26 मार्च 2025 (भारत बानी ब्यूरो): आज तरह-तरह के बुखार सुनने में आ रहे हैं. थोड़े फीवर में ही लोग डर के मारे डॉक्टर के पास चले जाते हैं, मगर जंगल-पहाड़ में रहने वाले आदिवासी ऐसा नहीं करते. दूर-दराज रहने वाले आदिवासी बुखार आने पर एक ऐसा फार्मूला इस्तेमाल करते हैं, जिससे बिना अस्पताल आए वे मौसमी बीमारियों जैसे वायरल फीवर, सर्दी-खांसी आदि का मिनटों में इलाज कर लेते हैं.

झारखंड में पलामू की रहने वाली नीलम देवी ने लोकल 18 को बताया कि बुखार आने पर वो कालमेघ नामक पौधे का इस्तेमाल करती हैं. जिसे ग्रामीण भाषा में चिरैंता भी कहा जाता है. ये बुखार और कई बीमारी को ठीक करने में कारगर है. कहा, इस पौधे के पत्ते छोटे-छोटे होते हैं. जो दिखने में साधारण पौधे की तरह होते हैं. वहीं इस पौधे में इतनी ताकत होती है गंभीर बुखार को भी ठीक कर देता है.

इन बीमारियों का भी काल
आगे कहा, कालमेघ पौधा कई बीमारियों का काल है. इसके इस्तेमाल से मलेरिया, टाइफाइड, काला बुखार व कई बीमारी ठीक होती है. बस इसे प्रयोग का तरीका जान लें. ये बुखार को बेअसर करने में कारगर है.

ऐसे करें इस्तेमाल
इसका इस्तेमाल आप सुबह-सुबह खाली पेट करें. अगर आपको बुखार है तो तीन दिन तक हर सुबह खाली पेट इसका जूस बनाकर सेवन करें. आपका बुखार ठीक हो जाएगा. इसके लिए सबसे पहले इसके पत्ते को पीसकर जूस बनाया जाता है. इसका सेवन मरीज को कराया जाता है. लगातार तीन दिन तक सेवन कराने पर कोई भी बुखार ठीक हो जाता है.

सारांश: आजकल तरह-तरह के बुखार लोगों को परेशान कर रहे हैं. ज्यादातर बुखार वायरल के रूप में आते हैं और शरीर को तोड़ देते हैं. आदिवासी ऐसी औषधि का इस्तेमाल करते हैं, जो कैसे भी बुखार का काल है.

Bharat Baani Bureau

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *