Bihar 22 जनवरी 2025 (भारत बानी ब्यूरो ): महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस ने समीक्षा बैठक की. बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने दो महत्वपूर्ण बातें कहीं. पहली बात यह कि संगठन कमजोर हो गया है. दूसरी बात यह कि राज्यों के चुनाव अब राष्ट्रीय मुद्दों पर नहीं लड़े जा सकते. इस बार राहुल गांधी ने खरगे को सलाह दी कि संगठन में व्यापक बदलाव कीजिए. उसके तुरंत बाद यूपी की तमाम कमेटियां भंग कर दी गईं. पर राहुल ने खरगे की दूसरी बात पर शायद गौर नहीं किया. लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल ने संविधान, आरक्षण, अंबेडकर और जाति जनगणना का जो सबक रटा, उसे हरियाणा और महाराष्ट्र में भी दोहराया और इस बार बिहार आए तो वहां भी उनकी जुबान पर यही बातें थीं.
अपनी ही धुन में रमे रहते हैं राहुल गांधी
बिहार में मुद्दों की कमी नहीं थी. खबरों के जरिए या अगर अपने नेताओं से उनका संपर्क रहता होगा तो उन्हें जरूर मालूम होता कि तेजस्वी यादव ने अब जाति जनगणना का राग अलापना बंद कर दिया है. संविधान पर भी वे उस तरह अब मुखर नहीं हैं, जैसा लोकसभा चुनाव के दौरान आरजेडी के नेता बोलते थे. शायद तेजस्वी यादव को इस बात का इल्म है कि खोटे सिक्के अधिक दिन तक नहीं खनकते. संविधान और आरक्षण के नैरेटिव से लोकसभा में कांग्रेस और विपक्ष की स्थिति सुधरी जरूर, लेकिन जन जागरूकता के कारण विपक्ष सत्ता से दूर ही रह गया. इसलिए बिहार के मौजूदा मुद्दों पर ही चुनाव लड़ना उचित है. पर, राहुल गांधी तो अपने धुन के पक्के हैं. जो समझ लिया और तय कर लिया, उसी लीक पर चलेंगे.
बिहार में संविधान चर्चा, राजेंद्र को ही भूले
अपनी समाप्ति की औपचारिक घोषणा का घोषणा का इंतजार कर रहे इंडिया ब्लॉक में शामिल विपक्षी पार्टियों को संविधान सुरक्षा की उतनी चिंता नहीं सता रही है, जितनी राहुल गांधी को है. संविधान सुरक्षा को लेकर हुए कांग्रेस के कार्यक्रम में ही राहुल शामिल होने बिहार आए थे. आश्चर्य हुआ कि उन्होंने अंबेडकर को तो शिद्दत से याद किया, लेकिन संविधान सभा के अध्यक्ष रहे डा. राजेंद्र प्रसाद की याद उन्हें नहीं आई. बिहार राजेंद्र प्रसाद की जन्मस्थली है. यह हाल तब है, जब राहुल गांधी संविधान की लाल किताब अपनी जेब में लेकर घूमते हैं. यानी संविधान के बहाने वे बिहार को कनेक्ट नहीं कर पाए. तेजस्वी यादव ने भी उनकी भावना को समझते हुए ही अंबेडकर की प्रतिमा उन्हें भेंट कर दी. राहुल उनकी जड़ खोदने में लगे लालू यादव से भी मिले. लालू ने उन्हें ऐसा पाठ पढ़ाया कि विधानसभा चुनाव तक राहुल की बोलती बंद ही रहेगी.
सारांश: राहुल गांधी की लगातार हारों के बावजूद उनकी रणनीति में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं हुआ है। पार्टी की हार के बावजूद, राहुल गांधी अपनी विचारधारा और राजनीति के तरीकों को नहीं बदल रहे हैं। इसका कारण हो सकता है कि वे अपने दृष्टिकोण पर दृढ़ हैं और कांग्रेस पार्टी को उसी दिशा में ले जाने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, कई आलोचक मानते हैं कि पार्टी को अपनी रणनीति में बदलाव और युवा नेतृत्व को बढ़ावा देने की जरूरत है।