30 दिसंबर 2024 (भारत बानी ब्यूरो ) – भारतीय रिजर्व बैंक को अपनी विदेशी मुद्रा विनिमय रणनीति (फॉरेन एक्सचेंच स्ट्रेटजी) पर दोबारा विचार करने और 2025 में रुपये पर अपनी पकड़ ढीली करने की जरुरत होगी। अर्थशास्त्रियों का ऐसा मानना है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि ‘ट्रेड-वेज्ड टर्म्स’ में कम से कम दो दशकों में रुपया दूसरी करेंसी के मुकाबले सबसे मजबूत स्थिति में है।

रुपये की 40-मुद्रा व्यापार-भारित ( rupee’s 40-currency trade-weighted) वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (REER) नवंबर में 108.14 थी, जो दिखाती है कि करेंसी लगभग 8 प्रतिशत अधिमूल्यित (ओवरवैल्यूड) थी। भारतीय रिजर्व बैंक के सबसे नवीनतम बुलेटिन में यह दिखाया गया।

अपने व्यापारिक साझेदारों के सापेक्ष रुपये का अधिमूल्यन (ओवरवैल्यूड) भारत के निर्यात को और अधिक महंगा बनाता है। RBI के आंकड़ों से पता चलता है कि 2004 के बाद से रुपये का यह सबसे अधिक अधिमूल्यन (ओवरवैल्यूड) है। 2004 से पहले के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।

अर्थशास्त्रियों ने कहा कि REER के आधार पर रुपये का अधिमूल्यन (ओवरवैल्यूड), इसके समकक्ष दूसरी करेंसी के मुकाबले इसकी वृद्धि और ब्याज दर अंतर में बढ़ोतरी को दिखाता है।

इसका एक कारण RBI भी है, जिसने रुपये की गिरावट की गति को धीमा करने और अस्थिरता को नियंत्रित रखने के लिए विदेशी मुद्रा बाजारों में नियमित रूप से हस्तक्षेप किया है।

वास्तव में, इस साल RBI के बार-बार दो-तरफ़ा हस्तक्षेप का मतलब है कि रुपया, हांगकांग डॉलर के बाद सबसे कम अस्थिर एशियाई करेंसी रहा है। लेकिन 2025 में यह बदल सकता है।

IDFC फर्स्ट बैंक में भारत की अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता ने कहा, “रुपये के अधिमूल्यन (ओवरवैल्यूड) में वृद्धि को देखते हुए, RBI के विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप की गति धीमी होनी चाहिए।”

इसका मतलब यह होगा कि करेंसी के कमजोर होने और अधिक अस्थिरता देखने को मिल सकती है। इसके पहले से ही सबूत हैं। रुपये की 30-दिवसीय दैनिक वास्तविक अस्थिरता छह महीने के उच्चतम स्तर पर है और करेंसी दिसंबर में अब तक 1.2 प्रतिशत की गिरावट के साथ दो सालों में अपनी सबसे बड़ी मासिक गिरावट दर्ज करने की ओर बढ़ रहा है।

पिछले शुक्रवार को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 85.8075 के सर्वकालिक निम्न स्तर पर पहुंच गया और 50 पैसे के दायरे में कारोबार किया, जो इस साल का सबसे बड़ा स्तर है।

यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की मुख्य आर्थिक सलाहकार कनिका पसरीचा ने कहा कि “धीमे” अधिमूल्यन (ओवरवैल्यूड) को देखते हुए, रुपये में और गिरावट आने की संभावना है।

ANZ के अर्थशास्त्री और FX दर रणनीतिकार धीरज निम ने कहा, “कई सालों के बाद पोर्टफोलियो फ्लो के लिए ‘पुल’ (ग्रोथ स्लोडाउन) और ‘पुश’ कारक (एक्सटर्नल हेडविंड्स) दोनों ही रुपए के पक्ष में नहीं हैं। इसलिए, समायोजन की आवश्यकता है।”

RBI के नए गवर्नर

इस महीने की शुरुआत में RBI के नए गवर्नर के रूप में संजय मल्होत्रा की नियुक्ति की। एक ऐसा फैसला था जिसकी मार्केट को उम्मीद नहीं थी। यह रुपए के प्रबंधन के तरीके में बदलाव की उम्मीदों को और बढ़ा रहा है।

नोमुरा ने RBI में बदलाव के तुरंत बाद जारी एक नोट में कहा, “RBI गवर्नर केंद्रीय बैंक की मुद्रा प्रबंधन रणनीति को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह संभव है कि पिछले एक साल या उससे अधिक समय में अपेक्षाकृत कड़े नियंत्रण की तुलना में, आगे चलकर मुद्रा उतार-चढ़ाव में थोड़ा और लचीलापन दिया जाए।”

Bharat Baani Bureau

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