव का सुझाव देता है, जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक ‘नियत तिथि’ और एक साथ कार्यकाल समाप्ति के प्रावधान शामिल हैं।
2. दूसरा संविधान संशोधन विधेयक
• कम से कम आधे राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुसमर्थन की जरूरी है।
• स्थानीय निकाय चुनावों के लिए भारत के चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोगों के बीच सहयोग को अनिवार्य करते हुए मतदाता सूची विनियमों में संशोधन करने का प्रयास करता है।
3. तीसरा विधेयक
• पुडुचेरी, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर सहित विधानसभाओं वाले केंद्र शासित प्रदेशों के कार्यकाल को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के साथ करता है।